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आधुनिकता पर पुनर्विचार: Aadhunikta Par Punarvichar

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Specifications
Publisher: Bharatiya Jnanpith, New Delhi
Author Ajay Tiwari
Language: Hindi
Pages: 207
Cover: HARDCOVER
9.0x5.5 Inch
Weight 410 gm
Edition: 2024
ISBN: 9789355184962
HBS401
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Book Description

लेखक परिचय

 

अजय तिवारी

जन्म : 6 मई 1955, इलाहाबाद मूलनिवास : ग्राम जगजीवन पट्टी, जौनपुर शिक्षा : हाईस्कूल इलाहाबाद, एम.ए., पी-एच. डी. दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली प्रकाशन : 'प्रगतिशील कविता के सौन्दर्य-मूल्य', 'नागार्जुन की कविता', 'समकालीन कविता और कुलीनतावाद', 'साहित्य का वर्तमान', 'पश्चिम का काव्य-विचार', 'आलोचना और संस्कृति', 'राजनीति और संस्कृति', 'व्यवस्था का आत्मसंघर्ष', 'आधुनिकता पर पुनर्विचार', 'हिन्दी कविता आधी शताब्दी', 'जनवादा की समस्या और साहित्य' (आलोचना) ।

सम्पादन : 'केदारनाथ अग्रवाल', 'कवि-मित्रों से दूर' (केदारनाथ अग्रवाल से बातचीत), 'आज के सवाल और मार्क्सवाद' (रामविलास शर्मा के संवाद), 'तुलसीदास : पुनर्मूल्यांकन', 'जन-इतिहास का नज़रिया' (रामविलास शर्मा से बातचीत), 'रामविलास शर्मा संकलित निबन्ध'।

सम्मान : 'केशव-स्मृति सम्मान' (भिलाई, 1997), 'देवीशंकर अवस्थी सम्मान' (नयी दिल्ली, 2002), 'डॉ. भगवतशरण उपाध्याय सम्मान' (बलिया, 2005)

 

भूमिका

 

दुनिया में आधुनिकता का इतिहास लगभग पाँच शताब्दी का हो गया है। अपने आरम्भिक दौर में जो चेतना परिस्थिति बोध के साथ उदित हुई, वर्तमान दौर में वह तात्कालिक-आनन्द के उत्सव में पर्यवसित हो रही है। आरम्भिक दौर में उसे मध्यकालीन चेतना से संघर्ष करते हुए आगे बढ़ना था, वर्तमान दौर में उत्तर-आधुनिक चिन्तन से अपने अपरिहार्य सम्बन्ध को परिभाषित करना है। मध्यकालीन समाज सामन्ती सम्बन्धों से बना था, उत्तर-आधुनिक समाज वृद्ध पूँजीवाद के उपभोक्तावादी बाज़ार-तन्त्र से बना है। इन प्रक्रियाओं और अन्तर्द्वन्द्वों का विवेचन अगर आसान होता तो हिन्दी में इस प्रकार की अनेक पुस्तकें होतीं। 'आधुनिकता पर पुनर्विचार' इस दिशा में अव्यवस्थित प्रयास से ज़्यादा कुछ नहीं है। इसके लेख बीस वर्षों से ज़्यादा की अवधि में अलग-अलग समय पर लिखे गये हैं। कुछ लेख सोवियत संघ के विघटन से पहले के हैं (जैसे, 'सौन्दर्य चिन्तन : कुछ प्रश्न) और कुछ लेख 2010 के हैं (जैसे, 'उत्तर-आधुनिक विश्व और प्राक् आधुनिक विश्वबोध')। कुछ लेख व्याख्यान के रूप में थे, जिन्हें संशोधन के साथ यहाँ प्रस्तुत किया गया है, कुछ लेख शोधपत्र के रूप में लिखे गये हैं। कुछ लेख अनुचिन्तनपरक निबन्ध के रूप में तैयार किये गये हैं। इन सभी लेखों, निबन्धों, व्याख्यानों और शोधपत्रों का सम्बन्ध आधुनिकता की प्रक्रिया से है। इसलिए उन्हें एक साथ प्रस्तुत करना उपयुक्त जान पड़ा। इन सभी लेखों, निबन्धों आदि का सन्दर्भ-बिन्दु भारतीय समाज, विशेषतः हिन्दी-भाषी समाज है। अन्तरराष्ट्रीय विवादों को भी अपने समाज की आवश्यकताओं की कसौटी पर जाँचने का प्रयास किया गया है। इसका कारण है। औपनिवेशिक विरासत के कारण भारत जैसे समाजों की वास्तविकताएँ और आवश्यकताएँ वही नहीं हैं जो उपनिवेशवादी समाजों की हैं। आज भी उत्तर और दक्षिण का भेद विकसित और विकासशील दुनिया के अन्तर्विरोध के रूप में मौजूद है। सांस्कृतिक प्रक्रियाएँ और बौद्धिक अवधारणाएँ विशिष्ट सामाजिक-ऐतिहासिक परिस्थिति से सम्बद्ध होती हैं। पश्चिम की अवधारणाओं को ज्यों का त्यों अपनाकर ज्ञानी बने फिरना उपनिवेश बनकर गर्व करने जैसा है। प्रकृतिविज्ञान और समाजविज्ञान में ऐसा उपनिवेशीकरण बहुत अधिक है, लेकिन मानविकी (भाषा, साहित्य और संस्कृति) भी उससे अछूता नहीं है। भूमंडलीकरण के साथ बौद्धिक उपनिवेशीकरण बढ़ भी रहा है और बढ़ाया भी जा रहा है। इस प्रकार के बौद्धिक और सांस्कृतिक उपनिवेशीकरण के विरुद्ध लैटिन अमरीका और अफ्रीका के देशों में जबर्दस्त अभियान चलाया गया था, जिसे 'मस्तिष्क का निरुपनिवेशीकरण' (डिकॉलिनाइजिंग द माइंड) कहा गया था। भारत में ऐसे अभियान की आवश्यकता अब भी बनी हुई है। बल्कि बढ़ रही है। स्वभावतः 'आधुनिकता पर पुनर्विचार' करते समय पश्चिमी अवधारणाओं के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाकर अपने समाज को समझने का प्रयत्न किया गया है। इसलिए न वैश्विक ज्ञान का आतंक है, न तिरस्कार। साथ ही, हिन्दी की सैद्धान्तिक आलोचना में प्रतिमानों के निर्माण का जो उत्साह रहता है, उससे बचते हुए अवधारणाओं के विश्लेषण का प्रयास किया गया है। मध्यकाल की सीमारेखा से लेकर समकालीनता के दरवाज़े तक, आधुनिकता का संसार एक व्यापक ऐतिहासिक-सामाजिक परिदृश्य समेटे हुए है, इसलिए पुस्तक में आधुनिकता को एक प्रक्रिया के रूप में जाँचा गया है। पुस्तक को तैयार करने में समय-समय पर अनेक मित्रों और विद्यार्थियों से भिन्न-भिन्न रूपों में सहायता मिली। डॉ. रामप्रकाश त्रिपाठी (भोपाल), अखिलेश, डॉ. चन्द्रप्रकाश मिश्र, बद्री नारायण, अरुण माहेश्वरी (कलकत्ता), डॉ. (स्व.) सत्यप्रकाश मिश्र, डॉ. उमाकान्त द्विवेदी (इलाहाबाद), रवीन्द्र कालिया, डॉ. सूर्यनाथ सिंह, डॉ. दिलीप चौबे, आग्नेय और कुणाल सिंह का विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूँ। बहुत-से विद्यार्थियों ने सामग्री संकलन से लेकर प्रूफ संशोधन तक कई रूपों में सहयोग दिया-उन सभी को धन्यवाद। भारतीय ज्ञानपीठ ने पुस्तक को सुरुचिपूर्वक पाठकों तक पहुँचाया, उसके संचालकों, व्यवस्थापकों और नीति-निर्धारकों के प्रति कृतज्ञ हूँ। इन सबके प्रति धन्यवाद ज्ञापन बहुत औपचारिक और अपर्याप्त है।

 

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