पुस्तक के बारे में
महामति प्राणनाथ (1618-1694) का जीवन, व्यक्तित्व एव वाङ्मय उत्तर मध्यकालीन सन्त-परम्परा की अन्यतम उपलब्धियाँ हैं । सुदूर गुजरात में जन्म लेनेवाले महामति प्राणनाथ का पूर्व नाम मेहराज ठाकुर था । निजनामी सम्प्रदाय के आचार्य सद्गुरु। देवचन्द्र से दीक्षा प्राप्त मेहराज ने जामनगर राज्य मे वजीर का पद भी सँभाला लेकिन अपनी आन्तरिक प्रेरणा सामाजिक उत्तरदायित्व और जागनी जन-अभियान को दिशा देने के महत् संकल्प ने उन्हे एक विशिष्ट पहचान दी । अपने युग की समस्त सामाजिक धार्मिक एव राजनीतिक चिन्ताओ और चुनौतियों का प्रश्नो और प्रातप्रश्नो का देशकाल से जुडी विषम और प्रतिकूल परिरिथतियों का महामति ने डटकर सामना किया । उन्होने समय और समाज की आकांक्षाओ को प्रभावित और आन्दोलित किया । उनके जागनी अभियान को नयी पहचान मिली । व्यक्ति समाज धर्म और विश्व-मंच को जोडकर महामति ने न केवल जन-आन्दोलन आरम्भ किया बल्कि सामाजिक एवं जातीय आवश्यकताओं के अनुरूप समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत किया । जटिल और पीकल प्रश्नो से घिरे आज के विभाजित अभिशप्त किन्तु बहुभाषिक एव बहुजातीय आकांक्षाओ वाले समाज के सम्मुखीन चुनौतियों के विरुद्ध महामति ने आज से तीन सौ साल पहले एक सर्व रचीकार्य धर्मव्यवस्था की सार्थक पहल की । समाज और सामाजिक सस्थाओं के लिए महामति का सन्देश आज अधिक प्रासंगिक सार्थक और सारगर्भित प्रतीत होता है।
महामति प्राणनाथ ने अपनी मानवतावादी दृष्टि से प्रत्येक मानव में निहित आत्म-चेतना क्ले परमात्म चेतना से जोडा । विभिन्न धर्मों के अल स्वरूप को-उनमें निहित एकमात्र सत्य या हक' कों-परम आनन्द का आस्पद ठहराते हुए-उसे शास्त्रीय धार्मिक एव साम्प्रदायिक बाध्यता या कढि से मुक्त कर-सार्वजनीन करार दिया । इससे वेद कतेब पुराण कुरान और हामी-सामी (हैमिटिक और सेमिटिक) धर्म चिन्तन-प्रणालियो में ब्याज अनेक गाथाओं-आख्यानों एवं आस्थाओं-के समान तथा समानान्तर पक्षो के भेद खुले और अभिप्रेत अर्थ उजागर हुए । विभिन्न धर्मग्रन्थों एव शास्त्रग्रन्थों में निहित विश्वासों को महामति ने व्यावहारिक पाठाधार प्रदान किया और उसे वैश्विक आस्था एवं आदर्श से अनुबन्धित करना चाहा । उनके समन्ययमूलक प्रयासों और उनकी वाणी का सम्यक मूल्यांकन सकीर्ण साम्प्रदायिक परिधि मे असम्भव है। उनके द्वारा प्रवर्तित प्रणामी पन्थ मे वे सभी सम्मिलित थे जो धर्म और सम्प्रदाय की संकीर्ण दीवारों से मुक्त एक व्यापक और बृहत्तर धर्म-समाज बनाने के आग्रही थे । महामति प्रवर्तित वाणी ग्रन्थों-श्रीरास किरतन षटरुति प्रकाश कलश कियामतनामा (छोटा और बडा) खुलासा खिलवत सिनगार सनध मारफत सागर आदि का वृहत् समुच्चय कुलजम सागर या तारतम वाणी भारतीय भक्ति आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण एव मननीय आकर ग्रन्थ है ।
लेखक परिचय
प्रस्तुत क्षिनबध मे (हन्दी के सुपरिचित लेखक एव अध्येता डॉ० रणजीत साहा ने महामति प्राणनाथ के सामाजिक-साहित्यिक एव ऐतिहासिक योगदान का प्रामाणिक आकलन प्रस्तुत किया है । महामति वाङमय पर पिछले तीस वर्षों से निरन्तर कार्यरत डॉ० साहा ने उनकी कई कृतियों का शोधपूर्ण सम्पादन किया है । सुधी पाठकी को इस विनिबध द्वारा महामति के सक्रिय जीवन अदम्य सघर्ष सतेज संकल्प ओर रचनात्मक अवदान का परिचय मिलेगा ।
हिन्दी भवन विश्वभारती शातिनिकेतन तथ दिल्ली विश्वविद्यालय से सबद्ध रहे डॉ० साहा साहित्य अकादेमी मे कई वर्षों तक उपसचिव रहे। सप्रति आप भारतीय भाषा विभाग जवाहरलाल नेहरू वि वि मे अध्यापन के साथ निरंतर लेखन कार्य कर रहे हैं।
अनुक्रम |
||
1 |
महामति:परिचय |
7 |
2 |
सद्गुरु देवचन्द्र और पंथ परम्परा |
15 |
3 |
वाणी विमर्श |
26 |
4 |
ऐतिहासिक परिदृश्य |
64 |
5 |
देश काल से जुड़े सवाल |
77 |
6 |
दार्शनिक परिभूमि |
94 |
7 |
जागनी अभियान और जातीय संहति |
124 |
8 |
सर्वधर्म समभाव |
124 |
9 |
भाषा एवं संरचना |
142 |
परिशिष्ट सन्दर्भ |
146 |
पुस्तक के बारे में
महामति प्राणनाथ (1618-1694) का जीवन, व्यक्तित्व एव वाङ्मय उत्तर मध्यकालीन सन्त-परम्परा की अन्यतम उपलब्धियाँ हैं । सुदूर गुजरात में जन्म लेनेवाले महामति प्राणनाथ का पूर्व नाम मेहराज ठाकुर था । निजनामी सम्प्रदाय के आचार्य सद्गुरु। देवचन्द्र से दीक्षा प्राप्त मेहराज ने जामनगर राज्य मे वजीर का पद भी सँभाला लेकिन अपनी आन्तरिक प्रेरणा सामाजिक उत्तरदायित्व और जागनी जन-अभियान को दिशा देने के महत् संकल्प ने उन्हे एक विशिष्ट पहचान दी । अपने युग की समस्त सामाजिक धार्मिक एव राजनीतिक चिन्ताओ और चुनौतियों का प्रश्नो और प्रातप्रश्नो का देशकाल से जुडी विषम और प्रतिकूल परिरिथतियों का महामति ने डटकर सामना किया । उन्होने समय और समाज की आकांक्षाओ को प्रभावित और आन्दोलित किया । उनके जागनी अभियान को नयी पहचान मिली । व्यक्ति समाज धर्म और विश्व-मंच को जोडकर महामति ने न केवल जन-आन्दोलन आरम्भ किया बल्कि सामाजिक एवं जातीय आवश्यकताओं के अनुरूप समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत किया । जटिल और पीकल प्रश्नो से घिरे आज के विभाजित अभिशप्त किन्तु बहुभाषिक एव बहुजातीय आकांक्षाओ वाले समाज के सम्मुखीन चुनौतियों के विरुद्ध महामति ने आज से तीन सौ साल पहले एक सर्व रचीकार्य धर्मव्यवस्था की सार्थक पहल की । समाज और सामाजिक सस्थाओं के लिए महामति का सन्देश आज अधिक प्रासंगिक सार्थक और सारगर्भित प्रतीत होता है।
महामति प्राणनाथ ने अपनी मानवतावादी दृष्टि से प्रत्येक मानव में निहित आत्म-चेतना क्ले परमात्म चेतना से जोडा । विभिन्न धर्मों के अल स्वरूप को-उनमें निहित एकमात्र सत्य या हक' कों-परम आनन्द का आस्पद ठहराते हुए-उसे शास्त्रीय धार्मिक एव साम्प्रदायिक बाध्यता या कढि से मुक्त कर-सार्वजनीन करार दिया । इससे वेद कतेब पुराण कुरान और हामी-सामी (हैमिटिक और सेमिटिक) धर्म चिन्तन-प्रणालियो में ब्याज अनेक गाथाओं-आख्यानों एवं आस्थाओं-के समान तथा समानान्तर पक्षो के भेद खुले और अभिप्रेत अर्थ उजागर हुए । विभिन्न धर्मग्रन्थों एव शास्त्रग्रन्थों में निहित विश्वासों को महामति ने व्यावहारिक पाठाधार प्रदान किया और उसे वैश्विक आस्था एवं आदर्श से अनुबन्धित करना चाहा । उनके समन्ययमूलक प्रयासों और उनकी वाणी का सम्यक मूल्यांकन सकीर्ण साम्प्रदायिक परिधि मे असम्भव है। उनके द्वारा प्रवर्तित प्रणामी पन्थ मे वे सभी सम्मिलित थे जो धर्म और सम्प्रदाय की संकीर्ण दीवारों से मुक्त एक व्यापक और बृहत्तर धर्म-समाज बनाने के आग्रही थे । महामति प्रवर्तित वाणी ग्रन्थों-श्रीरास किरतन षटरुति प्रकाश कलश कियामतनामा (छोटा और बडा) खुलासा खिलवत सिनगार सनध मारफत सागर आदि का वृहत् समुच्चय कुलजम सागर या तारतम वाणी भारतीय भक्ति आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण एव मननीय आकर ग्रन्थ है ।
लेखक परिचय
प्रस्तुत क्षिनबध मे (हन्दी के सुपरिचित लेखक एव अध्येता डॉ० रणजीत साहा ने महामति प्राणनाथ के सामाजिक-साहित्यिक एव ऐतिहासिक योगदान का प्रामाणिक आकलन प्रस्तुत किया है । महामति वाङमय पर पिछले तीस वर्षों से निरन्तर कार्यरत डॉ० साहा ने उनकी कई कृतियों का शोधपूर्ण सम्पादन किया है । सुधी पाठकी को इस विनिबध द्वारा महामति के सक्रिय जीवन अदम्य सघर्ष सतेज संकल्प ओर रचनात्मक अवदान का परिचय मिलेगा ।
हिन्दी भवन विश्वभारती शातिनिकेतन तथ दिल्ली विश्वविद्यालय से सबद्ध रहे डॉ० साहा साहित्य अकादेमी मे कई वर्षों तक उपसचिव रहे। सप्रति आप भारतीय भाषा विभाग जवाहरलाल नेहरू वि वि मे अध्यापन के साथ निरंतर लेखन कार्य कर रहे हैं।
अनुक्रम |
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1 |
महामति:परिचय |
7 |
2 |
सद्गुरु देवचन्द्र और पंथ परम्परा |
15 |
3 |
वाणी विमर्श |
26 |
4 |
ऐतिहासिक परिदृश्य |
64 |
5 |
देश काल से जुड़े सवाल |
77 |
6 |
दार्शनिक परिभूमि |
94 |
7 |
जागनी अभियान और जातीय संहति |
124 |
8 |
सर्वधर्म समभाव |
124 |
9 |
भाषा एवं संरचना |
142 |
परिशिष्ट सन्दर्भ |
146 |