दसाध्यायी: Dasadhyayi

$19
Item Code: NZA913
Author: के.के.पाठक (K. K.Pathak)
Publisher: Alpha Publications
Language: Hindi
Edition: 2004
ISBN: 9788179480113
Pages: 174
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 230 gm
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Book Description

पुस्तक का परिचय

जन्मकुण्डली के आधार पर फलाफल विवेचन करने में ग्रहों के षड्वर्ग तथा षड्बल की विशेष उपयोगिता होती है । वक्री ग्रहों की भी पड्बल में विशेष उपयोगिता है। पुस्तक के प्रथम आठ अध्यायों में विद्वान लेखक ने वृद्धयवन(मीनराज), कल्याणवर्मा,वाराहमिहिर, मानसागरी, पराशर, वैद्यनाथ आदि के विचारों का तुलनात्मक अध्ययन करके अपने उपयोगी विचार दिये हैं। अष्टम अध्याय में वक्री ग्रहों के सम्बन्ध में जो विवेचना प्रस्तुत है अथवा नवम अध्याय में भाव- भावेश के सन्दर्भ में जो सामग्री दी गई है वह एक नवीनतम शोध होने के साथ ही साथ पाठकों के लिये लाभदायक मार्गदर्शक भी है । दशम अध्याय में वर्णित रत्नों की उपयोगिता उपचारीय दृष्टि से महत्तवपूर्ण है। कुल मिलाकर यह एक अत्यन्त उपयोगी पुस्तक है।

लेखक का परिचय

इस पुस्तक के लेखक के. के. पाठक गत पैंतीस वर्षों से ज्योतिष-जगत में एकप्रतिष्ठित लेखक के रूप में चर्चित रहे हैं। ऐस्ट्रोलॉजिकल मैगजीन, टाइम्स ऑफ ऐस्ट्रोलॉजी, बाबाजी तथा एक्सप्रेस स्टार टेलर जैसी पत्रिकाओं के नियमित पाठकों को विद्वान् लेखक का परिचय देने की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि इन पत्रिकाओं के लगभग चार सौ अंकों में कुल मिलाकर इनके लेख प्रकाशित हो चुके हैं। निष्काम पीठ प्रकाशन, हौजखास नई दिल्ली द्वारा अभी तक इनकी एक दर्जन शोध पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । इनकी शेष पुस्तकों को बड़े पैमाने पर प्रकाशित करने का उत्तरदायित्व ''एल्फा पब्लिकेशन''ने लिया है। ताकि पाठकों की सेवा हो सकें। आदरणीय पाठक जी बिहार राज्य के सिवान जिले के हुसैनगंज प्रखण्ड के ग्राम पंचायत सहुली के प्रसादीपुर टोला के निवासी हैं। यह आर्यभट्ट तथा वाराहमिहिर की परम्परा के शाकद्विपीय ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुए। इनका गोत्र शांडिल्य तथा पुर गौरांग पठखौलियार है । पाठकजी बिहार प्रशासनिक सेवा में तैंतीस वर्षों तक कार्यरत रहने के पश्चात सन्1993 ई० में सरकार के विशेष-सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए ।

''इंडियन कौंसिल ऑफ ऐस्ट्रोलॉजिकल साईन्सेज'' द्वारा सन्1998 में आदरणीय पाठकजी को ''ज्योतिष भानु''की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया । सन्1999 ई० में पाठकजी को ''आर. संथानम अवार्ड'' भी प्रदान किया गया।

ऐस्ट्रो-मेट्रीओलॉजी उपचारीय ज्योतिष, हिन्दू-दशा-पद्धति, यवन जातक तथा शास्त्रीय ज्योतिष के विशेषज्ञ के रूप में पाठकजी को मान्यता प्राप्त है।

हम उनके स्वास्थ्य तथा दीर्घायु जीवन की कामना करते हैं।

प्राक्कथन

पाणिनी ने ''अष्टाध्यायी''के नाम से वैयाकरण कथ लिखा था। टीकाकार रुद्र भट्ट ने वाराहमिहिर के 'बृहज्जातक'की टीका ''दसाध्यायी''नाम से लिखी है । वर्तमान पुस्तक ''दसाध्यायी''इन सभी से भिन्न है । निष्काम पीठ प्रकाशन से प्रकाशित मेरी पुस्तक''ज्योतिष के दस महत्त्वपूर्ण अध्याय'' से भी सर्वथा भिन्न मेरी यह पुस्तक है ।

प्रस्तुत पुस्तक के सभी दस अध्यायों में ज्योतिष के महत्वपूर्ण अंगों पर प्रकाश डाला गया है । इसकें प्रथम छ: अध्यायों में षड्वर्ग(राशि, होरा, द्रेष्काण, नवांश, द्वाद्वशांश तथा त्रिशांश) की व्यावहारिक उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है । सप्तम अध्याय में ग्रहों के षड्बल(स्थानबल, दिग्बल, कालबल, चेष्टाबल, दृष्टिबल तथा नैसर्गिकबल) की व्यावहारिक उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है। मौलिक गन्थों पर आधारित होते हुए भी इसमें जो सुझाव दिये गये हैं उनसे फलाफल कहने में काफी मदद मिल सकती है।

अष्टम अध्याय में वक्री ग्रहों के सम्बन्ध में सविस्तार विवेचना की गई है। नवम अध्याय में कुंडली के बारह भावों तथा बारह भावेशों कै फलाफल के गुर बताये गये है। दशम अध्याय में ज्योतिष में रत्नों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है।

''दसाध्यायी''के दसों अध्याय शास्त्रसम्मत होते हुए फलादेश की दृष्टि से भी अत्यन्त उपयोगी हैं।

 

अनुक्रमणिका

1

राशि की उपयोगिता

1

2

होरा की उपयोगिता

24

3

द्रेष्काण की उपयोगिता

36

4

नवांश की उपयोगिता

48

5

द्वादशांश की उपयोगिता

67

6

त्रिंशांश की उपयोगिता

79

7

षड्बल की उपयोगिता

92

8

वक्री ग्रहों की विवेचना

113

9

भाव-निरूपण

132

10

ज्योतिष में रत्नों की उपयोगिता

158

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