पुस्तक के बारे में
भगवान् श्रीकृष्ण, जो की यमुना नदी के प्राणस्वरुप है, यमुना के जल में अत्यन्त आनंद का अनुभव करते हैं । (यमुना जीवन केली परयण) जिस प्रकार चकोर पक्षी केवल चाँदनी की ओर ही देखता रहता है और उससे अपनी दृष्टि फिरने नहीं देता उसी प्रकार गोपियाँ निरन्तर श्री कृष्णचंद्र के चंद्रमा के समान सुन्दर मुख को निहारती रहती हैं । (मानस-चंद्र-चकोर) श्रील भक्ति विनोद ठाकुर निवेदन करते हैं, अब भगवान् के इन सभी नामों का कीर्तन करो! हे में प्रिय मन! कृपया में इन वचनों का गंभीरता से पालन करो! इन्हें अस्वीकार मत करो! श्रीकृष्ण के पवित्र नामों का सतत कीर्तन करते जाओ! (श्रील प्रभुपाद द्धारा विभावरी शेष के तात्पर्य पर आधारित)
समर्पण
अपने श्री शचीसुन्वाष्टक में श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी श्री चैतन्य महाप्रभु के विषय में मधुरतापूर्वक कहते हैं माता शची के पुत्र जो बंगाल के लोगों को अपना समझकर एक पिता की भाँति उन्हें शिक्षा
देते थे - 'कृपया एक निश्चित संख्या में हरे कृष्ण महामंत्र का जप करिए ।' वह कब पुन: में नयनपथ पर गमन करेंगे?
मैं यह पुस्तक, जप, श्रील प्रभुपाद को समर्पित करता हूँ जिन्होंने इस सम्पूर्ण संसार के लोगों को अपना समझकर उन्हें एक पिता की भाँति उपदेश देते हुए यह कहा था, ''कृपया एक निश्चित संख्या में हरे कृष्ण महामंत्र का जप करिए ।'' ऐसे श्रील प्रभुपाद कब पुन: में नयनपथ पर गमन करेंगे?
विषय-सूची
प्रस्तावना
1
इस पुस्तक की रचना किस प्रकार हुई
जप के स्तर
2
प्रत्येक स्तर की गुणवत्ताएँ
3
हरे कृष्ण महामंत्र जपिए और सदा सुखी रहिए
5
अध्याय-1
7
चैतन्य महाप्रभु का शिक्षाष्टक-प्रथम श्लोक
प्रथम कुंजी–हरे कृष्ण महामंत्र का जप करिए!
9
अध्याय-2
11
क्या कारण है कि हमें श्रीकृष्ण के नाम जप में तनिक भी रूचि नहीं होती और न ही जप के सात परिणाम प्राप्त होते हैं
कम रुचि होने के चार कारण
12
अपराध करने के दुष्परिणाम
14
भक्तों की आलोचना न करें
15
जप करते समय प्रमाद (लापरवाही) से बचना
16
अध्याय-3
17
मन की कार्यप्रणाली एवं स्वभाव
अध्याय-4
21
मन की सहायता से जप करना
द्वितीय कुंजी-केवल एक मंत्र का श्रवण करें
तृतीय कुंजी-दृढ़ संकल्प करें
22
अध्याय-5
25
चतुर्थ कुंजी-जहाँ कहीं भी मन भटकता है
पाँचवीं कुंजी-अनासक्ति
एक मंत्र सुनना भी अद्भुत है
26
अध्याय-6
29
किसी भी परिस्थिति में जप करना
मन को हरिनाम का आलिंगन करने दीजिए
30
सर्वोच्च वरदान
31
कार्य की सरलता
33
अध्याय-7
35
मन के विषय में और अधिक जानकारी
अवंती ब्राह्मण
37
अध्याय-8
41
महत्वपूर्ण क्या है?
अस्थिर बुद्धि-एक ग्रामीण वेश्या
43
अध्याय-9
45
छठवी कुंजी - मन की उपेक्षा करें
मन पर विश्वास नहीं किया जा सकता
46
मन भौतिक रसास्वादन का भोगी है
47
काश
48
अध्याय-10
51
मन को नियंत्रित करने के लिए कुछ सरल उपाय
हरिनाम का सेवक बनना
55
सेवा करने हेतु मन की उपेक्षा करना
56
अध्याय -11
59
सातवीं कुंजी-विनम्रता
दीन भाव से किए गए निवेदन के प्रति कृष्ण की प्रतिक्रिया
62
अध्याय-12
65
कृष्ण हमारी रक्षा करने में समर्थ हैं
सेवक स्वामी के प्रति बिक जाता है
66
भय
67
अध्याय-13
69
आठवीं कुंजी-नामाश्रय
अकिंचन बनना
72
हरिनाम के लिए भिक्षा माँगना
74
आश्रित रहें
75
कठिनाईयों को किस प्रकार देखा जाए
पुन: मूलभूत सिद्धांतों की ओर
76
अध्याय-14
79
निष्ठा से रुचि की ओर बढ़ना निष्ठा के स्तर पर भक्त की भावना
निष्ठा से रुचि तक की यात्रा
80
कृष्ण के नामों के प्रति रुचि की प्राप्ति
82
अध्याय-15
83
अवांछित-वांछित का संयोग
अवांछित आकांक्षाएँ
अध्याय-16
87
सकारात्मकता का महत्व
साधना का विधि-कृष्ण की सेवा करने की हमारी इच्छा में वृद्धि करना
हरिनाम -साधना विधि का केंद्र
89
वैष्णवों की सेवा करें
90
महान् भक्तों का संग करें और कृष्ण कथा का श्रवण करें
प्रचार करें-आस्वादन व वितरण करें
91
प्रार्थना करें
92
अध्याय-17
95
नौंवी कुँजी-कृष्ण की अहैतुकी कृपा
अध्याय-18
99
सद्गुण जो भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा को आकर्षित करने में सहायक हो सकते हैं
गुरु सेवा
श्रद्धा
100
गंभीरता
आशा
101
प्रीति का अनुभव करें
102
यदि आपको कृष्ण कृपा चाहिए तो
105
अध्याय-19
प्रश्न और उत्तर
अध्याय-20
121
श्रील प्रभुपाद की शिक्षाओ से उद्धरण
श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के पत्र
126
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर की हरीनाम चिन्तामणि, अध्याय 12
127
श्रील रूप गोस्वामी की पद्यावली
128
परिशिष्ट
132
नौ कुंजियाँ और किस प्रकार वे जप के विभित्र चरणों से संबंधित हैं।
जप के विभिन्न स्तरों का व्यावहारिक उपयोग
133
हरिनाम के अक्षर
134
Your email address will not be published *
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Send as free online greeting card
Email a Friend