श्लोकनुक्रम णिका |
|||
अङ्गै: सहैव |
21 |
मदसरितकपोत |
20 |
अत्युग्रदीप्ति |
4 |
मा तावन्मम |
5 |
अनेकयज्ञाहुति |
23 |
यात: कृतार्थ: |
16 |
अन्योन्यशस्त्र |
9 |
रवितुसासमानं |
19 |
अयं स काल: |
8 |
विद्युल्लता |
9 |
इमे हि दैन्येन |
11 |
शंखध्वनि : प्रलय |
24 |
इमे हि युद्धे |
13 |
शिक्षा क्षयं गच्छति |
22 |
करितुरगरथ |
3 |
श्रीमानेष न |
15 |
कृते वज्रमुखेन |
10 |
संग्रामे तुमुले |
2 |
गुणवदमृत |
18 |
समरमुखमसहां |
13 |
वर्गो हि यत्नै: |
17 |
सर्वत्र संपद: |
25 |
नरमृगपति |
1 |
हतोऽपि लभते |
12 |
पूर्वं कुन्त्यां |
7 |
श्लोकनुक्रम णिका |
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अङ्गै: सहैव |
21 |
मदसरितकपोत |
20 |
अत्युग्रदीप्ति |
4 |
मा तावन्मम |
5 |
अनेकयज्ञाहुति |
23 |
यात: कृतार्थ: |
16 |
अन्योन्यशस्त्र |
9 |
रवितुसासमानं |
19 |
अयं स काल: |
8 |
विद्युल्लता |
9 |
इमे हि दैन्येन |
11 |
शंखध्वनि : प्रलय |
24 |
इमे हि युद्धे |
13 |
शिक्षा क्षयं गच्छति |
22 |
करितुरगरथ |
3 |
श्रीमानेष न |
15 |
कृते वज्रमुखेन |
10 |
संग्रामे तुमुले |
2 |
गुणवदमृत |
18 |
समरमुखमसहां |
13 |
वर्गो हि यत्नै: |
17 |
सर्वत्र संपद: |
25 |
नरमृगपति |
1 |
हतोऽपि लभते |
12 |
पूर्वं कुन्त्यां |
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