चन्दु मेनन: Chandu Menon

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Item Code: NZA932
Publisher: SAHITYA AKADEMI, DELHI
Author: टी० सी० शंकर मेनन (T.C. Sankara Menon)
Language: Hindi
Edition: 1981
Pages: 94
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 130 gm
Fully insured
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Book Description

पुस्तक के बारे में

चन्दु मेनन ने मलयालम साहित्य को एक नया मोड़ दिया उनका उपन्यास इन्दुलेखा मलयालम का पहला उपन्यास था, इस अर्थ ने कि न तो यह रूपान्तरण था और न ही अनुवाद, बल्कि मलाबार के निवासियो के जीवन के बारे में उनकी अपनी ही भाषा मलयालम में यह पहला मौलिक उपन्यास था यह मलाबार की विशिष्ट संस्था तरवाड का बहुत अच्छा चित्रण करता।

लेखन चन्दु मेनन का व्यवसाय नहीं था, बल्कि वे अपनी कार्यक्षमताके लिए प्रसिद्ध एक न्यायिक अधिकारी थे इन्दुलेखा के छपने के एक वर्ष बाद ही एक अग्रेज़ व्यक्ति श्री जे० डब्ल्यू० एफ० ड्यूमर्ग को यह इतना पसन्द आया कि उन्होने उसका अग्रेज़ी में अनुवाद कर दिया

इस विनिबन्ध के लेखक, प्रो० टी० सी० शंकर मेनन ने कैम्ब्रिज से एम० ए० किया आप केरल कालेजिएट सर्विस में भी थे और केरल राज्य जन सेवा आयोग के अवकाशप्राप्त सदस्य भी है आपने चन्दु मेनन के मल-यालम साहित्य को योगदान का काफी अच्छा मूल्यांकन किया है।

साहित्य अकादेमी भारतीय-साहित्य के विकास के लिए कार्य करने वाली राष्ट्रीय महत्व की स्वायत्त संस्था है जिसकी स्थापना भारत सरकार ने 1954 में की थी । इसकी नीतियाँ एक 82-सदस्यीय परिषद् द्वारा निर्धारित की जाती हैं जिसमें विभिन्न भारतीय भाषाओं, राज्यों और विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधि होते हैं।

साहित्य अकादेमी का प्रमुख उद्देश्य है ऊँचे साहित्यिक प्रतिमान कायम करना, विभिन्न भारतीय भाषाओं में होने वाले साहित्यिक कार्यों को अग्रसर करना और उनका समन्वय करना तथा उनके माध्यम से देश की सांस्कृतिक एकता का उन्नयन करना।

यद्यपि भारतीय साहित्य एक है, फिर भी एक भाषा के लेखक और पाठक अपने ही देश की अन्य पड़ोसी भाषाओं की गतिविधियों से प्राय: अनभिज्ञ ही जान पड़ते हैं। भारतीय पाठक भाषा और लिपि की दीवारों को लाँघकर एक-दूसरे से अधिकाधिक परिचित होकर देश की साहित्यिक विरासत की अपार विविधता और अनेकरूपता का और अधिक रसास्वादन कर सकें, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए साहित्य अकादेमी ने एक विस्तृत अनुवाद-प्रकाशन योजना हाथ में ली है। इस योजना के अन्तर्गत अब तक जो ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं, उनकी वृहद् सूची साहित्य अकादेमी के विक्रय विभाग से निःशुल्क प्राप्त की जा सकती है।

लेखक की ओर से

मैं साहित्य अकादेमी का आभारी हूँ, जिसने मुझे चन्दु मेनन के विषय में यह पुस्तक लिखने का निमन्त्रण देकर सम्मानित किया। वह एक रोचक व्यक्ति थे, बतौर एक लेखक, अधिकारी और बतौर एक इन्सान जब हम उनके बारे में जानना गुरू करते हैं, तो हम में से कुछ लोग उनके बारे में और जानना चाहेंगे। लेकिन जब हम इस दिशा में पूछताछ प्रारम्भ करते हैं तो हमें निराश होना पड़ता है, क्योंकि उनके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है खैर, अब शायद वहुत देर हो गई है वैसे भी चन्दु मेनन की मृत्यु हुए सत्तर वर्ष बीत चुके हैं इतने समय बाद अब उनके बारे में किसी नई जान- कारी के मिलने की कोई उम्मीद नहीं है।

अत: इस पुस्तक में लिखे उनके जीवन के इतिहास में ऐसी कोई नई बात नहीं है जो पहले छप न चुकी हो इसका आधार वे सूचनाए हु जो उन पुस्तकों से मिली हैं जिनके नाम इस पुस्तक के कत में दिए गए हैं और जो अब भी प्राप्त हैं सिवाय दो के बाकी सभी मलयालम में हैं और उनका लाभ सिर्फ मलयालम जानने वाले पाठक ही उठा सकते हैं ।

चन्दु मेनन ने सिर्फ एक पूर्ण उपन्यास लिखा इन्दुलेखा और दूसरा उपन्यास शारदा, जिसे वह तीन भागो में लिखना चाहते थे, का लि है एक ही भाग लिख पाए इन्दुलेखा मलयालम में 1889 में प्रकाशित हुआ, और इसका अंग्रेजी अनुवाद 1890 में प्रकाशित हुआ, जिसे नागरिक सेवा के श्री जान विलोबाई फ्रासिज ड्यूमर्ग ने अनूदित किया था। इन्दुलेखा मलयालम का पहला ऐसा उपन्यास है जिसे पढकर एक अंग्रेज व्यक्ति उसका अनुवाद करने की उत्कठा को रोक नहीं पाया मैं अन्तर सोचता हूँ कि इतने वर्षो में मलयालम में जो इतने सारे उप-न्यास लिखे गए है, क्या उनमें से कोई भी ऐसा उपन्यास है जिसने किसी अंग्रेज या अन्य किसी विदेशी को अनुवाद करने के लिए इतना प्रेरित किया हो चन्दु मेनन ने ड्यूमर्ग को इन्दुलेखा की एक प्रति के साथ एक अत्यन्त ही रोचक पत्र लिखकर भेजा था अनुवाद के साथ ही वह भी प्रकाशित हुआ है। अपनी प्रस्तावना में ड्यूमर्ग कहता है कि चन्दु मेनन ने अंग्रेजी अनुवाद काफी ध्यान से पड़ा और इच्छानुसार फेरबदल भी किए अत: यह कहा जा सकता है कि असुदित सस्करण को लेखक की सहमति प्राप्त थी इस पुस्तक में इन्दुलेखा के उद्भुत अश ड्यूमर्ग के अनुवाद से लिए गए हैं इस अनुवाद का दूसरा सस्करण 1965 में मातृभूमि पब्लिशिंग कम्पनी, कालिकट, केरल ने प्रकाशित किया था। जहाँ तक मेंरी जानकारी है शारदा का अंग्रेजी में अनुवाद नहीं हुआ है अत: मैंने यह आवश्यक समझा कि जहाँ तक चन्दु मेनन ने यह कहानी लिखी है उसका सारांश इस पुस्तक में दे दिया जाए अत: पुस्तक में दिए गए शारदा के हिस्से मूल मलयालम से मेंरे द्वारा अनुवाद किए हुए हैं और अगर कोई भी हिस्सा मूल रचना के साथ न्याय करने में असमर्थ है तो उसका दोषी मैं हूँ ।

जब इस पुस्तक की पाण्डुलिपि मैंने तैयार कर ली तब महाराजा कालेज, एरणाकुलम के प्रोफेसर पी० बालकृष्णन नायर ने काफी ध्यान और सब्र के साथ उसको पूरा पढा, हालाकि यह आसान काम नहीं था। हम दोनों के बीच हुआ विचार-विमर्श मेंरे लिए काफी लाभदायक रहा, विशेषत पाठको का दृष्टिकोण समझने की दृष्टि से बाद में टंकित पाण्डुलिपि का अवलोकन श्री पी० डी० एन० मेनन (केरल उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश) एवं श्री वी० वी० के० मेनन (केरल राज्य सरकार के अवकाशप्राप्त चीफ सेक्रेटरी) ने किया और इस विनिबन्ध को बेहतर बनाने के लिए आप सबने जो महत्वपूर्ण सुझाव दिए उसके निए मैं आप सबका आभारी हूँ।

 


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