| Specifications |
| Publisher: Vani Prakashan | |
| Author Ashapurna Devi | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 406 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9.0x5.5 Inch | |
| Weight 630 gm | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9789357754415 | |
| HBR023 |
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आशापूर्णा देवी
(1909-1995) बंकिमचन्द्र, रवीन्द्रनाथ और शरत्चन्द्र के बाद बांग्ला साहित्य-लोक में
आशापूर्णा देवी का ही एक ऐसा सुपरिचित नाम है, जिनकी हर कृति पिछले पचास सालों से बंगाल
और उसके बाहर भी एक नयी अपेक्षा के साथ पढ़ी जाती रही है और जो पाठक को एक नये अनुभव
के आलोक-वृत्त में ले जाती है। आशापूर्णा देवी का लेखन-संसार उनका अपना या निजी संसार
नहीं, वह हम सबके घर-संसार का विस्तार है। हम सबकी मानसिकता को शायद ही इतने सुन्दर,
सजीव ढंग से कोई चित्रित कर सका हो। उनकी लेखनी का स्पर्श पाते ही कैसा भी पात्र हो,
कोई चरित्र हो, जीवन्त होकर सम्मुख खड़ा हो जाता है। ज्ञानपीठ पुरस्कार, कलकत्ता विश्वविद्यालय
के 'भुवन मोहिनी स्मृति पदक' और 'रवीन्द्र पुरस्कार' से सम्मानित आशापूर्णा जी अपनी
एक सौ सत्तर से भी अधिक औपन्यासिक एवं कथापरक कृतियों द्वारा सर्वभारतीय स्वरूप को
निरन्तर परिष्कृत एवं गौरवान्वित करती हुई आजीवन संलग्न रहीं।
बकुल
कथा
बकुल
कथा का संसार अनोखा
है, जिसका तादात्म्य हजारों-हजार पाठक अपने
जीवन में और अपने
आसपास के क्षेत्रों में
आसानी से खोज लेते
हैं। आशापूर्णा जी की लेखनी
से इस उपन्यास में
ऐसे चरित्र भी उद्भूत हुए
हैं जो जीवन की
स्वच्छन्द हवा में विचरण
करते हैं, अनेक सीमाएँ
तोड़ते हैं और आगे
के किसी भी अवरोध
को मानने के लिए तैयार
नहीं होते। वास्तव में प्रस्तुत उपन्यास
के हर कंगूरे पर
एक-एक दीपक प्रज्वलित
है, जिसका प्रकाश परिवेश को आलोकित करता
है, और उन दीपकों
के नीचे का अँधेरा
(?), शायद उसे लेखिका ने
स्वयं ही अपने सहानुभूति
में समो लिया है।...
जिन पाठकों ने आशापूर्णा देवी
का सुवर्णलता उपन्यास पढ़ा है, उनके
लिए बकुल कथा पढ़ना
एक अनिवार्यता है।
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