लेखक परिचय
उमेश शर्मा
अनेक ज्योतिष संस्थाओं द्वारा ज्योतिष दिवाकर ज्योतिष भूषण ज्योतिष वरिधि आदि अनेक मानद उपाधियों से सम्मानित श्री उमेश शर्मा लगभग 20 वर्षो से ज्योतिष पर कार्य कर रहे हैं। इनका जन्म 24 अप्रैल 1955 को भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ। सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.) से विज्ञान विषय से स्नातक होने के पश्चात कुछ समय तक रसायन उद्योग में कार्य किया। उसके बाद ज्योतिष शास्त्र को जीवन बना लिया तथा इसी संदर्भ में देश के अनेक स्थानों की यात्रा तथा ज्योतिर्विद महासभा की स्थापना की जिसके द्वारा लाल-किताब पर गहन शोध व अध्ययन का कार्य उल्लेखनीय है।
पत्र-पत्रिकाओं में लेख दिल्ली से प्रकाशित समाचार पत्र ''फ्लेश'' में ज्योतिष का स्थायी स्तम्भ का लेखन वर्षफल (लाल किताब) पुस्तक जिसमें लाल किताब के मूल सिद्धान्तों की आधुनिक व्याख्या तथा साधारण समस्याओं और उनके समाधान हेतु यथा स्थान पर उपाय रचनाकार के शोध व अध्ययन का स्वयंसिद्ध परिचय है।
प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने वास्तु शास्त्र में प्रचलित सिद्धान्तों की सरल व्याख्या करने के साथ-साथ अपने अनुभव सिद्ध सरल उपायों का भी उल्लेख किया है।
भूमिका
मानव एक सामाजिक प्राणी है । अपने उद्भवकाल से यह किसी न किसी घर में रहता आया ही है। यदि हम पाषाण काल की बात ही लें तो उस समय भी यह पत्थरों की गुफाओं में रहता था। उस समय इसके लिए वे भव्य मकान से कम नहीं थे, भले ही वे प्राकृतिक प्रदत्त हों। जैसे-जैसे उसका ज्ञान बढ़ता गया, वैसे-वैसे उसने अपने रहन-सहन के तरीके में भी बदलाव किया । और मानव की इसी इच्छा शक्ति ने अच्छे से अच्छा भवन बनाने की कला को जन्म दिया।
आजकल भवन निर्माण क्षेत्र एक विस्तृत उद्योग का रूप ले चुका है और यह निरंतर उन्नति के शिखर की ओर अग्रसर है । लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि प्राचीन काल में भवन निर्माण उन्नति के शिखर पर नहीं था, क्यांकि प्राचीन आर्य ऐसे-ऐसे सुंदर और मजबूत तथा मनुष्यों को मुग्ध करनेवाले गृह बनाया करते थे कि जिन्हें खण्डहरात के रूप में देखकर या जिनका हाल पढ़कर आज के भवन निर्माता भी दांतों तले अंगुली दबाते हैं । फाह्यान ने अशोक के भवन को देखकर कहा था कि यह निश्चय ही देवताओं ने बनाया होगा । महाभारत के समय में मय भवन इतना कलात्मक था कि किसी भी अपरिचित को जल और थल में भेद प्रतीत ही नहीं होने पाता था । यही नहीं जान सकते थे कि यह जगह द्वार है या नहीं । दुर्योधनादि उस भवन में जाकर थल को जल समझ वस्त्र उठाने पर और जल को थल समझ वस्त्र बिना उठाये ही चलने पर हंसी के पात्र हुए थे, इस ऐतिहासिक सच्चाई से भला कौन इंकार कर सकता है? भवन निर्माण की भव्यता वास्तु के वास्तविक सिद्धांतों पर आधारित होती है, इसलिए इस पुस्तक में वास्तुशास्त्र के इन्हीं सिद्धांतों को सरल रूप में वर्णित करने का प्रयास किया गया है ।
आशा है कि पाठकगण भारत की इस प्राचीन विद्या से लाभान्वितहोंगे । हमारा उद्देश्य हमेशा भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान एव सस्कृतिसे लोगों को साहित्य के माध्यम से अवगत कराने का रहा है । इसलिए इस पुस्तक की रचना किसी व्यवसायिक लाभ के लिए नहीं बल्कि अपनी संस्कृति एवं ज्ञान-विज्ञान की तह तक जाने उसका विश्लेषण करने और इस क्षेत्र में अनुसंधान के लिए शोधार्थियों को प्रेरित करने के लिए की गयी है। इसी आशा और विश्वास के साथ यह ग्रंथ आपके सुयोग्य हाथों में सौंपा जा रहा है।
विषय-सूची
समर्पण
6
7
1
वास्तु और वास्तुपुरुष
9
2
वास्तु और पंचमहाभूत
11
3
भूमि और प्लाटों का चयन
16
4
आदर्श आवास का निर्माण
19
5
वास्तु में दिशा का महत्व
30
वास्तु के गुण और दोष
40
बिना तोड़फोड़ के वास्तुदोष निवारण
45
8
वास्तुदोष निवारक यंत्र
50
फेंग-शुई से वास्तुदोष निवारण
53
10
वास्तुदोष निवारक वस्तुएँ
61
वास्तुसुधार से संतानप्राप्ति
66
12
वास्तुदोष निवारक टोटके
68
13
वास्तुदोष विश्लेषण
70
14
पूर्ण विज्ञान है वास्तुशास्त्र
75
15
घर की साज-सज्जा
77
भवन का नामकरण
79
17
ज्योतिष और गृहसुख योग
82
18
उद्योग में वास्तु की उपयोगिता
84
वास्तु और लाल किताब
88
20
समस्त वास्तुज्ञान भारत की देन
93
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