| Specifications |
| Publisher: Penguin Books India Pvt. Ltd. | |
| Author Ruskin Bond | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 97 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8x5 inch | |
| Weight 80 gm | |
| Edition: 2022 | |
| ISBN: 9780143061922 | |
| HBR558 |
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प्रख्यात उपन्यासकार व कथा लेखक रस्किन बॉण्ड की अब तक सैकड़ों कहानियाँ एवं उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। लेकिन परवाज़ उनकी एकमात्र ऐतिहासिक रचना है। 1857 की क्रांति की पृष्ठभूमि में लिखा यह उपन्यास एक बहादुर पठान के एक अंग्रेज़ लड़की के प्रति एकतरफा प्रेम की कहानी पर आधारित है।
तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियाँ, क्रांति को लेकर हिन्दुस्तानी आवाम का उत्साह, अंग्रेज़ों के प्रति उनके मन में बसी गहरी नफ़रत और आक्रोश की भावना, क्रांति के असफल हो जाने से फैली निराशा और सबके बीच एक मुस्लिम परिवार में शरण पाई ऐंग्लो-इंडियन परिवार की कुछ असहाय महिलाओं की खुद को बचाए रखने की जद्दोजहद - रस्किन बॉण्ड ने अपने इस लघु उपन्यास में इस सबको भली-भाँति उकेरा है।
अंग्रेज़ी के प्रख्यात लेखक रस्किन बॉण्ड पिछले करीब पचास वर्षों से भी अधिक समय से कहानियों, निबंधों, कविताओं और बाल-पुस्तकों के लेखन से जुड़े हैं। उन्होंने लगभग 500 लघु कहानियाँ और लेख लिखे हैं, जिनमें से अधिकांश पेंगुइन इंडिया द्वारा प्रकाशित किए गए हैं।
उनका प्रारंभिक जीवन जामनगर, देहरादून, नई दिल्ली और शिमला में बीता। युवावस्था में उन्होंने चार साल चैनल आइलैंड और लंदन में बिताए। सन् 1955 में भारत लौटने के पश्चात, वे देश छोड़ कर कभी नहीं गए। सन् 1993 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया तथा सन् 1999 में उन्हें पद्मश्री सम्मान प्राप्त हुआ।
अब वे लैंडौर, मसूरी में अपने अपनाए हुए परिवार के साथ रहते हैं।
सन् 1857 की गर्मियों की शुरुआत थी। बेहद तपिश और घुटन भरे दिन थे। 10 मई को मेरठ में बगावत हो गई। सिपाहियों ने अंग्रेज़ अफ़सरों को गोली से मार गिराया। शहर में दंगा होने लगा, लूटपाट शुरू हो गई। जेल के दरवाज़े तोड़ दिए गए। हथियारों से लैस क़ैदी शहर और कैंटूनमेंट में फैल गए। जहां-जहां अंग्रेज़ों के मकान मिले, उनमें आग लगा दी गई, बाशिंदों को मार दिया गया। बग़ावती रेजीमेंटें दिल्ली पहुंच गई और बादशाह बहादुरशाह के इर्द-गिर्द जमा हो गई। अचानक एक कविता-प्रेमी और शांति-प्रिय बादशाह विद्रोह का केंद्र-बिंदु बन गया।
गर्मी की तपिश से बचने के लिए ब्रिटिश सेना शिमला की पहाड़ियों में ठंडक का आनंद ले रही थी। उसको ताबड़तोड़ दिल्ली की तरफ़ कूच करना पड़ा। रास्ता काफ़ी लंबा था, इस बीच विद्रोह और शहरों में भी फैल गया। 30 मई को दिल्ली से 250 मील पूर्व में स्थित शाहजहांपुर के मजिस्ट्रेट के दफ़्तर में भी भावनाएं गर्मा रही थीं।
कैंटूनमेंट में एक बंगले में रात को आग लगा दी गई थी। उसमें मिस्टर रेडमैन, जो कि ऐंग्लो-इंडियन थे, अपने परिवार सहित रहते थे। रेडमैन परिवार तो बच गया पर उनकी सारी संपत्ति या तो जलकर वर्वाद हो गई या लूट ली गई। उस रात उस इलाके में एक परिचित साया देखा गया; और शहर के नामी-गिरामी रोहिल्ला पठान जावेद खान को आगज़नी के शुबहे में गिरफ्तार करके मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया।
शाहजहांपुर शहर में जावेद खान के रोबीले व्यक्त्वि का काफ़ी दबदबा था। अगर बढ़िया इनाम मिले तो वह कोई भी जोखिम भरा काम करने को तैयार हो जाता था। उसे कई बार पहले भी पकड़ा जा चुका था। जावेद को अंग्रेज़ी क़ानून की जानकारी थी। उसने कोर्ट से गवाहों को पेश करने को कहा। कोई गवाह नहीं मिला जिसने जावेद को जलते हुए मकान से भागते देखा हो। सही गवाह मिलने तक केस मुल्तवी कर दिया गया। जावेद कचहरी से बाहर ले जाया गया, पर यह कहना मुश्किल था कि जावेद पुलिसवालों के संरक्षण में था या पुलिसवाले जावेद के संरक्षण में थे। कमरे से निकलने से पहले जावेद ने मजिस्ट्रेट को अनादरपूर्वक सिर झुकाया, ""मेरे गवाह कल आएंगे, आप चाहें या न चाहें"" उसने कहा।
रेडमैन के बंगले में आग लग चुकी थी पर शाहजहांपुर में स्थित अंग्रेज़ बिरादरी के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी। मेरठ बहुत दूर था। और जो पतला-सा अखबार 'द मुफस्लेट' निकलता था, उसने बगावत के बारे में कुछ विशेष नहीं लिखा था। सेनाधिकारियों ने अपना दिन रोज़ की तरह बिताया, उन्हें शहर में कुछ नया नहीं लगा। सिविल अफ़सर रोज़ की तरह ऑफिस का काम-काज देखते रहे। शाम भी रोज़ की ही तरह गुज़री, खाना-पीना हुआ और पाश्चात्य शैली का नाच-गाना भी।
30 मई के मेज़बान ये, डाक्टर बोलिंग। उनके ड्राइंग रूम में नौजवान लेफ्टीनेंट स्कॉट ने गिटार पर संगत की और मिसेज़ बोलिंग ने एक रूमानी गीत गाया। आर्मी के चार अफसर बैठ कर ताश खेलने लगे।
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