अनुवादक का निवेदन
पू० योगेश्वरजी की गुजराती आत्मकथा 'प्रकाशना पथ' पढ़ने के बाद ईश्वरीय प्रेरणा से उसका हिन्दी अनुवाद किया। पू० योगेश्वरजी के आशीर्वाद से कार्य पूरा हुआ। इसमें जो कुछ विशेषताएँ हैं वह उनकी हैं, त्रुटियों मेरी।
पिछले पाँच वर्षों से इसे प्रकाशित करने का प्रयास होता रहा। कितना अच्छा होता यदि यह मन्द उनकी पार्थिव उपस्थिति में प्रकाशित होता।
अब तो इसे उनके चरणकमलों में अर्पित कर आशीर्वाद की आकांक्षा है। क्योंकि योगेश्वरजी का पार्थिव शरीर भले ही न हो, किन्तु हमारी संचेतना में वे अभी भी उपस्थित हैं।
इस पुस्तक की पाण्डुलिपि के संशोधन के लिए डॉ० कश्यप गजब, डॉ० पूनमचंद अग्रवाल (प्राकृतिक चिकित्सक) और पं० शेषमणि मिश्र का ऋणी हूँ। मेरे मित्र प्रो० शशिकांत कॉन्ट्रैक्टर ने 'स्वागत' लिखकर पुस्तक को प्रतिष्ठा प्रदान की इसके लिए आभारी हूँ। मेरे मित्र आदरणीय डॉ० माधवप्रसाद आचार्य (आयुर्वेदाचार्य) ने अपनी सम्मति दी, इसके लिए मैं उनका कृतज्ञ हूँ।
टाइप के बाद सम्पूर्ण पाण्डुलिपि के पुनरावलोकन व भूलसुधार में दंतवैद्य पं० देवेन्द्रदत्त कौशिक 'धर्मतीर्थ' और उनके सुपुत्र आचार्य कृष्णकुमार का भी मैं आभारी हूँ।
गुजराती पुस्तक के प्रकाशक साहित्य संगम (सूरत) के संचालक श्री नानुभाई नायक और डाह्याभाई जीवणजी नायक का विशेष रूप से ऋणी हूँ। उन्होंने हिन्दी संस्करण के लिए चित्रों के ब्लॉक प्रदान किये।
अन्त में इस पुस्तक को सुचारु रूप से प्रकाशित करने के लिए 'विश्वविद्यालय प्रकाशन' के संचालक श्री पुरुषोत्तमदास मोदी का उपकार मैं आजीवन नहीं भूल सकूँगा।
हिदी भाषा में मेरा यह प्रथम विनम्र प्रयास है। आशा है पाठकगण कृपापूर्वक मेरे इस प्रयास को स्वीकार करेंगे।
अनुक्रम |
||
1 |
परिवार |
1 |
2 |
आश्रम-जीवन |
5 |
3 |
प्रार्थना का बल |
9 |
4 |
साधना का प्रारंभ |
13 |
5 |
स्वप्न और दर्शन |
17 |
6 |
आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश के पूर्व |
20 |
7 |
हिमालय जाने का प्रयास |
26 |
8 |
शिवानद-आश्रम में अलौकिक अनुभव |
30 |
9 |
त्रिकालज्ञ महात्मा की भविष्यवाणी |
35 |
10 |
कृष्ण-दर्शन का व्रत |
41 |
11 |
कुंडलिनी की अनुभूति |
48 |
12 |
पूर्व-जन्म का ज्ञान |
52 |
13 |
उत्तराखड में तीर्थाटन |
57 |
14 |
राम-कृष्ण की भूमि में |
61 |
15 |
कविवर न्हानालाल से भेंट |
64 |
16 |
महर्षि रमण के आश्रम में |
65 |
17 |
दक्षिणेश्वर के अनुभव |
68 |
18 |
प्रार्थना से टी०बी० गया |
74 |
19 |
माता आनदमयी का सान्निध्य |
79 |
20 |
नेपाली बाबा से भेंट |
82 |
21 |
अलौकिक अनुभव |
87 |
22 |
माँ जगदंबा का दर्शन |
92 |
23 |
अड़तीस दिन का उपवास |
98 |
24 |
दक्षिण की यात्रा |
103 |
25 |
कुंभ मेला |
109 |
26 |
अमरनाथ की यात्रा |
113 |
27 |
जगन्नाथपुरी और भुबनेश्वर |
119 |
28 |
शिरडी की यात्रा |
124 |
29 |
नवरात्र में उपवास |
128 |
30 |
दैवी आवेश के प्रसंग |
133 |
31 |
अनशन व प्रार्थना के दिन |
137 |
32 |
साँईबाबा |
139 |
33 |
ईश्वर -दर्शन कैसे हो? |
144 |
34 |
महात्मा हनुमानदास से मिलन |
148 |
35 |
दिव्य दर्शन |
151 |
36 |
गांधीजी का पूर्व -जन्म |
156 |
37 |
साधना-सिद्धि अभी भी दूर |
158 |
38 |
मसूरी से ऋषिकेश |
162 |
39 |
अद्भुत अनुभूति 'सिद्धि-प्राप्ति' |
166 |
40 |
चंपकभाई चले गये |
173 |
41 |
'गौरव-ग्रन्थ' पर गांधीजी की सम्मति |
179 |
42 |
अमृतसर में वेदान्त-सम्मेलन |
186 |
परिशिष्ट |
||
योगेश्वरजी का शेष जीवन |
190 |
अनुवादक का निवेदन
पू० योगेश्वरजी की गुजराती आत्मकथा 'प्रकाशना पथ' पढ़ने के बाद ईश्वरीय प्रेरणा से उसका हिन्दी अनुवाद किया। पू० योगेश्वरजी के आशीर्वाद से कार्य पूरा हुआ। इसमें जो कुछ विशेषताएँ हैं वह उनकी हैं, त्रुटियों मेरी।
पिछले पाँच वर्षों से इसे प्रकाशित करने का प्रयास होता रहा। कितना अच्छा होता यदि यह मन्द उनकी पार्थिव उपस्थिति में प्रकाशित होता।
अब तो इसे उनके चरणकमलों में अर्पित कर आशीर्वाद की आकांक्षा है। क्योंकि योगेश्वरजी का पार्थिव शरीर भले ही न हो, किन्तु हमारी संचेतना में वे अभी भी उपस्थित हैं।
इस पुस्तक की पाण्डुलिपि के संशोधन के लिए डॉ० कश्यप गजब, डॉ० पूनमचंद अग्रवाल (प्राकृतिक चिकित्सक) और पं० शेषमणि मिश्र का ऋणी हूँ। मेरे मित्र प्रो० शशिकांत कॉन्ट्रैक्टर ने 'स्वागत' लिखकर पुस्तक को प्रतिष्ठा प्रदान की इसके लिए आभारी हूँ। मेरे मित्र आदरणीय डॉ० माधवप्रसाद आचार्य (आयुर्वेदाचार्य) ने अपनी सम्मति दी, इसके लिए मैं उनका कृतज्ञ हूँ।
टाइप के बाद सम्पूर्ण पाण्डुलिपि के पुनरावलोकन व भूलसुधार में दंतवैद्य पं० देवेन्द्रदत्त कौशिक 'धर्मतीर्थ' और उनके सुपुत्र आचार्य कृष्णकुमार का भी मैं आभारी हूँ।
गुजराती पुस्तक के प्रकाशक साहित्य संगम (सूरत) के संचालक श्री नानुभाई नायक और डाह्याभाई जीवणजी नायक का विशेष रूप से ऋणी हूँ। उन्होंने हिन्दी संस्करण के लिए चित्रों के ब्लॉक प्रदान किये।
अन्त में इस पुस्तक को सुचारु रूप से प्रकाशित करने के लिए 'विश्वविद्यालय प्रकाशन' के संचालक श्री पुरुषोत्तमदास मोदी का उपकार मैं आजीवन नहीं भूल सकूँगा।
हिदी भाषा में मेरा यह प्रथम विनम्र प्रयास है। आशा है पाठकगण कृपापूर्वक मेरे इस प्रयास को स्वीकार करेंगे।
अनुक्रम |
||
1 |
परिवार |
1 |
2 |
आश्रम-जीवन |
5 |
3 |
प्रार्थना का बल |
9 |
4 |
साधना का प्रारंभ |
13 |
5 |
स्वप्न और दर्शन |
17 |
6 |
आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश के पूर्व |
20 |
7 |
हिमालय जाने का प्रयास |
26 |
8 |
शिवानद-आश्रम में अलौकिक अनुभव |
30 |
9 |
त्रिकालज्ञ महात्मा की भविष्यवाणी |
35 |
10 |
कृष्ण-दर्शन का व्रत |
41 |
11 |
कुंडलिनी की अनुभूति |
48 |
12 |
पूर्व-जन्म का ज्ञान |
52 |
13 |
उत्तराखड में तीर्थाटन |
57 |
14 |
राम-कृष्ण की भूमि में |
61 |
15 |
कविवर न्हानालाल से भेंट |
64 |
16 |
महर्षि रमण के आश्रम में |
65 |
17 |
दक्षिणेश्वर के अनुभव |
68 |
18 |
प्रार्थना से टी०बी० गया |
74 |
19 |
माता आनदमयी का सान्निध्य |
79 |
20 |
नेपाली बाबा से भेंट |
82 |
21 |
अलौकिक अनुभव |
87 |
22 |
माँ जगदंबा का दर्शन |
92 |
23 |
अड़तीस दिन का उपवास |
98 |
24 |
दक्षिण की यात्रा |
103 |
25 |
कुंभ मेला |
109 |
26 |
अमरनाथ की यात्रा |
113 |
27 |
जगन्नाथपुरी और भुबनेश्वर |
119 |
28 |
शिरडी की यात्रा |
124 |
29 |
नवरात्र में उपवास |
128 |
30 |
दैवी आवेश के प्रसंग |
133 |
31 |
अनशन व प्रार्थना के दिन |
137 |
32 |
साँईबाबा |
139 |
33 |
ईश्वर -दर्शन कैसे हो? |
144 |
34 |
महात्मा हनुमानदास से मिलन |
148 |
35 |
दिव्य दर्शन |
151 |
36 |
गांधीजी का पूर्व -जन्म |
156 |
37 |
साधना-सिद्धि अभी भी दूर |
158 |
38 |
मसूरी से ऋषिकेश |
162 |
39 |
अद्भुत अनुभूति 'सिद्धि-प्राप्ति' |
166 |
40 |
चंपकभाई चले गये |
173 |
41 |
'गौरव-ग्रन्थ' पर गांधीजी की सम्मति |
179 |
42 |
अमृतसर में वेदान्त-सम्मेलन |
186 |
परिशिष्ट |
||
योगेश्वरजी का शेष जीवन |
190 |