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आखिरी चट्टान के बाद- Aakhiri Chattan Ke Baad (Collection of Stories)

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Specifications
Publisher: Amit Prakashan, Ghaziabad
Author Ram Narayan Mishra
Language: Hindi
Pages: 112
Cover: HARDCOVER
9.00 X 6.00 inch
Weight 240 gm
Edition: 2003
ISBN: 8185309906
HBO645
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Book Description
पुस्तक परिचय
कहानी किसी खास वाद को लिए हुए किसी विशेष वैचारिकता की अभिव्यक्ति की माध्यम होनी जरूरी नहीं है। अपने समय की पूरी पहचान को ईमानदारी से लिए हुए कहानी केवल कहानी है। मेरी सोच में कहानी में आग्रहपूर्वक यदि किसी तरह की खास वैचारिकता का समावेशन किया जाता है तो उसका प्रभाव अलग-थलग सा दिखाई देता है। मूल कहानी से उसका कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता है। कहानी का उतना ही अंश कहानी रह पाता है जितनी मूल कहानी है। कहानी किसी भाषा व शैली व रचना विशेष के दायरे में सीमित नहीं हो सकती है, इसमें अपने समय की ईमानदारी के साथ वास्तविक पहचान तो होनी ही चाहिए। अनुभव का समय के साथ विस्तार भी आवश्यक है। आज नई परिस्थितियाँ व्यापक व काफी फैलाव लिए हुए हैं। इनमें रोज एक प्रश्न जुड़ रहा है। रोज ही एक नया विषय जुड़ रहा है। एक प्रश्न हल नहीं होता कि दूसरा नया प्रश्न पूर्ण संशय के साथ जुड़ जाता है। आज का टूटता आदमी टूटने की पराजय को स्वीकार नहीं कर रहा है। आदमी की इसी स्वीकार की शक्ति कहानी लेखक को लिखने की निश्चय ही प्रेरणा दे रही है।

चौधरी महिपाल की पुत्री कर्मवती की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी इधर उसका शोध कार्य भी पूर्ण हो चुका था। इसी प्रकार चौधरी चन्द्रपाल का पुत्र 'विलायत' से डाक्टरी की डिग्री के साथ स्वदेश लौट आया था। कर्मवती और जगमेर सिंह में प्यार की कोपलें फूट चुकी थीं। दोनों ही कहीं न कहीं किसी प्रकार से मिल ही लेते थे। उधर महात्मा गाँधी का स्वतन्त्रता के सत्य अहिंसा का आन्दोलन विकसित हो चला था। अपने परिवारों की निरंकुश तानाशाही से लाचार परेशान इनकी दोनों सन्तानों ने मन्दिर में अपना विवाह सम्पन्न करा लिया था। अचानक एक हृदयविदारक घटना घट उठी। चौधरी महिपाल के पेट में भयानक पीड़ा होने लगी। राज्य के सुयोग्य वैद्यों की दिन-रात की चिकित्सा भी उन्हें चैन नहीं दिला सकी। दर्द से बिलबिलाते चौधरी बड़े असहाय कमजोर व अशक्त हो उठे थे। इनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय हो रही थी। राज्य के सभी प्रमुख गण परेशान थे। क्या करें? क्या न करें? उनकी पुत्री कर्मवती पिता को इस असहनीय पीड़ा से बिलबिलाते देखकर अपने को संभाल न सकी और पिता की किसी भी प्रकार की 'आपत्ति' की परवाह किए बिना डाक्टर जगमेर सिंह को उसने तुरन्त बुला लिया ।

लेखक परिचय
जन्म नवम्बर 1945 शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), मेरठ विश्वविद्यालय । सम्प्रति से. नि. विद्युत विभाग, गाजियाबाद। रुवि: लेखन/पठन-पाठन/शास्त्रीय संगीत। प्रकाशित कृतियाँ- उपन्यास : बिखरते नक्षत्र, कोहरे का सूरज, अमावस्या का चौद, शालिनी। कहानी-संग्रह: रेत का टीला, रोका गया सैलाब, आखिरी चट्टान के बाद, सिमटती दूरियों। काव्य-संग्रह: दिव्यपारा। प्रकाश्य: प्यासा सागर (उपन्यास)। रामनारायण मिश्र देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में अब तक अनेकों कहानियाँ, कविताएँ, लेख आदि प्रकाशित व चर्चित । इसके अतिरिक्त आकाशवाणी (रेडियो) दिल्ली से समय-समय पर कहानियों, कविताएँ व साहित्यिक परिचर्याएँ प्रसारित। आकाशवाणी दिल्ली के राष्ट्रीय प्रसारण सेवा से भी कहानियाँ प्रसारित । सम्मान: देश के विभिन्न हिन्दी साहित्यिक संस्थानों द्वारा 'कथा-कोविद', 'अतिविशिष्ट सम्मान', 'राजभाषा मनीषी सम्मान', 'राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान', 'पद्मश्री डॉ. लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति सम्मान', उपन्यास कहानी क्षेत्र में विशेष उल्लेखनीय सम्मान तथा 'विश्व-संस्था' सहस्राब्दी (मिलिनियम) विश्व हिन्दी सम्मेलन समिति, नई दिल्ली (2000) द्वारा 'राष्ट्रीय हिन्दी सेवी सहस्राब्दी सम्मान' से भी सम्मानित, बायोग्राफिकल इन्स्टीट्यूट यू.एस.ए. (अमेरिका) द्वारा "मैन ऑफ द इयर, 2003" सम्मान । सम्पर्क : आर 10/एफ 49 नया राजनगर, गाजियाबाद (उ.प्र.), दूरभाष: 2755137

दो शब्द
कहानी किसी खास वाद को लिए हुए किसी विशेष वैचारिकता की अभिव्यक्ति कान की माध्यम होनी जरूरी नहीं है। अपने समय की पूरी पहचान को ईमानदारी से लिए हुए कहानी केवल कहानी है। मेरी सोच में कहानी में आग्रहपूर्वक यदि किसी तरह की खास वैचारिकता का समावेशन किया जाता है तो उसका प्रभाव अलग-थलग सा दिखाई देता है। मूल कहानी से उसका कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता है। कहानी का उतना ही अंश कहानी रह पाता है जितनी मूल कहानी है। कहानी किसी भाषा व शैली व रचना विशेष के दायरे में सीमित नहीं हो सकती है, इसमें अपने समय की ईमानदारी के साथ वास्तविक पहचान तो होनी ही चाहिए। अनुभव का समय के साथ विस्तार भी आवश्यक है। आज नई परिस्थितियाँ व्यापक व काफी फैलाव लिए हुए हैं। इनमें रोज एक प्रश्न जुड़ रहा है। रोज ही एक नया विषय जुड़ रहा है। एक प्रश्न हल नहीं होता कि दूसरा नया प्रश्न पूर्ण संशय के साथ जुड़ जाता है। आज का टूटता आदमी टूटने की पराजय को स्वीकार नहीं कर रहा हैं। आदमी की इसी स्वीकार की शक्ति कहानी लेखक को लिखने की निश्चय ही प्रेरणा दे रही है।

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