चौधरी महिपाल की पुत्री कर्मवती की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी इधर उसका शोध कार्य भी पूर्ण हो चुका था। इसी प्रकार चौधरी चन्द्रपाल का पुत्र 'विलायत' से डाक्टरी की डिग्री के साथ स्वदेश लौट आया था। कर्मवती और जगमेर सिंह में प्यार की कोपलें फूट चुकी थीं। दोनों ही कहीं न कहीं किसी प्रकार से मिल ही लेते थे। उधर महात्मा गाँधी का स्वतन्त्रता के सत्य अहिंसा का आन्दोलन विकसित हो चला था। अपने परिवारों की निरंकुश तानाशाही से लाचार परेशान इनकी दोनों सन्तानों ने मन्दिर में अपना विवाह सम्पन्न करा लिया था। अचानक एक हृदयविदारक घटना घट उठी। चौधरी महिपाल के पेट में भयानक पीड़ा होने लगी। राज्य के सुयोग्य वैद्यों की दिन-रात की चिकित्सा भी उन्हें चैन नहीं दिला सकी। दर्द से बिलबिलाते चौधरी बड़े असहाय कमजोर व अशक्त हो उठे थे। इनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय हो रही थी। राज्य के सभी प्रमुख गण परेशान थे। क्या करें? क्या न करें? उनकी पुत्री कर्मवती पिता को इस असहनीय पीड़ा से बिलबिलाते देखकर अपने को संभाल न सकी और पिता की किसी भी प्रकार की 'आपत्ति' की परवाह किए बिना डाक्टर जगमेर सिंह को उसने तुरन्त बुला लिया ।
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