आमुख
गान कला सों हीन हिय, समुझहु ऊसर ताहि ।
प्रेम विटप कैसे उगे, उगे तहँ जर जाहि ।।
सम्राट अकबर के शासन काल में संगीत विद्या सर्वोच्च शिखर तक पहुँच चुकी थी परन्तु इसके बाद ही सम्राट औरंगजेब के समय मै यह विद्या भारत से लुप्त सी हो गई । इसका एकमात्र कारण यही था कि औरंगजेब को संगीत से प्रेम नहीं था और कदाचित् यही कारण उसके निष्ठुर तथा निर्दयी होने का था, जैसाकि उपर्युक्त दोहे से प्रकट है।
हर्ष का विषय है कि हमारी सरकार के शिक्षा विभाग ने संगीत को पाठ्य क्रम में स्थान देकर संगीत कला की उन्नति में प्रशंसनीय सहयोग दिया है। इसके लिए समस्त संगीत प्रेमी कृतज्ञ हैं। जो संगीत कला औरंगजेब के समय से लुप्त सी हो रही थी, आज घर घर में प्रचलित हो रही है।
अब कमी केवल यह है कि छात्रों तथा छात्राओं को संगीत शास्त्र (Musice Theory) का ज्ञान यथेष्ट रूप में नहीं जिसका कारण आवश्यक पुस्तकों का अभाव है। इस पुस्तक को लिखते समय यही ध्यान रखा गया है कि जो भी राग या रागिनियाँ इसमें दिए जाएँ, उन्हें पढ़कर उनका आवस्यक ज्ञान हो जाए। इसमें 32 रागों का विवरण तथा 14 तालों का परिचय दिया गया है तालों की दुगुन आदि भी दिखाई गई है। विद्यार्थियों को राग पहचानने का अभ्यास कराने हेतु आवश्यक रागों के कुछ आलाप भी दिए हैं। तारवाद्यों का विवरण भी दिया गया है, जोकि विद्यार्थियों को जानना जरूरी है। कुछ उपयोगी लेख पुस्तक के अन्त में दे दिए हैं, जिससे संगीत से सम्बन्ध रखनेवाले विषयों पर लेख लिखने में विद्यार्थियों को सहायता मिल सके। यदि विद्यार्थी समाज इस पुस्तक से लाभ उठा सका, तो मैं अपना परिश्रम सफल समझूँगा ।
अनुक्रम |
|
आमुख |
5 |
भारतीय संगीत का संक्षिप्त इतिहास |
6 |
संगीत और जीवन |
10 |
सांगीतिक शब्दों की परिभाषाएँ |
14 |
राग विवरण |
42 |
गायक के सोलह अवगुण |
63 |
ताल वाद्य वादकों के गुण दोष |
65 |
ताल परिचय |
67 |
आलाप द्वारा रागों की पहचान |
79 |
वाद्य यंत्र परिचय |
90 |
संगीत सम्बन्धी |
99 |
संगीतज्ञ परिचय |
119 |
संगीत सम्बन्धी पारिभाषिक शब्द |
157 |
आलाप द्वारा रागों की पहचान के उत्तर |
160 |
संगीतलिपि चिह्न परिचय |
161 |
आमुख
गान कला सों हीन हिय, समुझहु ऊसर ताहि ।
प्रेम विटप कैसे उगे, उगे तहँ जर जाहि ।।
सम्राट अकबर के शासन काल में संगीत विद्या सर्वोच्च शिखर तक पहुँच चुकी थी परन्तु इसके बाद ही सम्राट औरंगजेब के समय मै यह विद्या भारत से लुप्त सी हो गई । इसका एकमात्र कारण यही था कि औरंगजेब को संगीत से प्रेम नहीं था और कदाचित् यही कारण उसके निष्ठुर तथा निर्दयी होने का था, जैसाकि उपर्युक्त दोहे से प्रकट है।
हर्ष का विषय है कि हमारी सरकार के शिक्षा विभाग ने संगीत को पाठ्य क्रम में स्थान देकर संगीत कला की उन्नति में प्रशंसनीय सहयोग दिया है। इसके लिए समस्त संगीत प्रेमी कृतज्ञ हैं। जो संगीत कला औरंगजेब के समय से लुप्त सी हो रही थी, आज घर घर में प्रचलित हो रही है।
अब कमी केवल यह है कि छात्रों तथा छात्राओं को संगीत शास्त्र (Musice Theory) का ज्ञान यथेष्ट रूप में नहीं जिसका कारण आवश्यक पुस्तकों का अभाव है। इस पुस्तक को लिखते समय यही ध्यान रखा गया है कि जो भी राग या रागिनियाँ इसमें दिए जाएँ, उन्हें पढ़कर उनका आवस्यक ज्ञान हो जाए। इसमें 32 रागों का विवरण तथा 14 तालों का परिचय दिया गया है तालों की दुगुन आदि भी दिखाई गई है। विद्यार्थियों को राग पहचानने का अभ्यास कराने हेतु आवश्यक रागों के कुछ आलाप भी दिए हैं। तारवाद्यों का विवरण भी दिया गया है, जोकि विद्यार्थियों को जानना जरूरी है। कुछ उपयोगी लेख पुस्तक के अन्त में दे दिए हैं, जिससे संगीत से सम्बन्ध रखनेवाले विषयों पर लेख लिखने में विद्यार्थियों को सहायता मिल सके। यदि विद्यार्थी समाज इस पुस्तक से लाभ उठा सका, तो मैं अपना परिश्रम सफल समझूँगा ।
अनुक्रम |
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आमुख |
5 |
भारतीय संगीत का संक्षिप्त इतिहास |
6 |
संगीत और जीवन |
10 |
सांगीतिक शब्दों की परिभाषाएँ |
14 |
राग विवरण |
42 |
गायक के सोलह अवगुण |
63 |
ताल वाद्य वादकों के गुण दोष |
65 |
ताल परिचय |
67 |
आलाप द्वारा रागों की पहचान |
79 |
वाद्य यंत्र परिचय |
90 |
संगीत सम्बन्धी |
99 |
संगीतज्ञ परिचय |
119 |
संगीत सम्बन्धी पारिभाषिक शब्द |
157 |
आलाप द्वारा रागों की पहचान के उत्तर |
160 |
संगीतलिपि चिह्न परिचय |
161 |