पुस्तक परिचय
वैदिक देवताओं में देवादिदेव महादेव शिव महत्त्वपूर्ण पद के अधिकारी है । वैदिक रुद्र की तुलना मे पौराणिक शिव अधिक महिमामण्डित प्रतीत होते हैं क्योंकि जहा एक ओर उनके आध्यात्मिक अथवा दार्शनिक रूप को पूर्ण विस्तार तथा स्पष्टता से परिचित करवाया गया है, वहीं उनका सती के साथ सम्बन्ध, दक्षयज्ञ विध्वंस पार्वतीवल्लभ, कैलासवासी, नागभूषण, चन्द्रमौलि गजाधर, नीलकण्ठ और कार्तिकेय तथा गणेश के जनक आदि पारिवारिक रूप भी उल्लेखनीय है । तात्त्विक दृष्टि से ये दोनों रूप एक हैं, अभिन्न है तथापि दोनों रूपों का परिचय ही महादेव शिव को जानने के लिए अपेक्षित है।
देवादिदेव महादेव शिव में मेरा अपना कुछ नहीं है । देवादिदेव के सम्बन्ध मे रामायण महाभारत तथा पुराणो से उपलब्ध सामग्री का जैसा अर्थ मुझे बुद्धिगम्य तथा हृदयमें हुआ, उसी का पूर्ण निष्ठा तथा परिश्रम से प्रस्तुतीकरण है प्रस्तुत पुस्तक ।
वस्तुत शिव का इतिवृत्त बहुत व्यापक है, विस्तृत है, विविध है गूढ़ भी है और रहस्यात्मक भी । विविध आख्यानो, के साथ उनके चार सहस्रनाम, शतनाम, अष्टोत्तरशतनाम नामावली, स्तुतिया, स्तोत्र, कवच आदि भी पुराणों मे यत्र तत्र उपलब्ध है । उन सभी को संकलित किया गया है । विविध कल्पो में अज शिव विभिन्न अभिधानो से अवतरित होते हैं, उनका भी समायोजन पुस्तक मे हुआ है । शिव ही एक मात्र देव हैं जिनका लिंङ भी उतना ही पूज्य है, जितने स्वय शिव है । द्वादश ज्योतिर्लिङो के विशद परिचय के साथ उज्जयिनी के चौरासी लिखो, काशी के अनेक लिङों तथा अन्यत्र भी उपलब्ध प्रमुख लिङो की नामावली का सग्रह भी पुस्तक मे उपलब्ध है ।
शिव को परिचित करवाया जाए तो उनका शिवलोक, उनके गण आदि पर प्रकाश डालना भी अपेक्षित होता है । प्रारम्भ में उनका भी परिचय प्रस्तुत किया गया है ।
निवेदन
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च ।
वंशानुचरित चैव पुराण पञ्चलक्षणम् ।।
पुराणों के प्रतिपाद्य के सच्च ध मे पुराणों में जहा सृष्टि एव प्रलय के उपरान्त पुन. सृष्टि आदि विषयो के अतिरिक्त मनुओं, ऋषियों, राजाओं प्रभृति की वंशावली के साथ देवों के विवरण को भी एक सामान्य विषय वस्तु स्वीकार किया गया है वहीं दूसरी ओर शैव पुराण, वैष्णव पुराण, ब्राह्म पुराण आदि कहकर पुराणों का प्रमुख वर्ण्य विषय देवों को ही माना गया है । अत. यह स्पष्ट होता है कि देव, देवियों का वर्णन पुराणों का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है और तभी पुराणों में पंचदेव उपासना को महत्त्व प्राप्त हुआ है । इसी कारण आज से पांच वर्ष पूर्व आपके हाथो में मैंने पार्वती (पुराणों के सन्दर्भ में) सौंपी थी और आज प्रस्तुत है देवादिदेव महादेव शिव (पुराणों के सन्दर्भ में) । मेरी महादेव शिव विषयक प्रस्तुत योजना के विषय मे जानकर परिमल पब्लिकेशन्स के संस्थापक, आज गोलोकवासी डा० के० एल० जोशी जी ने अपनी रोग शय्या से ही शिव. विष्णु, कृष्ण आदि विषयक एक पूरी शृंखला प्रस्तुत करने के लिए मुझे टेलीफोन के माध्यम से ही प्रेरित तथा उत्साहित किया था । अन्य विविध कार्यो में स्वय को मैने उलझाया हुआ है अत आज शृंखला की प्रथम कड़ी ही आपके हाथों सौंप रही हूँ ।
देवादिदेव महादेव शिव में मेरा अपना कुछ नहीं है । देवादिदेव के सम्बन्ध में रामायण, महाभारत तथा पुराणों से उपलब्ध सामग्री का जैसा अर्थ मुझे बुद्धिगम्य तथा हृदयडुग्म हुआ, उसी का पूर्ण निष्ठा तथा परिश्रम से प्रस्तुतीकरण है प्रस्तुत पुस्तक । पुराणो में शिव के दो रूप परिलक्षित होते हैं प्रथम उनका आध्यात्मिक अथवा दार्शनिक रूप तथा दूसरा उनका पारिवारिक तथा देववृन्द के अधीश्वर का रूप । आध्यात्मिक वर्णन के अनुसार अज, अनादि. अनन्त शिव का उद्भव अज्ञेय है अत. वे स्वयम्भू हैं । सर्वत्र व्याप्त शिव दिग्वास है । सत्व, रज तथा तम रूपी शूल को धारण करने वाले वे शूली हैं तो काम क्रोध मद लोभ आदि रूपी सर्पों के आभूषणधारी वे सर्पभूषण हैं । वे घोर हैं तभी रुद्र कहलाते है, अघोर हैं अत वे शिव हैं । वे प्राण, अपान है तो वे ही काल हैं, मृत्यु हैं । सोमनिस्यन्दी चन्द्र से शोभित वेचन्द्रमौली हैं तो हलाहल विष को कण्ठ में धारण कर विश्व की रक्षा करने वाले वे नीलकण्ठ हैं । समस्त देवों में महनीय हैं. महान् विषय के अधिकारी हैं, महत् विश्व के पालक हैं अत. महेश्वर हैं, महादेव हैं । वे ही प्रणवरूप ओम हैं, निर्गुण ब्रह्म हैं ।
उनका दूसरा रूप है, लीलापुरुष शिव का जो नाना रूप धारण कर विविध संवेदनाओं को व्यक्त करते हैं । सती के दग्ध होने पर जहा दक्ष यज्ञ का विध्वंस करते हैं वहीं प्रेमार्द्र चित्त से सती की अर्धदग्ध देह को कन्धे पर उठाकर वियोगी शिव यत्र तत्र सर्वत्र पर्यटन करते हैं. परिणामत सती पीठों की स्थापना होती है । लीलाधर वे ही कालान्तर में नाना छल करके मेना तथा हिमालय को छकाते हैं तो पार्वती वल्लभ बनकर विविध लीलाओं को रूपायित करते हैं, कार्त्तिकेय के जनक बनते हैं तो गणेश के साथ भयावह युद्ध करने के उपरान्त गजानन बनाकर गणेश को देवताओं का अग्रपूज्य वे ही बनाते हैं ।
देवादिदेव वे विष्णु के आराध्य बनकर उनके मुख से सहस्रनाम कहलवाते हैं. उनके एक नेत्र कमल की भेंट ग्रहण करते हैं तो स्वयं विष्णु की आराधना करते हैं, उनका ध्यान करते हैं । महादेव शिव ब्रह्मा के गर्वित सिर का छेदन करके ब्रह्महत्या से प्रताड़ित होते हैं तो स्वय ब्रह्मापुत्र बनकर रुद्र रूप में प्रकट होते है। रावण को दस सिरो का वर देते हैं तो द्रौपदी को पंचपतियों का वर भी वे ही देते हैं ।
वस्तुत शिव का इतिवृत्त बहुत व्यापक है, विस्तृत है. विविध है, गूढ़ भी है और रहस्यात्मक भी। विविध आख्यानों, उपाख्यानों के साथ उनके चार सहस्रनाम शतनाम अष्ठेत्तरशतनाम, नामावली, स्तुतिया, स्तोत्र, कवच आदि भी पुराणों मे यत्र तत्र उपलब्ध हैं । उन सभी को संकलित किया गया है । विविध कल्पों में अज शिव विभिन्न अभिधानो से अवतरित होते हैं, उनका भी समायोजन पुस्तक में हुआ है । शिव ही एक मात्र देवं हैं जिनका लिग्ङ भी उतना ही पूज्य है, जितने स्वयं शिव हैं। द्वादश ज्योतिर्लिङ्गों के विशद परिचय के साथ उज्जयिनी के चौरासी लिग्ङों, काशी के अनेक लिके तथा अन्यत्र भी उपलब्ध प्रमुख लिङ्को की नामावली का संग्रह भी पुस्तक में उपलब्ध है ।
शिव को परिचित करवाया जाए तो उनका शिवलोक, उनके गण आदि पर प्रकाश डालना भी अपेक्षित होता है । प्रारम्भ में उनका भी परिचय प्रस्तुत किया गया है । अपनी समस्त अक्षमताओं तथा सीमाओं से अवगत मेरी सम्पूर्ण निष्ठा तथा परिश्रम का परिणाम है देवादिदेव महादेव शिव (पुराणों के सन्दर्भ में) । यदि मेरा यह विनम्र प्रयास स्वत आलोकित महादेव, महेश्वर शिव के महनीय व्यक्तित्व को स्वल्प मात्रा में भी परिचित करवा सके तो मैं समझूगी मेरी निष्ठा फलीभूत हुई, मेरा परिश्रम सार्थक हुआ ।
अनुक्रमणिका
संकेत सूची
xi
XV
देवादिदेव महादेव शिव
1
परमात्मा
बाह्य रूप
10
भूषण
14
पुष्प
15
वाहन
लोक
16
गण
19
शिवरात्रि
21
शिव पारिवारिक जीवन
22
सती एव दक्षयज्ञ विध्वंस
23
विधुर शिव
35
पार्वती
41
कामदहन
43
पार्वती परीक्षा तथा विवाह
46
काशीवास
52
पुत्र कार्त्तिकेय
54
पुत्र गणेश
57
दाम्पत्य जीवन
59
आध्यात्मिक सम्पर्क
64
अर्धनारीश्वर
65
शिव और नदियां
67
देववृन्द के अधीश्वर
69
ब्रह्मा विष्णु एवं सुदर्शन चक्र
रामचन्द्र
95
हनुमान्
98
वासुदेव कृष्ण
100
अन्य देववृन्द
104
शिव भक्त
110
भक्तवत्सलता और कालकूट
राजा वीरमणि
114
शुक्राचार्य
परशुराम
119
अन्धकासुर
121
गुणनिधि (कुबेर)
125
बाणासुर
वृकासुर
127
त्रिपुराधिपति तारकाक्ष
128
जलन्धर
130
अन्याय भक्त एक विहङाग्वलोकन
131
शिव अवतार
142
नील
कद्र
143
अन्य अवतार
145
शिव नाम
153 163
सहस्रनाम,
153
शतनाम, अष्टोत्तरशतनाम,
154
नामावली कवच
155
अष्टोत्तरशत मूर्तिया, श्रीकण्ठमातृकान्यास
157
शिव तथा तीर्थनाम
159
शिव लिङ्ग
164
लिङ्ग विशद परिचय
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग
169
शतरुद्रीय
175
संहारी शिव
180
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