आज भारत ही नहीं, संसार भर में भौतिक साधनों के माध्यम से सुख-सुविधाओं में तेजी से वृद्धि हो रही है। शारीरिक श्रम कम होकर मशीनों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। मानव शरीर की पर्याप्त कसरत नहीं हो पाती है। फलतः मानव आरामपरस्त होकर श्रम से जी चुराने लगा है। यहाँ तक दस कदम भी पैदल चलना नहीं चाहता है। परिणामस्वरूप तरह-तरह की बीमारियाँ उसे जकड़ रही हैं। चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि होने के बावजूद बीमारियाँ निरंतर बढ़ती जा रही हैं।
दूसरा कारण यह भी है कि आज खान-पान विशुद्ध नहीं रहा है। सभी खाद्य-पदार्थों, फल, यहाँ तक सब्जियों में मिलावट कर लालची मानव उन्हें जहरीला बना रहा है। रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के अधिकाधिक उपयोग से उनका जहरीलापन बढ़ जाना स्वाभाविक ही है। इनके अलावा मानव ने अपनी दिनचर्या को इतना बिगाड़ लिया है कि वह अपना शत्रु स्वयं बन गया है। देर रात तक काम करना, फिर देर उठना, भोजन भी समय पर न कर पाना, रेडीमेड और फास्टफूड का अत्यधिक सेवन कर अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहा है। इनका दुष्परिणाम है कि बालवृद्ध-नारी-नर-सभी को बारह मास बीमारियाँ अपना शिकार बनाए रखती हैं।
पर इस संसार में हर समस्या का समाधान है। बीमारियाँ हैं तो उनका इलाज भी है। यह बात कटु सत्य है कि आज लोग अंग्रेजी दवाओं के दुष्परिणामों से आजिज आ चुके हैं, अतः आयुर्वेद एवं देसी चिकित्सा की ओर जनमानस का रुझान तेजी से बढ़ रहा है। इसकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा पहलू है-इसका कोई साइड इफेक्ट न होना। यह रोग को जड़मूल से नष्ट कर देती है। दवाई कम खाएँ या ज्यादा-इसका कोई दुष्परिणाम नहीं होता।
प्रस्तुत पुस्तक में कुछ सामान्य बीमारियों के सर्वसुलभ घरेलू इलाज बताए गए हैं। ये जड़ी-बूटियाँ सजहता से सर्वत्र उपलब्ध हैं। इनके लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता। अधिकांश चीजें हमारे घर-रसोई में ही उपलब्ध हो जाती हैं। ये घरेलू नुस्खे अत्यंत कारगर हैं, इनका आश्चर्यजनक लाभ होता है। कहा गया है कि 'जहाँ चाह, वहाँ राह', जिनको अपने स्वास्थ्य की चिंता, जो बीमारियों को अपने से दूर रखना चाहते हैं, उनके लिए यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी है। हालाँकि हममें से कोई रोगी नहीं बनना चाहता, कोई बीमार नहीं होना चाहता, कोई डॉक्टर-हकीमों के फेर में नहीं पड़ना चाहता, लेकिन फिर भी मानव इनकी चपेट में आ ही जाता है।
पाठकों की सुविधा के लिए बीमारियों के लक्षण/पहचान संक्षेप में बताकर उनके कारगर घरेलू इलाज बताए गए हैं। पुस्तक के अंत में अत्यंत उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण पाँच परिशिष्ट जोड़े गए हैं, जिनमें क्वाथ, चूर्ण, गोली आदि बनाने की विधियाँ संक्षेप में बताई गई हैं।
पुस्तक को तैयार करते समय जिन पत्र-पत्रिकाओं एवं प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जिन शुभचिंतकों एवं चिकित्सा प्रेमियों का सहयोग मिला, उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। इस पुस्तक में प्रकाशित अधिकांश लेख 'सवेरा न्यूज' में प्रकाशित होकर हजारों स्वास्थय-प्रेमियों तक पहुँच चुके हैं। इस अनन्य सहयोग के लिए 'सवेरा न्यूज' के प्रबंध एक संपादक श्री प्रमोद कुमार का हार्दिक आभार। पुस्तक के प्रकाशक श्री हरीश गुप्ता का भी हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।
स्वास्थ्य विषय पर मेरी यह पाँचवीं पुस्तक पाठकों के हाथों में है। पूर्ण विश्वास है, पाठकगण अपनी सदियों पुरानी देसी चिकित्सा पद्धति को अपनाकर स्वयं एवं अपने घर-परिवार को रोग-मुक्त बनाएँगे।
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