पुस्तक के बारे में
कपीश जी एक बड़े कैनवास पर उकेरी जानेवाली कथाकृति के रूप में प्रस्तावित रचना है, जिसकी पूर्ण बुनावट मनोहर श्याम जोशी( 1933-2006) की असामयिक मृत्यु के कारण अधूरी रह गई, पर कथ्य और कथन-भंगिमा के स्तर पर अपनी पूरी शक्ति के साथ इस रूप में भी यह पुस्तक हिन्दी साहित्य में अलग पहचान और प्रमाण उपस्थित करती है। कथानायक कपीश जी की जन्मस्थली रंगकंगालों का कस्बा है, जिसमें इतिहास, पुराण से उपजता है और भूगोल, साहित्य से। यहां धर्म पर टिके हुए अर्थ, काम और अर्थ, काम पर टिके हुए धर्म की भूलभुलैया में ही मोक्ष की लुकाछिपी मचलती है । यहां तिरस्कार-मिश्रित दया में कपीश जी को जांचते रंगकंगाल किस तरह अमरीका-यूरोप के उस भक्त-मण्डल में बदल जाते हैं, जिनके सम्मान और श्रद्धा की आभा से कपीश जी की प्रौढ़ावस्था प्रदीप्त हो उठती है, यह बड़ी तीक्ष्णता से सट हुई है। कथानायक की व्यक्तिगत जीवन माया उनकी सार्वजनिक प्रस्तुति में शुरू से आखिर तक भक्ति की एक ऐसी सरल रेखा है, जो कलियुग की समस्त जटिलताओं के आर-पार उसी ऋजुता से खींची हुई है, जिससे वह हिन्दी साहित्य के मध्यकाल में खींची गई थी, और जिसकी नींव उतनी ही गहरी है, जितनी वह रामायण और भागवत में डाली गई थी।
साहित्य अकादेमी सहित कई सम्मानों से सम्मानित उपन्यासकार मनोहर श्याम जोशी रोजी रोटी की खातिर छात्र जीवन से ही लेखक और पत्रकार बन गए । प्रेस, रेडियो, टीवी, वृत्तचित्र, फिल्म, विज्ञापन-सम्प्रोण का ऐसा कोई माध्यम नहीं, जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन कार्य न किया हो । उनकी प्रमुख कृतियां हैं : कुरु-कुरु स्वाहा कसप हरिया हरक्यूलीज की हैरानी, हमज़ाद क्याप (उपन्यास), नेता जी कहिन (व्यंग्य संगह), बातों-बातों में (साक्षात्कार); एक दुर्लभ व्यक्तित्व कैसे किस्सागो मंदिर के घाट की पैड़ियां (कहानी संग्रह), पटकथा लेखन. एक परिचय आदि ।
अनुक्रम |
||
1 |
निवेदन |
सात |
2 |
कपीशजी : एक परिचय |
नौ |
3 |
प्राक्कथन |
ग्यारह |
4 |
गांव और गोत्र |
1 |
5 |
प्रपितामह आदित्य स्वरूप राधेलाल शर्मा |
11 |
6 |
रुद्र स्वरूप शंकर दयाल शर्मा पितामह |
25 |
7 |
वसु स्वरूप पन्नालाल शर्मा पिता |
57 |
8 |
व्यथा-कथा एक निराश पिता की |
92 |
9 |
स्त्री-गंधों का संसार |
110 |
10 |
कुछ काम करो, कुछ काम करो |
127 |
11 |
शेक्सपीयरी गरुड़ पुराण |
136 |
पुस्तक के बारे में
कपीश जी एक बड़े कैनवास पर उकेरी जानेवाली कथाकृति के रूप में प्रस्तावित रचना है, जिसकी पूर्ण बुनावट मनोहर श्याम जोशी( 1933-2006) की असामयिक मृत्यु के कारण अधूरी रह गई, पर कथ्य और कथन-भंगिमा के स्तर पर अपनी पूरी शक्ति के साथ इस रूप में भी यह पुस्तक हिन्दी साहित्य में अलग पहचान और प्रमाण उपस्थित करती है। कथानायक कपीश जी की जन्मस्थली रंगकंगालों का कस्बा है, जिसमें इतिहास, पुराण से उपजता है और भूगोल, साहित्य से। यहां धर्म पर टिके हुए अर्थ, काम और अर्थ, काम पर टिके हुए धर्म की भूलभुलैया में ही मोक्ष की लुकाछिपी मचलती है । यहां तिरस्कार-मिश्रित दया में कपीश जी को जांचते रंगकंगाल किस तरह अमरीका-यूरोप के उस भक्त-मण्डल में बदल जाते हैं, जिनके सम्मान और श्रद्धा की आभा से कपीश जी की प्रौढ़ावस्था प्रदीप्त हो उठती है, यह बड़ी तीक्ष्णता से सट हुई है। कथानायक की व्यक्तिगत जीवन माया उनकी सार्वजनिक प्रस्तुति में शुरू से आखिर तक भक्ति की एक ऐसी सरल रेखा है, जो कलियुग की समस्त जटिलताओं के आर-पार उसी ऋजुता से खींची हुई है, जिससे वह हिन्दी साहित्य के मध्यकाल में खींची गई थी, और जिसकी नींव उतनी ही गहरी है, जितनी वह रामायण और भागवत में डाली गई थी।
साहित्य अकादेमी सहित कई सम्मानों से सम्मानित उपन्यासकार मनोहर श्याम जोशी रोजी रोटी की खातिर छात्र जीवन से ही लेखक और पत्रकार बन गए । प्रेस, रेडियो, टीवी, वृत्तचित्र, फिल्म, विज्ञापन-सम्प्रोण का ऐसा कोई माध्यम नहीं, जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन कार्य न किया हो । उनकी प्रमुख कृतियां हैं : कुरु-कुरु स्वाहा कसप हरिया हरक्यूलीज की हैरानी, हमज़ाद क्याप (उपन्यास), नेता जी कहिन (व्यंग्य संगह), बातों-बातों में (साक्षात्कार); एक दुर्लभ व्यक्तित्व कैसे किस्सागो मंदिर के घाट की पैड़ियां (कहानी संग्रह), पटकथा लेखन. एक परिचय आदि ।
अनुक्रम |
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1 |
निवेदन |
सात |
2 |
कपीशजी : एक परिचय |
नौ |
3 |
प्राक्कथन |
ग्यारह |
4 |
गांव और गोत्र |
1 |
5 |
प्रपितामह आदित्य स्वरूप राधेलाल शर्मा |
11 |
6 |
रुद्र स्वरूप शंकर दयाल शर्मा पितामह |
25 |
7 |
वसु स्वरूप पन्नालाल शर्मा पिता |
57 |
8 |
व्यथा-कथा एक निराश पिता की |
92 |
9 |
स्त्री-गंधों का संसार |
110 |
10 |
कुछ काम करो, कुछ काम करो |
127 |
11 |
शेक्सपीयरी गरुड़ पुराण |
136 |