लेखक के विषय में
सुरेश शर्मा
जन्म: 5 मई 1951 (दिल्ली)
शिक्षा: बी.एस.सी, एल.एल.बी., एम.ए. समाजशास्त्र संप्रति: एडवोकेट, दिल्ली
अन्य पुस्तक: 'ज्योतिष आरंभिका'
शनिगाथा
नौ ग्रहों में सबसे अधिक केंवल शनि ग्रह के ही' कोप या कृपा की बातें ज्योतिषीय नजरिये से महत्वपूर्ण रही हैं । शनि है भी अनूठा और महान ग्रह, जो कुंडली में शुभ
हालत का हो या शुभ कर लिया जाए तो यह सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति आदि सबसे बढ़कर शुभ फलों को देने वाला ग्रह कहा गया है ।
इस पुस्तक में शनि ग्रह से संबंधित मिथक कहानियों का कोई वर्णन नहीं है; बल्कि इस ग्रह के व्यक्ति पर पड़ने वाले शुभ या अशुभ प्रभावों व उपायों का लाल किताब पर आधारित विस्तृत वर्णन है।
अपनी बात
पिछले कुछ वर्षो से लाल किताब ज्योतिष का महत्व व इसमें लोगों की रुचि अभूतपूर्व स्तर पर बढ़ी हैइसका प्रमाण है इस पद्धति पर थोड़े समय के अंतराल में ही अनेक पुस्तकों का प्रकाशन । ज्योतिष की कई पत्रिकाओं के लालकिताब । विशेषांकों का प्रतिवर्ष प्रकाशन व लाल किताब के उपायों के प्रति ज्योतिषियों व ज्योतिष परामर्शकर्ताओं के विश्वास का बढ़ना भी ज्योतिष की इस पद्धति का। लोकप्रियता के सूचक हैं।
लाल किताब पर आधारित यूं तो अनगिनत पुस्तकें उपलब्ध हैं, परन्तु इस पद्धति पर आधारित केवल किसी एक ग्रह का विस्तृत वर्णन व व्याख्या करने वाली संभवत: कोई पुस्तक नहीं है, जिससे कि किसी ग्रह विशेष के बारे में विस्तार एवं सूक्ष्मता से अधिक से अधिक जाना जा सके। मूलत: इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुस्तक के रूप में कुछ लिखने का विचार पिछले कई महीनों से मन में था । अन्य ग्रहों की तुलना में केवल शनि ग्रह के ही कोप या कृपा का महत्व ज्योतिषियों व ज्योतिष में विश्वास करने वाले लोगों के नजरिये में सबसे अधिक रहा है। शनि है भी एक अनूठा और महान ग्रह, जो कुंडली में यदि शुभ हालत का हो या शुभ का लिया जाए तो यह सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति आदि सबसे बढ़कर शुभ फलों को देने वाला ग्रह कहा गया है। शनि की इस विशेषता के कारण भी सबसे पहले इसी ग्रह पर लिखने का विचार बना।
लाल किताब के अंतिम व सबसे बड़े संस्करण सन् में शनि ग्रह का जो भी विवरण या वर्णन, फलित व उपायों के संबंध में उपलब्ध है, वह पूरा का पूरा पुस्तक में सरल भाषा में देने का प्रयास किया गया है। साथ ही लाल किताब के लगभग सभी महत्वपूर्ण सिद्धांत, नियम व परिभाषाएं भी सरल भाषा में पुस्तक के परिशिष्ट भाग में उपलब्ध हैं, जोकि केवल शनि ही नहीं, दूसरे ग्रहों के बोरे में भी प्रभावी रूप से समझने के लिए आवश्यक हैं।
किसी भी पुस्तक में अनजाने में हुई कुछ न कुछ त्रुटियाँ रह जानी संभव होती हैं। मूल लाल किताब सन् का संस्करण भी इसका अपवाद नहीं है। केवल एक ग्रह के ही संबंध में विस्तार से लिखने का एक लाभ यह भी हुआ है कि शनि ग्रह से संबंधित मूल लाल किताब में विद्यमान कुछ त्रुटियों की ओर भी ध्यान गया और उनके निराकरण का भी प्रयास संभव हो सका है । जैसे कि बुध भाव संख्या छ: में होने के समय शनि ग्रह की स्थिति का प्रभाव देखें, शनि की युति का छठे भाव में फल, शनिमंगल की दसवें भाव में युति के वर्णन में मंगल के साथ बुध ग्रह का जिक्र देखें शनिमंगल की युति का दसवें भाव में फल और इसी तरह की कई विसंगतियों की चर्चा व निवारण का प्रयास भी इस पुस्तक में किया गया है । इस दृष्टिकोण से यह पुस्तक कुछ हद तक मूल लाल किताब का शनि ग्रह से संबंधित समीक्षात्मक अध्ययन भी कहा जा सकता है, जो इस पद्धति के विशेष जानकारों को संभवत: रुचिकर लगे।
लाल किताब में हर ग्रह की व्याख्या और फलित संबंधित सामग्री में कुछ विशेष प्रकार की निशानियों का भी जिक्र है । इस प्रकार की निशानियां व्यक्ति के खुद के आचारव्यवहार, उसके कारोबार, रिश्तेदारों व दूसरी अन्य कई प्रकार की खुद से जुड़ी स्थितियों, हालातों व चीजों के माध्यम से व्यक्त की हुई हैं । इसी तरह की शनि ग्रह से भी संबंधित अनेक निशानियां हैं, जिन सभी का उल्लेख प्रस्तुत पुस्तक में विस्तार से किया गया है । इनमें से बहुतसी निशानियां किसी भी व्यक्ति के संबंध में बिना जन्म कुंडली को आधार बनाए भी, शनि ग्रह के व्यक्ति पर पड़ने वाले शुभ या अशुभ प्रभावों की ओर सशक्त इशारा जरूर करती हैं। इस लिहाज से यह पुस्तक जिनके पास अपनी जन्म कुंडली नहीं है, उनके लिए भी पठनीय व उपयोगी हो सकती है।
लाल किताब पद्धति से मेरा पहला परिचय आज से लगभग वर्ष पूर्व श्री बृजमोहन सेखड़ी से मुलाकात के दौरान हुआ था, जो लाल किताब पर हिन्दी में पुस्तक लिखने वाले सभवत: पहले लेखक हैं। उसी समय इस पद्धति के बारे में मेरी जिज्ञासा जागृत हो चुकी थी, परन्तु विश्वसनीय पठन सामग्री उपलब्ध न होने के कारण मैं चाहकर भी अपेक्षित दुतगति से इस पद्धति को 'कुछ' समझ पाने में अक्षम रहा। पिछले वर्षों से लाल किताब के मूर्धन्य मनीषी प कृष्ण अशांत के गुरुतापूर्ण सतत् सानिध्य में रहकर मुझे इस पद्धति से संबंधित समुचित सामग्री व दिशा मिली, जिसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूं । अत: इस पुस्तक के लिखे जाने में मैं इनके प्रति अपना हृदय से आभार प्रकट करता हूं।
अनुक्रम |
||
अपनी बात |
VI=VII |
|
विषय प्रवेश |
VIII-XII |
|
1 |
शनि ग्रह: कुछ विशेष संदर्भ |
13-24 |
शनि के प्रभाव वाले व्यक्ति की पहचान |
13 |
|
शनि ग्रह का व्यक्ति की दिमागी हालत पर असर |
15 |
|
शनि ग्रह का व्यक्ति के मकान से संबंध |
17 |
|
शनि से बनने वाला पैतृक दीप (ऋणपितृ) |
21 |
|
2 |
शनि का बारह भावों में फल |
25-66 |
शनि का सामान्य वर्णन |
25 |
|
पहले भाव में शनि |
24 |
|
दूसरे भाव में शनि |
26 |
|
तीसरे भाव में शनि |
40 |
|
चौथे भाव में शनि |
42 |
|
पांचवें भाव में शनि |
45 |
|
छठे भाव में शनि |
47 |
|
सातवें भाव में शनि |
51 |
|
आठवें भाव में शनि |
53 |
|
नौवें भाव में शनि |
55 |
|
दसवें भाव में शनि |
58 |
|
ग्यारहवें भाव में शनि |
60 |
|
बारहवें भाव में शनि |
64 |
|
3 |
शनिबृहस्पति की युति का बारह भावों में फल |
67-73 |
4 |
शनिसूर्य की युति का बारह भावों में फल |
74-81 |
5 |
शनिचन्द्रमा की युति का बारह भावों में फल |
82-88 |
6 |
शनिमंगल की युति का बारह भावों में फल |
89-97 |
7 |
शनिबुध की युति का बारह भावों में फल |
98-108 |
8 |
शनिशुक्र की युति का बारह भावों में फल |
109-123 |
9 |
शनिराहु की युति का बारह भावों में फल |
124-140 |
10 |
शनिकेतु की युति का बारह भावों में फल |
141-157 |
11 |
शनि सहित तीन ग्रहों की युतियों का फल |
158-173 |
12 |
शनि सहित चार ग्रहों की युतियों का फल |
174-180 |
13 |
शनि सहित पांच व पांच से अधिक ग्रहों की युति का फल |
181-182 |
14 |
परिशिष्ट: लाल किताब के मूल सिद्धांत व नियम |
183-224 |
1 |
परिचय |
183 |
2 |
लाल किताब के अनुसार कुंडली निर्माण |
185 |
3 |
जन्मकुंडली के बारह भावों के कारकत्व |
187 |
4 |
लाल किताब में ग्रहों व राशियों से संबंधित नियम नौ ग्रह, वाक्त राशियां, ऊंचनीच व स्वामी ग्रह |
191 |
5 |
कुंडली के बारह भावों और ग्रहों का संबंध |
193 |
6 |
ग्रहों से संबंधित अन्य विवरण |
196 |
7 |
ग्रहों से संबंधित विशेष सामग्री |
201 |
8 |
ग्रहों के युति में होने के नियम ग्रहों की दृष्टियों के प्रमुख नियम |
212 |
9 |
उपाय संबंधित नियम |
218 |
10 |
वर्षफल बनाने की विधि |
218 |
वर्षफल चार्ट |
लेखक के विषय में
सुरेश शर्मा
जन्म: 5 मई 1951 (दिल्ली)
शिक्षा: बी.एस.सी, एल.एल.बी., एम.ए. समाजशास्त्र संप्रति: एडवोकेट, दिल्ली
अन्य पुस्तक: 'ज्योतिष आरंभिका'
शनिगाथा
नौ ग्रहों में सबसे अधिक केंवल शनि ग्रह के ही' कोप या कृपा की बातें ज्योतिषीय नजरिये से महत्वपूर्ण रही हैं । शनि है भी अनूठा और महान ग्रह, जो कुंडली में शुभ
हालत का हो या शुभ कर लिया जाए तो यह सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति आदि सबसे बढ़कर शुभ फलों को देने वाला ग्रह कहा गया है ।
इस पुस्तक में शनि ग्रह से संबंधित मिथक कहानियों का कोई वर्णन नहीं है; बल्कि इस ग्रह के व्यक्ति पर पड़ने वाले शुभ या अशुभ प्रभावों व उपायों का लाल किताब पर आधारित विस्तृत वर्णन है।
अपनी बात
पिछले कुछ वर्षो से लाल किताब ज्योतिष का महत्व व इसमें लोगों की रुचि अभूतपूर्व स्तर पर बढ़ी हैइसका प्रमाण है इस पद्धति पर थोड़े समय के अंतराल में ही अनेक पुस्तकों का प्रकाशन । ज्योतिष की कई पत्रिकाओं के लालकिताब । विशेषांकों का प्रतिवर्ष प्रकाशन व लाल किताब के उपायों के प्रति ज्योतिषियों व ज्योतिष परामर्शकर्ताओं के विश्वास का बढ़ना भी ज्योतिष की इस पद्धति का। लोकप्रियता के सूचक हैं।
लाल किताब पर आधारित यूं तो अनगिनत पुस्तकें उपलब्ध हैं, परन्तु इस पद्धति पर आधारित केवल किसी एक ग्रह का विस्तृत वर्णन व व्याख्या करने वाली संभवत: कोई पुस्तक नहीं है, जिससे कि किसी ग्रह विशेष के बारे में विस्तार एवं सूक्ष्मता से अधिक से अधिक जाना जा सके। मूलत: इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुस्तक के रूप में कुछ लिखने का विचार पिछले कई महीनों से मन में था । अन्य ग्रहों की तुलना में केवल शनि ग्रह के ही कोप या कृपा का महत्व ज्योतिषियों व ज्योतिष में विश्वास करने वाले लोगों के नजरिये में सबसे अधिक रहा है। शनि है भी एक अनूठा और महान ग्रह, जो कुंडली में यदि शुभ हालत का हो या शुभ का लिया जाए तो यह सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति आदि सबसे बढ़कर शुभ फलों को देने वाला ग्रह कहा गया है। शनि की इस विशेषता के कारण भी सबसे पहले इसी ग्रह पर लिखने का विचार बना।
लाल किताब के अंतिम व सबसे बड़े संस्करण सन् में शनि ग्रह का जो भी विवरण या वर्णन, फलित व उपायों के संबंध में उपलब्ध है, वह पूरा का पूरा पुस्तक में सरल भाषा में देने का प्रयास किया गया है। साथ ही लाल किताब के लगभग सभी महत्वपूर्ण सिद्धांत, नियम व परिभाषाएं भी सरल भाषा में पुस्तक के परिशिष्ट भाग में उपलब्ध हैं, जोकि केवल शनि ही नहीं, दूसरे ग्रहों के बोरे में भी प्रभावी रूप से समझने के लिए आवश्यक हैं।
किसी भी पुस्तक में अनजाने में हुई कुछ न कुछ त्रुटियाँ रह जानी संभव होती हैं। मूल लाल किताब सन् का संस्करण भी इसका अपवाद नहीं है। केवल एक ग्रह के ही संबंध में विस्तार से लिखने का एक लाभ यह भी हुआ है कि शनि ग्रह से संबंधित मूल लाल किताब में विद्यमान कुछ त्रुटियों की ओर भी ध्यान गया और उनके निराकरण का भी प्रयास संभव हो सका है । जैसे कि बुध भाव संख्या छ: में होने के समय शनि ग्रह की स्थिति का प्रभाव देखें, शनि की युति का छठे भाव में फल, शनिमंगल की दसवें भाव में युति के वर्णन में मंगल के साथ बुध ग्रह का जिक्र देखें शनिमंगल की युति का दसवें भाव में फल और इसी तरह की कई विसंगतियों की चर्चा व निवारण का प्रयास भी इस पुस्तक में किया गया है । इस दृष्टिकोण से यह पुस्तक कुछ हद तक मूल लाल किताब का शनि ग्रह से संबंधित समीक्षात्मक अध्ययन भी कहा जा सकता है, जो इस पद्धति के विशेष जानकारों को संभवत: रुचिकर लगे।
लाल किताब में हर ग्रह की व्याख्या और फलित संबंधित सामग्री में कुछ विशेष प्रकार की निशानियों का भी जिक्र है । इस प्रकार की निशानियां व्यक्ति के खुद के आचारव्यवहार, उसके कारोबार, रिश्तेदारों व दूसरी अन्य कई प्रकार की खुद से जुड़ी स्थितियों, हालातों व चीजों के माध्यम से व्यक्त की हुई हैं । इसी तरह की शनि ग्रह से भी संबंधित अनेक निशानियां हैं, जिन सभी का उल्लेख प्रस्तुत पुस्तक में विस्तार से किया गया है । इनमें से बहुतसी निशानियां किसी भी व्यक्ति के संबंध में बिना जन्म कुंडली को आधार बनाए भी, शनि ग्रह के व्यक्ति पर पड़ने वाले शुभ या अशुभ प्रभावों की ओर सशक्त इशारा जरूर करती हैं। इस लिहाज से यह पुस्तक जिनके पास अपनी जन्म कुंडली नहीं है, उनके लिए भी पठनीय व उपयोगी हो सकती है।
लाल किताब पद्धति से मेरा पहला परिचय आज से लगभग वर्ष पूर्व श्री बृजमोहन सेखड़ी से मुलाकात के दौरान हुआ था, जो लाल किताब पर हिन्दी में पुस्तक लिखने वाले सभवत: पहले लेखक हैं। उसी समय इस पद्धति के बारे में मेरी जिज्ञासा जागृत हो चुकी थी, परन्तु विश्वसनीय पठन सामग्री उपलब्ध न होने के कारण मैं चाहकर भी अपेक्षित दुतगति से इस पद्धति को 'कुछ' समझ पाने में अक्षम रहा। पिछले वर्षों से लाल किताब के मूर्धन्य मनीषी प कृष्ण अशांत के गुरुतापूर्ण सतत् सानिध्य में रहकर मुझे इस पद्धति से संबंधित समुचित सामग्री व दिशा मिली, जिसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूं । अत: इस पुस्तक के लिखे जाने में मैं इनके प्रति अपना हृदय से आभार प्रकट करता हूं।
अनुक्रम |
||
अपनी बात |
VI=VII |
|
विषय प्रवेश |
VIII-XII |
|
1 |
शनि ग्रह: कुछ विशेष संदर्भ |
13-24 |
शनि के प्रभाव वाले व्यक्ति की पहचान |
13 |
|
शनि ग्रह का व्यक्ति की दिमागी हालत पर असर |
15 |
|
शनि ग्रह का व्यक्ति के मकान से संबंध |
17 |
|
शनि से बनने वाला पैतृक दीप (ऋणपितृ) |
21 |
|
2 |
शनि का बारह भावों में फल |
25-66 |
शनि का सामान्य वर्णन |
25 |
|
पहले भाव में शनि |
24 |
|
दूसरे भाव में शनि |
26 |
|
तीसरे भाव में शनि |
40 |
|
चौथे भाव में शनि |
42 |
|
पांचवें भाव में शनि |
45 |
|
छठे भाव में शनि |
47 |
|
सातवें भाव में शनि |
51 |
|
आठवें भाव में शनि |
53 |
|
नौवें भाव में शनि |
55 |
|
दसवें भाव में शनि |
58 |
|
ग्यारहवें भाव में शनि |
60 |
|
बारहवें भाव में शनि |
64 |
|
3 |
शनिबृहस्पति की युति का बारह भावों में फल |
67-73 |
4 |
शनिसूर्य की युति का बारह भावों में फल |
74-81 |
5 |
शनिचन्द्रमा की युति का बारह भावों में फल |
82-88 |
6 |
शनिमंगल की युति का बारह भावों में फल |
89-97 |
7 |
शनिबुध की युति का बारह भावों में फल |
98-108 |
8 |
शनिशुक्र की युति का बारह भावों में फल |
109-123 |
9 |
शनिराहु की युति का बारह भावों में फल |
124-140 |
10 |
शनिकेतु की युति का बारह भावों में फल |
141-157 |
11 |
शनि सहित तीन ग्रहों की युतियों का फल |
158-173 |
12 |
शनि सहित चार ग्रहों की युतियों का फल |
174-180 |
13 |
शनि सहित पांच व पांच से अधिक ग्रहों की युति का फल |
181-182 |
14 |
परिशिष्ट: लाल किताब के मूल सिद्धांत व नियम |
183-224 |
1 |
परिचय |
183 |
2 |
लाल किताब के अनुसार कुंडली निर्माण |
185 |
3 |
जन्मकुंडली के बारह भावों के कारकत्व |
187 |
4 |
लाल किताब में ग्रहों व राशियों से संबंधित नियम नौ ग्रह, वाक्त राशियां, ऊंचनीच व स्वामी ग्रह |
191 |
5 |
कुंडली के बारह भावों और ग्रहों का संबंध |
193 |
6 |
ग्रहों से संबंधित अन्य विवरण |
196 |
7 |
ग्रहों से संबंधित विशेष सामग्री |
201 |
8 |
ग्रहों के युति में होने के नियम ग्रहों की दृष्टियों के प्रमुख नियम |
212 |
9 |
उपाय संबंधित नियम |
218 |
10 |
वर्षफल बनाने की विधि |
218 |
वर्षफल चार्ट |