| Specifications |
| Publisher: Alpha Publications | |
| Author: आचार्य मदन मोहन जोशी (Achary Madan Mohan Joshi) | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 78 | |
| Cover: Paperback | |
| 8.5 inch X 5.5 inch | |
| Weight 120 gm | |
| Edition: 2005 | |
| ISBN: 9798179480662 | |
| NZA926 |
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लेखक का परिचय
आचार्य मदन मोहन जोशी
जन्म- ग्राम गढ़मोनू, जनपद पौड़ी गढ़वाल (उत्तरांचल)
शिक्षा - साहित्याचार्य शिक्षा शास्त्री (बी. एड) सम्पूर्णानन्द सस्कूत विश्वविद्यालय, वाराणसी, उ.प्र. ।
साहित्य रत्न हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, उ.प्र. एम. ए. (वेद) दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली ज्योतिष एव कर्मकाण्ड पारम्परिक विधि से आचार्य श्रीराम शास्त्री जी के चरणों में दिल्ली संस्कृत अकादमी में ज्योतिष कर्मकाण्ड अध्यापक तत्पश्चात् श्री सुन्दरलाल के प्रयास से श्री जे एन शर्मा जी के साक्षात्कार तथा भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद (ICAS) में मुहूर्त एवं मेंलापक विषय का अध्यापन ।
अपनी बात
प्रत्येक प्राणी काल के अधीन है । काल मानव के क्रमिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जन्म से मरण, इहलोक से परलोक तक, यहाँ तक कि उत्थान-पतन सुख-दुख सभी में काल का ही नियन्त्रण है। निमेंष से लेकर कल्पादि पर्यन्त कालमानों की व्यवस्था है । उनमें कुछ व्यावहारिक तथा कुछ सैद्धान्तिक हैं। हम व्यावहारिक कालगणना, घटी, पल, दिन, रात, तिथि, वार, पक्ष, मास, ऋतु, अयन संवत तक की ही परिकल्पना करते हैं । इसी से मनुष्य शुभ-अशुभ की पहचान करता है।
सकल विश्व वर्ष गणना को ही मुख्य केन्द्र मानता है। भले ही उसे कुछ भी नाम दिया गया हो। वर्ष में दो अयन, छ:, ऋतु भारत में प्रमुख रूप में मानी जाती हैं । महीना, दिन सभी मानते हैं। प्रत्येक दिन-रात 24 घण्टे (60 घटी) का होता है । व्यक्ति की राशि से वह दिन किस के लिए, किस कार्य के लिए कैसा है, यह काम गणना के तिथि, वार, नक्षत्र करणदि बताते हैं । इन्हीं को आधार मानकर जीवन के शुभ-अशुभ कार्यों के प्रति बार-बार चिन्तन करना ही मुहूर्त कहा जाता है। 'मुहु: मुहुश्चिन्यते शुभाशुभ फल यस्मिन्तत्' अर्थात् जिसमें बार-बार क्रियमाण कार्य के प्रति तिथि, वार, नक्षत्रादि को देखकर उसके शुभ फल के प्रति सक्रिय तथा अशुभ फल के प्रति निष्क्रिय/सावधान हो जाते हैं।
इस 'मुहूर्त विचार' में मुहूर्तचिन्तामणि, 'शीघ्र बोध', 'बालबोध,' 'मुहूर्त पारिजात' आदि से लेकर सरल भाषा में लिखने का प्रयास किया गया है अशुद्धि 'कमी को विद्वान महानुभाव अपने बहुमूल्य विचारों द्वारा आशीर्वाद के रूप में अवगत कराकर कृतार्थ करेंगे।
मुहूर्त लिखने की प्रेरणा (ICAS) भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के विद्वानो के शुभाशीर्वाद से मिली। मैं विशेष रूप से दिल्ली चेप्टर-I के सभी विद्वानो का आभार प्रकट कर संस्था के संस्थापक स्वर्गीय रमन जी के चरणों में इसे समर्पित करता हूँ।
प्राक्कथन
प्रस्तुत पुस्तक मुहूर्त विचार, जैसा कि इसके नाम से ही प्रतीत होता है, मुहूर्त ज्ञान पर प्रस्तुत का गई है पुस्तक के अध्ययन सै लगता है कि लेखक ने गागर में सागर समाहित करने का सफल प्रयास किया हे । ज्योतिष का अल्प ज्ञान रखने वाला पाठक भी इस पुस्तक को माध्यम बनाकर सटीक मुहूर्त का ज्ञान अर्जन करने में सरलता से सफल हो सकता है । इस पुस्तक में व्यावहारिक मुहूर्त के सब अंगों को बड़ी सरल प्रक्रिया से उजागर किया गया है मेंरी अवधारणा है कि किसी ग्रन्थ के वास्तविक पारखी तो पाठकगण ही होते हैं । श्री तुलसीदासजी के शब्दों में मैं
'जो प्रबधं नहीं बुध आदर ही।
सो श्रम बादि बाल कवि कर ही ।'
मैं आशा करता हूं कि प्रस्तुत पुस्तक पाठकों की आशाओं पर खरी उतरेगी आचार्य मदनमोहन जोशी जी को में पिछले 5-6 वर्षों से व्यक्तिगत रूप से जानता हूं
क्योंकि मैं भी उनके साथ भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद, दिल्ली चैप्टर-I की ज्योतिष संकाय का सदस्य हूं । इस समयावधि में मेंरा उनके ज्ञान तथा विनम्रता से साक्षात्कार हुआ।
'विद्या ददाति विनयम्' की प्रतिमूर्ति आचार्य मदनमोहन जोशी जी की सफलता की कामना करता हूं तथा आशा करता हूं कि उनकी यह कृति ज्योतिष में उनके सहयोग का प्रारंभ मात्र है।
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विषय-सूची |
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|
1 |
अपनी बात |
i-ii |
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2 |
नक्षत्रगण नाड़ी व कर्म विचार |
iii-iv |
|
मुहूर्त विचार |
1 |
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3 |
नक्षत्रों के भेद/ कार्य |
3 |
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4 |
योग |
7-11 |
|
5 |
युग,ऋतु व मास |
12-14 |
|
6 |
मुहूर्त |
15-23 |
|
7 |
वास्तु |
24-29 |
|
8 |
यात्रा विचार |
29-32 |
|
9 |
विविध मुहूर्त |
32-39 |
|
10 |
गण्डान्त |
40 |
|
11 |
नक्षत्रों की अंधादि संज्ञा |
41 |
|
12 |
राहुकाल |
41 |
|
13 |
विवाह में तेल चढ़ाना |
41 |
|
14 |
लग्नों की अन्धादि संज्ञा |
42 |
|
15 |
केन्द्रस्थ गुरु का फल |
43 |
|
16 |
मेलापक |
43-52 |
|
17 |
कुण्डली मिलान |
52-53 |
|
18 |
तालिकाएं |
54-56 |
|
19 |
विषकन्या योग |
57 |
|
20 |
चौघाड़िया मुहूर्त |
58 |
|
21 |
विवाह के दोष |
59-64 |
|
22 |
कुण्डली मिलान में विशेष बात |
64-66 |









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