"अध्यात्म और विज्ञान" शीर्षक की यह छोटी-सी पुस्तिका श्री सतपाल जी महाराज के अध्यात्म एवं विज्ञान पर दिए गए प्रवचनों से संकलित की गई है जिसका मुख्य उद्देश्य अध्यात्म एवं विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं, इस तथ्य को दर्शाना है। अध्यात्म एक पुरातन तत्त्व है जिसका वर्णन सभी धर्मों एवं धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। कुरान, वेद-पुराण, बाइबल, गीता-रामायण, उपनिषद् एवं महान्पुरुषों की वाणी उसी तत्त्व की ओर न केवल इंगित करती हैं, बल्कि उसे जानने के लिए प्रेरणा भी देती हैं। विज्ञान का प्रारंभ सोलहवीं शताब्दी से हुआ। विज्ञान के प्रादुर्भद्भर्भाव से मानव के दृष्टिकोण एवं सोचने के ढंग में एक मूलभूत परिवर्तन आया। इस नए दृष्टिकोण को ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने मानव के दृष्टिकोण को झुठलाया और भौतिक तत्त्व के विश्लेषण द्वारा मानव के ज्ञान की वृद्धि में चमत्कारी कार्य किया। प्रारंभ में विज्ञान धर्म के विरूद्ध दिखाई दिया, लेकिन जैसे-जैसे विज्ञान के विकास में परिपक्वता आयी तैसे-तैसे वह पुरातत्त्व को, जिसे अध्यात्म कहते हैं, झुठला न सका और अंततोगत्वा यह माना गया कि अगर विज्ञान एक बहिर्मुखी सत्य का विश्लेषण है तो अध्यात्म अन्तर्जगत् में सत्य का साक्षात्कार एवं अनुभूति है। पिण्ड एवं ब्रह्माण्ड को पूर्णरूपेण समझने के लिए विज्ञान एवं अध्यात्म एक दूसरे के पूरक हैं, एक-दूसरे के विरोधी नहीं। अतः एक सम्पन्न एवं सखी समाज का निर्माण करने के लिए दोनों का विकसित होना अनिवार्य है।
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