परिचय
वेदों में यह, घोषित किया गया है कि भगवान के दिव्य नामों का जप ही महासाधन है । इस संघर्ष-भरे अंधकारपूर्ण युग में जहाँ उग्रवाद एव तनाव फैला हुआ है, यही एकमात्र सर्वोत्तम योगाभ्यास है । जब तक सभी देशों के लोग अपने हृदयों पर भगवान के पावन नामों की माला धारण नहीं कर लेते, तब तक विश्व में शांति अथवा सामंजस्य की कोई सभावना नहीं है । सदियों से आध्यात्मिक गुरुओं ने एक ही सिद्धांत सिखाया है - भगवान के पवित्र नामों के कीर्तन एव जप द्वारा उनकी स्तुति करना । ऐसी स्तुति से मन शांत हो जाएगा, हृदय से काम, क्रोध तथा लोभ दूर हो जाएँगे एव
आत्मा आनंद से परिपूर्ण हो जाएगी । सन् 1971 में, लंदन में एक वार्तालाप करते हुए श्रील प्रभुपाद ने कहा,
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