| Specifications |
| Publisher: K. K. Publications, Delhi | |
| Author Yogita Vashisht | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 328 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x6 inch | |
| Weight 564 gm | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9789392003479 | |
| HAH357 |
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'चक्रवर्ती' शब्द का प्रचलन भारत में ही है। इस शब्द को उन सम्राटों के नाम के आगे लगाया जाता है जिन्होंने समपूर्ण धरती पर एकछत्र राज किया हो और जिनके पास एक दिव्य चक्र हो। 'चक्रवर्ती' शब्द संस्कृत के 'चक्र' अर्थात पहिया और 'वर्ती' अर्थात् घूमता हुआ से उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार 'चक्रवर्ती' एक ऐसे शासक को माना जाता है जिसके रथ का पहिया हर समय घूमता रहता हो और जिसके रथ को रोकने का कोई साहस न कर पाता है।
जिन राजाओं के पास चक्र नहीं होता था तो वे अपने पराक्रम के बल पर अश्वमेध या राजसूय यज्ञ करके यह घोषणा करते थे कि इस घोड़े को जो कोई भी रोकेगा उसे युद्ध करना होगा और जो नहीं रोकेगा उसका राज्य यज्ञकर्ता राजा के अधन माना लिया जायेगा। जम्बूद्वीप और भारत खण्ड में ऐसे कई राजा हुए जिनके नाम के आगे 'चक्रवर्ती' लगाया जाता है, जैसे वैवस्वत मनु, मान्धता, ययाति, प्रियव्रत, भरत, हरिश्चन्द्र, सुदास, श्रीराम, राजा नहुष, युधिष्ठर, महापप्र, विक्रमादित्य, सम्राट अशोक आदि। विश्व शासक को ही 'चक्रवर्ती' कहा जाता था लेकिन कालान्तर में समस्त भारत को एक शासन सूत्र में बाँधना ही चक्रवर्तियों का प्रमुख आदर्श बन गया था।
योगिता वशिष्ठ ने एम. कॉम., बी.एड. एवं पत्रकारिता में डप्लोमा देश के विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से प्राप्त किया है। शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी योगिता की विभिन्न विषयों पर आधा दर्जन से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। शिक्षा, समाज, पर्यावरण और अध्यात्म से जुड़े विषयों में इनकी गहरी रुचि है। संप्रति शिक्षण एवं स्वतंत्र लेखन।
'चक्रवर्ती' शब्द का प्रचलन भारत में ही है। इस शब्द को उन सम्राटों के नाम के आगे लगाया जाता है जिन्होंने समपूर्ण धरती पर एकछत्र राज किया हो और जिनके पास एक दिव्य चक्र हो। 'चक्रवर्ती' शब्द संस्कृत के 'चक्र' अर्थात पहिया 'और 'वर्ती' अर्थात् घूमता हुआ से उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार 'चक्रवर्ती' एक ऐसे शासक को माना जाता है जिसके रथ का पहिया हर समय घूमता रहता हो और जिसके रथ को रोकने का कोई साहस न कर पाता है।
जिन राजाओं के पास चक्र नहीं होता था तो वे अपने पराक्रम के बल पर अश्वमेध या राजसूय यज्ञ करके यह घोषणा करते थे कि इस घोड़े को जो कोई भी रोकेगा उसे युद्ध करना होगा और जो नहीं रोकेगा उसका राज्य यज्ञकर्ता राजा के अधीन माना लिया जायेगा। जम्बूद्वीप और भारत खण्ड में ऐसे कई राजा हुए जिनके नाम के आगे 'चक्रवर्ती' लगाया जाता है, जैसे वैवस्वत मनु, मान्धाता, ययाति, प्रियव्रत, भरत, हरिश्चन्द्र, सुदास, श्रीराम, राजा नहुष, युधिष्ठिर, महापद्म, विक्रमादित्य, सम्राट अशोक आदि। विश्व शासक को ही 'चक्रवर्ती' कहा जाता था लेकिन कालान्तर में समस्त भारत को एक शासन सूत्र में बाँधना ही चक्रवर्तियों का प्रमुख आदर्श बन गया था।
उक्त सब राज्य और राजाओं से पहले देव और दैत्य के राजा होते थे, जिसमें इन्द्र और राजा बलि का नाम प्रसिद्ध है तिब्बत और उसके आसपास के क्षेत्र को इन्द्रलोक कहते थे, जहाँ नन्दन कानन वन और खंडववन था राजा बलि ने अरब को अपना निवास स्थान बनाया था। स्वायंभुव मनु और उनके पुत्र राजा प्रियव्रत को विश्व सम्राट माना जाता है। उनके बाद प्रियव्रत के पुत्र राजा भरत को भारत का प्रथम चक्रवर्ती सम्राट माना गया है। चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता ऋषभदेव थे और उनके 100 भाइयों में से प्रमुख का नाम 'बाहुबली' था।
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