| Specifications |
| Publisher: Archana Prakashan, Bhopal | |
| Author Dheer Singh Pavaiya | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 428 (Color Illustrations) | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x6 inch | |
| Weight 680 gm | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9788197415166 | |
| HAF226 |
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धीरसिंह उत्तमसिंह पवैया
जन्म-08/12/1957
शिक्षा-कला स्नातक
मध्यप्रदेश के चम्बल संभाग के भिण्ड जिला की तहसील मौ के ग्राम छँकुरी के कृषक परिवार में जन्म।
सन् 1992 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक । वर्तमान में पर्यावरण संयोजक, मध्य क्षेत्र (मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़), केन्द्र - देवास
व्यक्ति, समष्टि, सृष्टि, और परमेष्ठी के मध्य मधुर-सामन्जस्य के लिये श्रेष्ठतम नियमों को हम भारतीयों ने इसे धर्म माना है। अतः पूजा तथा कर्म काण्डों के साथ ही श्रेष्ठ आचरण तथा सदाचार को प्रमुख स्थान दिया है। संतगण समस्त समाज के अन्दर प्रभु का दर्शन समभाव से करते हैं। इसी ममता, प्रेम और भक्ति का संदेश घर-घर पहुंचाने का दायित्व संत-महात्माओं ने स्वयं अपने ऊपर ले रखा है। वे संत-महात्मा सभी जाति, भाषा, पंथ और सभी प्रान्तों में खड़े होकर ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति से देश की एकता के सांस्कृतिक अधिष्ठान को सुदृढ़ बनाए रखने में सफल भी हुए हैं। यह भक्ति ही मानव-मानव के मध्य सभी प्रकार के भेदों को समाप्त कर समस्त सामाजिक दूरियों को समाप्त करती है।
'भारत के गृहस्थ संत-महात्मा' इस समास का अर्थ ध्यान में आने में थोड़ा अधिक समय लगता है। यह, आजकल भारतीयों के मन-मस्तिष्क में जड़-जगत के पार की दुनिया के अस्तित्व स्वरूप व नित्य जीवन में उसकी उपयुक्तता के बारे में जो भ्रान्त धारणा बनी है उसका परिणाम है। आध्यात्मिक साधना के फलस्वरूप, अपने अन्दर और बाहर सदा सर्वदा विश्वरूप बने सत्य का दर्शन अपने आप होता रहे, यह जीवन की परमोच्च अवस्था है। उस स्तर पर जीने वालों के लिए सत्य के अलावा और किसी वस्तु का अस्तित्व है ही नहीं। प्रतिपल अपने सम्पूर्ण अस्तित्वबोध को उसी एक अनिवर्चनीय अनुभूति से ओतप्रोत, उसी की अनुभूति की अनन्त शाश्वतता का एक बिन्दुमात्र पाना यही जीवन बन जाता है।
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