अपनी बात
''ज्योतिष जीवन को समृद्ध करता है । ''अपनी क्षमताओं का आकलन करने के लिए ज्योतिष एक सशक्त विधा है ।'' ''जीवन की ज्योति ही ज्योतिष है ।'' मेरे सहपाठियों व मित्रों के ये विचार, मेरा प्रेरणास्रोत बने, इस संकलन व संपादन गन ' ज्योतिष में होरा अथवा जातक का विशेष महत्व है । हमारे जीवन में घटने वाली घटनाएं, शिक्षा, आजीविका, विवाह, संतान, संपदा, स्वास्थ्य व सुख का विचार जन्म कुंडली से किया जाता है । ये वात विज्ञ पाठक भली-भांति जानते हैं ।
इस पुस्तक में द्वादश ग्रहों (यूरेनस, नेपच्यून, प्लूटो सहित) का द्वादश राशियों में स्थिति, राशिस्थ ग्रह का भाव फल तथा राशिस्थ ग्रह पर अन्य ग्रहों की दृष्टि के फल पर विस्तृत रूप से विचार किया गया है । बहुधा जातक जन्म की तिथि तो उगाता हे किन्तु राही समय का ज्ञान न होने से लग्न निकालना तथा उसकी जन्म कुंडली बनाना असंभव प्राय हो जाता है । ऐसी परिस्थिति में ''ग्रह व राशि संबंध'' पर आधारित ये फलादेश सरल, सहज व उपयोगी होगा ऐसा मेरा विश्वास है।
यह पुस्तक ज्योतिष प्रेमियों को फलादेश में विशेष सहायक होगी तो शोधकर्ता भी इस पुस्तक को उपयोगी पाएने । प्राच्य व पाश्चात्य ज्योतिषियों के विचारों पट संकलन, उपभोक्ता की सुविधा को ध्यान में रख वैज्ञानिक पद्धति से किया गया है।? उदाहरण के लिए यदि मेष राशि का सूर्य दशम भाव में गुरु से दृष्ट हो तो क्या फल। होगा जानने कै लिए । मेष राशि का अध्याय 1, मेषराशि में स्थिति सूर्य, का दशम भाव में फल 1.1.2(x) तत्पश्चात 1.1.3 (iv) में सूर्य पर गुरु का दृष्टि क्त देखें । ‘‘वहां लिखा है ऐसा जातक धनी, मानी, दानी, उदार...श्रेष्ठ पुरुष होता है ।'' कहीं फलादेश में विरोधाभास भी दीख पड़ेगा तो उसके दो कारण हैं ।
प्रथम ग्रह की दुर्बलता, उस पर पाप ग्रह की दृप्टि-युति, प्राय: विपरीत फल दिया करती है । इस तथ्य से विज्ञ ज्योतिष बंधु अनजान नहीं है । अत: वली व शुभता प्राप्त ग्रह, कल्याण प्रद व शुभ फलदायी तो बलहीन ग्रह, पीड़ा व कष्ट सरीखा अशुभ फल देगा; यही बात बताने का वहां प्रयास हुआ है ।
द्वितीय विभिन्न परिस्थितियों में, भिन्न देश काल व पात्र के अनुरूप,महर्षि व पाश्चात्य वैज्ञानिकों के शोधपरक अध्ययन से भी कहीं परिणाम भिन्नता हुई है । पूरी निष्ठा व निष्पक्षता से दोनों विचारों का संकलन किया गया है जिससे विज्ञ पाठक स्वयं निर्णय कर सकें कि उनके परिवेश में कौन-सा विचार तर्क-संगत है ।
ये फलादेश, मात्र जातक के गुण, दोष, शक्ति व दुर्बलताओं की ओर इंगित करता है । विज्ञ ज्योतिष बंधुओं का कर्तव्य है कि वे जातक को पूर्व सूचना देकर, अनिष्ट के प्रति सावधान करें तथा अनिष्ट से बचने का उपाय भी बताएं । मेरा दृढ विश्वास है कि प्रारब्ध को बदलने के लिए प्रार्थना, दान, मणि व मंत्र अमोघ उपाय हैं।
ये मौलिक रचना नहीं है अपितु विभिन्न संदर्भ ग्रन्थों से लिए गए फलादेशों का संकलन व संपादन मात्र है । अत: इसमें गुण व श्रेष्ठता का श्रेय उन महर्षि, मुनि संत व साधकों को दें जिनके अनुभव व विचार इस पुस्तक का आधार हैं । हां अशुद्धियां, व भूलें निश्चय ही प्रमादवश या अल्पबुद्धि के कारण मुझसे हुई होंगी, उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं । आशा है विज्ञ पाठक इसे उपयोगी पाएंगे तथा अन्य कृतियों की भाँति सरीखा स्नेह व सम्मान इसे भी देंगे ।!
कृतज्ञता ज्ञापन
मैं कृतज्ञ हूँ अपने कृपालु गुरुजन का जिनके आशीवाद से ये संकलन संभव हो सन्का । श्री अमृतलाल जैन ने इस पुस्तक के लिए विविध स्रोतों से सामग्री जुटाने का कार्य जिस तत्परता व मनोयोग से किया उसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं । मेरे सहपाठी, छात्र, मित्र व प्रशंसकों ने मेरा मनोबल व उत्साह बनाए रखा तथा अनेक जटिल बिंदुओं पर चर्चा कर उन्हें स्पष्ट किया मैं उन सभी का आभारी हूं। परम आदरणीय सर्वश्री गोविन्द सरूप अग्रवाल, महेन्द्र नाथ केदार, चन्द्र दत्त पंत, आचार्य सीताराम झा, डा. के. एस. चरक, पीटर वेस्ट व जो लोगोन, एलन लियो, डा. सुरेश चन्द्र मिश्र, देवकीनन्दन सिंह, एस.एस. सरीन तथा अन्य अनेक विद्वानों का मैं हृदय से कृतज्ञ हूं, जिनकी रचनाओं का उपयोग इस पुस्तक में किया गया । अक्षर संयोजन, पांडुलिपि संशोधन, प्रकाशन तथा वितरण का कार्य अनेक जटिल क्रियाओं से जुड़ा रहता है । डा. एस. बी. गोयल ने सफलतापूर्वक ये दायित्व निभाया उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं ।
मैं आभारी हूं उन सहस्त्रों ज्योतिष प्रेमियों का जो ज्योतिप ज्ञान से मानवजीवन को सुखी व समृद्ध बनाने के लिए कृत संकल्प हैं । उनका स्नेहपूर्ण सहयोग ही मेरा संबल है । गोपाल की करि सब होइ जो अपना पुरुषारथ मानै-पति झूठा हे सोइ...सो अंतिम धन्यवाद या प्रणाम उसे भी जिसने 'सब' में इस रचना को सम्मिलित कर लिया...
विषय-सूची
अध्याय-1
मेष राशिस्थ ग्रह फलम्
1-35
अध्याय-2
वृष राशि ग्रह फलम्
36-61
अध्याय-3
मिथुन राशि फलम्
62-87
अध्याय-4
कर्क राशि ग्रह फलम्
88-115
अध्याय-5
सिंह राशिस्थ ग्रह फलम्
116-141
अध्याय-6
कन्या राशिस्थ ग्रह फलम्
142-168
अध्याय-7
तुला राशिस्थ ग्रह फलम्
169-196
अध्याय-8
वृश्चिक राशिस्थ ग्रह फलम्
197-224
अध्याय-9
धनु राशिस्थ ग्रह फलम्
225-251
अध्याय-10
मकर राशि ग्रह फलम्
252-278
अध्याय-11
कुंभ राशिस्थ ग्रह फलम्
279-303
अध्याय-12
मीन राशि में ग्रह फल
304-329
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