नम्र निवेदन
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज अत्यन्त सरल बोलचालकी भाषा-शैलीमें प्रवचन दिया करते हैं । उनमेंसे कुछ प्रवचन लिपिबद्ध करके पुस्तकरूपमें प्रकाशित किये जा रहे हैं । भगवत्प्राप्तिका उद्देश्य रखनेवाले साधकोंसे नम्र निवेदन है कि भगवत्-तत्वको भलीभांति हृदयंगम करनेके लिये प्रस्तुत पुस्तकका गहराईसे अध्ययन करें । इससे उन्हें अपने साधन-पथमें अद्भुत लाभ हुए बिना नहीं रह सकता ।
विषय-सूची |
||
विषय |
पृं.सं |
|
1 |
मुक्ति सहज है |
5 |
2 |
भगवान्से समबन्ध |
12 |
3 |
अविनाशी बीज |
36 |
4 |
सबमें भगवद्दर्शन |
41 |
5 |
गृहस्थमें लोक-परलोक-सुधार |
49 |
6 |
मनुष्यकी मूर्खता |
58 |
7 |
बेईमानीका त्याग |
64 |
8 |
मनुष्य-जन्म ही अन्तिम जन्म है |
71 |
9 |
'है' (परमात्म-तत्त्व)की ओर दृष्टि रखें |
78 |
10 |
साधन विषयक दो दृष्टियाँ |
83 |
11 |
दूसरोंके हितका भाव |
91 |
12 |
छूटनेवालेको ही छोड़ना है |
97 |
13 |
स्वाभाविकता क्या है? |
103 |
14 |
विनाशीका आकर्षण कैसे मिटे? |
115 |
15 |
कर्म अपने लिये नहीं |
125 |
16 |
कर्म, सेवा और पूजा |
134 |
नम्र निवेदन
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज अत्यन्त सरल बोलचालकी भाषा-शैलीमें प्रवचन दिया करते हैं । उनमेंसे कुछ प्रवचन लिपिबद्ध करके पुस्तकरूपमें प्रकाशित किये जा रहे हैं । भगवत्प्राप्तिका उद्देश्य रखनेवाले साधकोंसे नम्र निवेदन है कि भगवत्-तत्वको भलीभांति हृदयंगम करनेके लिये प्रस्तुत पुस्तकका गहराईसे अध्ययन करें । इससे उन्हें अपने साधन-पथमें अद्भुत लाभ हुए बिना नहीं रह सकता ।
विषय-सूची |
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विषय |
पृं.सं |
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1 |
मुक्ति सहज है |
5 |
2 |
भगवान्से समबन्ध |
12 |
3 |
अविनाशी बीज |
36 |
4 |
सबमें भगवद्दर्शन |
41 |
5 |
गृहस्थमें लोक-परलोक-सुधार |
49 |
6 |
मनुष्यकी मूर्खता |
58 |
7 |
बेईमानीका त्याग |
64 |
8 |
मनुष्य-जन्म ही अन्तिम जन्म है |
71 |
9 |
'है' (परमात्म-तत्त्व)की ओर दृष्टि रखें |
78 |
10 |
साधन विषयक दो दृष्टियाँ |
83 |
11 |
दूसरोंके हितका भाव |
91 |
12 |
छूटनेवालेको ही छोड़ना है |
97 |
13 |
स्वाभाविकता क्या है? |
103 |
14 |
विनाशीका आकर्षण कैसे मिटे? |
115 |
15 |
कर्म अपने लिये नहीं |
125 |
16 |
कर्म, सेवा और पूजा |
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