पुस्तक के विषय में
आजकल उपलब्ध सुसंगठित योग पुस्तकों में आसन प्राणायाम मुद्रा बन्ध को अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में एक विशेष स्थान प्राप्त है। बिहार योग विद्यालय द्वारा 1969 में इसके प्रथम प्रकाशन के बाद सोलह बार इस पुस्तक का पुनर्मुद्रण हो चुका है और अन्य कई भाषाओं में भी इसका अनुवाद हुआ है। अन्तर्राष्ट्रीय योग मित्र मण्डल के अन्तर्गत बिहार योगा/सत्यानन्द योग के योग शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के साथ-साथ अन्य कई परम्पराओं द्वारा भी इसका प्रयत्नो मुख्य संदर्भ-ग्रंथ के रूप में किया जाता है।
इस बहुआयामी संदर्भ-ग्रंथ में स्पष्ट सचित्र विवरण के साथ-साथ क्रमबद्ध दिशानिर्देश एवं चक्र-जागरण हेतु विस्तृत मार्गदर्शन प्रदान किये गये हैं। योगाभ्यासियों एवं योगाचार्यो को इस ग्रंथ से हठयोग के सरलतम से उच्चतम योगाभ्यासों का परिचय प्राप्त होता है। डॉक्टरों एवं योग चिकित्सकों के उपयोग के लिए पुस्तक के अन्त में उपचार सम्बन्धी अनुक्रमणिका दी गई है, जिसमें योग के क्षेत्र में हो रहे हाल के शोधों से प्राप्त जानकारी का समावेश किया गया है। वर्तमान संस्करण में योगाभ्यासों का प्रस्तुतिकरण विश्वविद्यालय स्तर के पाठ्यक्रम के मानकों के अनुरूप है।
स्वामी सत्यानन्द सरस्वती
स्वामी सत्यानन्द सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा ग्राम में 1923 में हुआ। 1943 में उन्हें ऋषिकेश में अपने गुरु स्वामी शिवानन्द के दर्शन हुए। 1947 में गुरु ने उन्हें परमहंस संन्याय में दीक्षित किया। 1956 में उन्होंने परिव्राजक संन्यासी के रूप में भ्रमण करने के लिए शिवानन्द आश्रम छोड़ दिया। तत्पश्चात् 1956 में ही उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय योग मित्र मण्डल एवं 1963 मे बिहार योग विद्यालय की स्थापना की। अगले 20 वर्षों तक वे योग के अग्रणी प्रवक्ता के रूप में विश्व भ्रमण करते रहे। अस्सी से अधिक ग्रन्यों के प्रणेता स्वामीजी ने ग्राम्यविकास की भावना से 1984 में दातव्य संस्था 'शिवानन्द मठ' की एवं योग पर वैज्ञानिक शोध की दृष्टि से योग शोध संस्थान की स्थापना की। 1988 में अपने मिशन से अवकाश ले, क्षेत्र संन्यास अपनाकर सार्वभौम दृष्टि से परमहंस संन्यासी का जीवन अपना लिया है।
आमुख
आसन प्राणायाम मुद्रा बंध का प्रथम संस्करण 1969 में प्रकाशित हुआ, जो 1969 में बिहार योग विद्यालय में स्वयं स्वामी सत्यानन्द सरस्वती द्वारा संचालित नौ मासिक शिक्षक प्रशिक्षण सत्र में उनके द्वारा प्रदत्त शिक्षाओं पर आधारित था।
पुन:
1973 में इसका दूसरा पूर्णतया संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण प्रकाशित हुआ, जिसका आधार वह सामग्री थी, जो 1970-71 में संचालित संन्यास प्रशिक्षण सत्र में श्री स्वामीजी से प्राप्त हुई थी। यही वह अन्तिम सत्र था जिसमें श्री स्वामीजी ने स्वयं प्रशिक्षण दिया था।
इसके बाद अनेक बार इस पुस्तक का पुनर्मुद्रण हुआ। विश्व के प्रथम योग विश्वविद्यालय, बिहार योग भारती की स्थापना के पश्चात् विश्व में योग की बढ़ती माँग को ध्यान में रखकर स्वामी निरंजनानन्द सरस्वती के मार्गदर्शन में इसका सर्वांग संशोधन एवं परिवर्द्धन किया गया।
अब योग पब्लिकेशन्स ट्रस्ट, मुंगेर द्वारा इसका यह तीसरा संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बंध और षट्कर्मों की शिक्षा के लिए वर्तमान में इसका उपयोग अभ्यास सम्बन्धी मुख्य पुस्तक के रूप में किया जा रहा है।
आसन प्राणायाम मुद्रा बन्ध के प्रथम संस्करण के बाद से आज तक योग के प्रति जागरूकता एवं रुचि में आशातीत विकास हुआ है। फलस्वरूप इसका उपयोग देश में एक मानक ग्रंथ के रूप में हो रहा है । इसमें प्रस्तुत योग की विधियों का उपयोग विविध क्षेत्रों, जैसे, शिक्षा, चिकित्सा, क्रीड़ा, मनोरंजन और वाणिज्य में उत्साहपूर्वक किया जा रहा है।
मानव जीवन के सभी क्षेत्रों योग उपयोगी है। इस वृहद् ज्ञान को एक पुस्तक में समाहित करना संभव नहीं है। इस संशोधित संस्करण में आसन, प्राणायाम, मुद्रा, कन्द और षट्कर्म के अभ्यास दिए गए हैं। ये सभी अभ्यास शरीर, मन और ऊर्जा तंत्र को शुद्ध करते हैं, जिससे ध्यान की उच्च साधनाओं और अनुभूतियों के लिए तैयारी होती है । सूक्ष्म शरीर में स्थित चक्रों की भी संक्षिप्त चर्चा एक अध्याय में की गई है। यशोभ्यास के कम में या बाद में पड़ने वाले प्रभावों पर विश्व के वैज्ञानिकों और चिकित्सकों द्वारा शोध किये जा रहे हैं । और उनके परिणाम बता रहे हैं कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को पुन: प्राप्त करने और उसे बनाये रखने के लिए योग एक प्रभावशाली साधन है। निकट भविष्य में हमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में योग की बढ़ती उपयोगिता देखने को मिलेगी।
योग के विद्यार्थियों, आध्यात्मिक साधकों और योग के गहन अध्ययन में रुचि रखने वालों के लिए आसन प्राणायाम मुद्रा बन्ध की संरचना की गई है। अनेक स्वास्थ्यकर्मी शारीरिक मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक असंतुलन से परेशान लोगों के लिए अभ्यास सूची तैयार करते समय इस पुस्तक से मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे हैं।
योगाभ्यास सीखते समय किसी समर्थ योग शिक्षक से मार्गदर्शन लेना चाहिए। व्यक्तिगत विकास के लिए योगाभ्यास और जानकारियाँ इस पुस्तक में हैं। समर्थ शिक्षक के मार्गदर्शन में निष्ठापूर्वक योगाभ्यास से ये विधियाँ आपकी चेतना को विकसित करेंगी।
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