साधारण शब्दों में इतिहास का अर्थ बीते हुए काल का अध्ययन करना है। इतिहास विषय के अन्तर्गत हम विभिन्न समाजों में समय के अनुसार होने वाले परिवर्तनों का ही अवलोकन करते हैं। इस प्रकार प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान समय तक मनुष्य एक पीढी से दूसरी पीढी में प्रवेश करते हुए भिन्न-भिन्न बदलावों एवं नए विचारों के साथ निरन्तर आगे बढ़ता जा रहा है। इस दौरान इतिहास का न केवल क्षेत्र निरन्तर विस्तृत हो रहा है बल्कि इतिहास लेखन के दृष्टिकोण एवं पद्धतियों में भी समय के साथ बदलाव आ रहा है। आज हम वर्तमान परिपेक्ष्य में देख रहे हैं कि कुछ राजनैतिक, सामाजिक व धार्मिक संगठन अपने निजी स्वार्थो के वशीभूत होकर इतिहास के तथ्यों के साथ छेड़-छाड़ करते हुए इतिहास की व्याख्या कर रहे हैं। यह न केवल इतिहास के साथ भेद-भाव है बल्कि इतिहासकारों के लिए भी एक चुनौती का विषय बनता जा रहा है। इसी दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप आज इतिहासकारों के विभिन्न समूह (साम्राज्यवादी, राष्ट्रवादी, मार्क्सवादी, कैम्ब्रीज, एनाल्स, सबाल्टर्न एवं उत्तर आधुनिकतावादी आदि) उभरकर हमारे सामने आए हैं। इन विभिन्न विचारधाराओं के इतिहासकारों के लिए आज उत्तर आधुनिकतावादी विचारधारा के इतिहासकार चुनौती बनकर उभरे हैं। मेरा मानना है कि इस चुनौती का सामना एक इतिहासकार तभी कर सकता है जब वह अपने धर्म एवं संस्कृति से ऊपर उठकर ऐतिहासिक तथ्यों के साथ भेदभाव न करते हुए वस्तुनिष्ठ इतिहास लेखन करे। प्रस्तुत पुस्तक का विषय "मध्यकालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति (1600-1700 यूरोपियन दृष्टिकोण से)" को चुनने की मेरी निजी जिज्ञासा रही है। मध्यकालीन इतिहास की अध्ययनार्थी होने के नाते अक्षर मेरे जेहन में अनेक प्रश्न बार-बार उमड़ कर आते रहते थे कि मध्यकालीन दरबारी इतिहास लेखक उच्च वर्ग, विशेषकर सुल्तान एवं बादशाहों से सम्बन्धित (राजनैतिक, दरबारी नीतियों एवं उनकी सामाजिक जीवन शैली) एक तरफा आधी-अधूरी जानकारी उपलब्ध करवाते हैं। मुगलकालीन दरबारी इतिहासकारों के लिए (कुछ को छोडकर) यह कहावत लगभग सही प्रतीत होती है कि 'जिनका खाया उसी का यशोगान किया। दूसरी तरफ क्षेत्रीय लोक साहित्य (भक्ति एवं सूफी) जो केवल अपने-अपने क्षेत्र विशेष से सम्बन्धित है, न केवल साधारण जनता की स्थिति बल्कि समाज में विद्यमान विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृतियों की झलक भी दिखाते हैं। इन दोनों प्रकार के स्त्रोतों का अध्ययन करने से यह प्रतीत हुआ कि ये स्त्रोत अपने-अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। दरबारी इतिहासकार उच्च वर्ग का एवं लोकसाहित्य साधारण वर्ग के साथ-साथ अपने क्षेत्र विशेष का, इस प्रकार मैनें विचार किया कि मुगलकालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति के अध्ययन के लिए इन स्त्रोतों से महत्वपूर्ण एक तरफा जानकारी तो मिलती है लेकिन भारतीय समाज से सम्बन्धित सभी क्षेत्रों एवं वर्गों के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती। लेकिन इन स्त्रोतों की अपूर्ण उपलब्ध जानकारी को पूर्ण करने का कार्य यूरोपियन यात्रियों के संस्मरणों से प्राप्त तथ्यों से किया जा सकता है।
प्रस्तुत पुस्तक का विषय है मध्यकालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति (1600-1700 यूरोपियन दृष्टिकोण से)। मध्यकालीन भारतीय इतिहास में सत्रहवीं शताब्दी ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस समय भारत के इतिहास में कुछ ऐसी घटनाएँ घटी जिसने आगामी शताब्दियों में भारतीय इतिहास को एकदम बदल दिया। यूरोपियन लोगों का भारत में आना एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। बहुत से यूरोपियनों ने व्यापारिक कम्पनियों बनाकर भारत के साथ व्यापार करना आरम्भ किया। यह वह समय था जब यूरोप में पुनर्जागरण के कारण वाणिज्यवाद का जन्म हो रहा था। इन व्यापारिक कम्पनियों के साथ-साथ बहुत से यूरोपियन लोगों ने व्यक्तिगत रूप से तथा यूरोपियन शासकों के राजदूतों के रूप में भी भारत की यात्रा की एवं भारत के संदर्भ में अपने दृष्टिकोण से सम्बन्धित संस्मरण भी लिखे। इस पुस्तक में इन्हीं यूरोपियन व्यक्तियों के दृष्टिकोण से मध्यकालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति का अध्ययन करने का प्रयास किया गया है।
मुगलकाल के दौरान भारत आने वाले इन विदेशी यात्रियों के वृतान्तों का अध्ययन इससे पूर्व भी कुछ विद्वानों ने किया है। इन विद्वानों में ई०एफ० ओटन, एम०ए० अन्सारी, जे०टी० व्हीलर, रामचन्द्र प्रसाद, मीरा नन्दा, महेन्द्र सिंह आदि के नाम प्रमुख हैं। ई०एफ० ओटन ने अपनी कृति यूरोपियन ट्रैवर्ल्स इन इण्डिया ड्यूरिंग फिफटिंथ, सिक्सटिंथ एण्ड सेवनटिंथ सेन्चुरीज को पन्द्रह अध्यायों में बाँटा है। ओटन द्वारा प्रस्तुत पुस्तक को तीन शताब्दियों के दौरान कुछ प्रमुख यूरोपियन यात्रियों के भारत आने के उद्देश्यों के आधार पर अध्यायों को विभाजित किया गया है। प्रत्येक अध्याय में दो से तीन यात्रियों के विषय में बहुत ही संक्षिप्त रूप में बताया गया है। इसमें दी गई जानकारी अतिसामान्य है। एम०ए० अन्सारी की कृति यूरोपियन ट्रैवर्ल्स अंडर द मुगल्स (1580-1627) में अकबर व जहाँगीरकालीन प्रमुख बारह यूरोपियन यात्रियों का जिक्र किया गया है। प्रत्येक यात्री का अलग अध्याय में वर्णन किया गया है। उक्त यात्री से सम्बन्धित अध्याय में यात्री का जीवन परिचय देने के बाद उसके द्वारा भारत के विषय में दी गई सूचनाओं का अति संक्षेप में वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ को न तो तुलनात्मक और न ही आलोचनात्मक कसौटी पर परखा गया है। फिर भी उनकी यह कृति 16वीं शताब्दी के अन्त एवं 17वीं शताब्दी के प्रारंभ के विषय में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सूचना उपलब्ध करवाती है। जे०टी० व्हीलर ने अपनी पुस्तक यूरोपियन ट्रैवर्ल्स इन इण्डियों में यूरोपियन यात्रियों का वृतान्त देते हुए किसी निश्चित व्यवस्था का पालन नहीं किया है। इसमें काल व राष्ट्र की क्रमबद्धता भी नहीं है। रामचन्द्र प्रसाद ने अपनी कृति अर्ली इंग्लिश ट्रैवर्ल्स इन इण्डिया में कुछ प्रमुख अंग्रेज यात्रियों के भारत में आने के उद्देश्यों के आधार पर अपनी कृति के अध्यायों का विभाजन किया है। प्रत्येक अध्याय में यात्री का परिचय देकर उसके वृतान्त के बारे में संक्षेप में वर्णन किया गया है। इसमें हैनरी लार्ड के अतिरिक्त सभी यात्री अकबर एवं जहाँगीरकालीन है।
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