सुख-दुःख के द्वन्द्व में फँसे हुए अपने परित्राण के लिए छटपटाते हुए व्यक्ति में जो प्रश्न उठते हैं, वे जीवन्त प्रश्न होते हैं। अज्ञानान्धकार में भटकते हुए व्यक्ति की व्यथा से द्रवित करुणावान अनुभवी सन्त में सन्मार्ग दिखाने की तत्परता से जो उत्तर प्रकट होते हैं, वे जीवन्त उत्तर होते हैं। ऐसे जीवन्त प्रश्नोत्तरों का संयोग जिज्ञासु जनों के लिए परम हितकारी होता है।
मानव-सेवा-संघ के प्रणेता सन्त, ब्रह्मलीन श्री स्वामी शरणानन्द जी महाराज पर बाल्यकाल में ही घोर दुःख का पहाड़ टूट पड़ा। सचेत मेधावी बालक के मन में प्रश्न उठा-'क्या कोई ऐसा सुख है जिसमें दुःख शामिल न हो ?' उत्तर मिला-'हाँ, ऐसा सुख है, और वह साधु-सन्तों को मिला करता है। ११ वर्ष की उम्र में दोनों आँखों से अन्धे हो जाने वाले बालक ने अपने प्रश्न का उत्तर पाया और उसी क्षण निश्चय कर लिया कि 'मैं साधु हो जाऊँगा।' साधु होकर स्वयं दुःख-रहित आनन्दमय जीवन पाकर परम पूज्य श्रीस्वामी शरणानन्द जी महाराज ने मानव मात्र के लिए दुःख-निवृत्ति, चिर शान्ति, जीवन मुक्ति एवं भगवद्भक्ति सम्बन्धी प्रश्नों के अचूक और अकाट्य उत्तर देकर जिज्ञासुओं की अद्भुत सेवा की है।
मानव-जीवन के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित जटिल से जटिल प्रश्न भी जब कोई महाराजजी से पूछता था तो वे बिल्कुल सहज भाव से थोड़े शब्दों में ऐसा सटीक उत्तर देते थे कि प्रश्नकर्त्ता की आंखें 1 खुल जातीं और अपनी समस्या का सही एवं नितान्त व्यवहार्य समाधान पाकर वह तत्काल साधन-पथ पर आरूढ़ हो जाता था।
श्रीमहाराज जी द्वारा दिए गए उत्तर प्रश्नकर्त्ता को सीधे स्पर्श करते थे। वह ऐसा अनुभव करता था, मानो श्रीमहाराजजी ने उसमें एक नयी चेतना फेंक दी हो। श्रीमहाराजजी के समाधान कारक उत्तर स्वतः स्फूर्त होने के कारण शास्त्र सम्मत होते थे। साथ ही वे युक्तियुक्त एवं तर्क-संगत होने के कारण अकाट्य भी होते थे। व्यावहारिक स्तर पर अनुकरणीय होने के कारण जिज्ञासुओं में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन उपस्थित हो जाता था।
उपर्युक्त विशेषताओं से आकर्षित होकर मानव-सेवा-संघ के कुछ प्रेमीजनों में प्रस्तुत प्रश्नोत्तरी के प्रकाशन का संकल्प उठा। थोड़ी बहुत सामग्री जो वर्तमान में जुट सकी, उसे प्रश्नोत्तरी में संकलित किया गया है, इस उद्देश्य से कि उलझे हुए साधकों को अपनी समस्याएँ सुलझाने में समुचित मार्गदर्शन मिल सके। आत्मीय साधक भाई-बहनों को संघ की ओर से सद्भावनापूर्ण यह पुष्प सप्रेम समर्पित है।
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