प्रस्तुत ग्रंथ 'दक्षिण कोशल की प्रशासनिक व्यवस्था' में दक्षिण कोशल (छत्तीसगढ़) के प्रारम्भ काल से लेकर तेरहवीं शताब्दी ईसवी तक के प्रशासनिक व्यवस्थाओं को उजागर करने का प्रयास किया गया है। इस भूभाग के विभिन्न कालखण्डों में व्यवहत विभिन्न शासकों द्वारा लागू की गई प्रशासनिक व्यवस्थायें जैसे राज्य एवं राजा की ऐतिहासिकता, उत्पत्ति, स्वरूप एवं प्रकार, उनके मध्य अंर्तसम्बन्ध, कर्तव्य, मंत्रि एवं मंत्रिपरिषद की रूपरेखा, उनके कार्यों का विभाजन, केन्द्रीय शासन, प्रशासनिक इकाईयाँ एवं उनका प्रशासन, अर्थव्यवस्था एवं राजस्व, सैन्य व्यवस्था तथा अन्तर्राज्यीय सम्बन्ध के इतिहास को उद्घाटित किया गया है, जिसकी अब तक उपेक्षा होती रही है अथवा अध्ययन में इनका समावेश बहुत ही अल्प हुआ है। प्रस्तुत ग्रंथ में दक्षिण कोशल के प्रशासनिक व्यवस्था के विभिन्न आयामों पर व्यापक रुप से विवेचन करने का प्रयास किया गया है। यहाँ के प्रशासनिक व्यवस्था से सम्बन्धित सामग्रियाँ यत्र-तत्र विविध ग्रंथों एवं शोध पत्रिकाओं में बिखरी पड़ी हुई हैं जो अब तक समग्र अध्ययन से वंचित रही हैं। अतः इन नवीन साक्ष्यों के आलोक में इस भूभाग के प्रशासनिक व्यवस्था के विविध पक्षों पर यथोचित प्रकाश डाला गया है।
डॉ. अनूप कुमार परसाई, जन्मस्थान -ग्राम गोटेगांव, -म०प्र०, शिक्षाः प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विषय में एम०ए०, एम०फिल०, पी०एच०डी० तथा एल०एल०बी०। अनुभवः पूर्ववर्ती म०प्र० एवं वर्तमान छत्तीसगढ़ उच्च शिक्षा विभाग में सन् 1989 ई0 से लेकर वर्तमान में सहायक आचार्य के रूप में लगभग 26 वर्षों से अध्ययन-अध्यापन कार्य में संलग्न। संगोष्ठी एवं शोध-पत्रः प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्त्व विषय से सम्बन्धित 40 अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही अनेक राष्ट्रीय कार्यशालाओं में भाग लेने का भी अवसर प्राप्त हुआ। देश विभिन्न महत्वपूर्ण शोध-पत्रिकाओं में अब तक 34 शोध-पत्रों का प्रकाशन। सम्प्रतिः अध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व, शासकीय जे०. योगानन्द छत्तीसगढ़ कालेज, रायपुर, छत्तीसगढ़ में वरिष्ठ सहायक आचार्य के रूप में स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं में अध्यापन कार्य।
परम पिता परमेश्वर की असीम अनुकम्पा, गुरूजनों के स्नेहिल आशीर्वाद एवं कुशल मार्गदर्शन में दक्षिण कोशल की प्रशासनिक व्यवस्था नामक पुस्तक को जिज्ञासु पाठकों एवं विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत करने में मुझे अपार सन्तोष की अनुभूति हो रही है। यद्यपि प्रस्तुत विषय को पुरातात्त्विक, अभिलेखीय व साहित्यिक साक्ष्यों के सम्मिलित निष्कर्ष पर परीक्षण करके यथासम्भव सुग्राह्य एवं सुपाठ्य बनाने का प्रयास किया गया है, तथापि इस रचनात्मक प्रयास में मुझे किस हद तक सफलता मिली है, इसका मूल्यांकन मैं स्वयं नहीं कर सकता। प्रस्तुत विषय से सम्बन्धित जितने भी प्रमाणिक ग्रंथ, शोध-पत्रों, जो उन्नीसवीं शताब्दी से लेकर वर्तमान समय तक प्रकाशित हुए हैं, उन्हे आधार बनाकर एवं उनमें सन्निहित विषय सम्बन्धी व्याख्याओं से सहायता लेकर मैंने इस पुस्तक का प्रणयन किया है।
छत्तीसगढ़ (दक्षिण कोशल) की प्राचीन प्रशासनिक व्यवस्था को सर्वागरूप से प्रकाशित करने वाले किसी भी स्वतन्त्र ग्रन्थ की अद्यावधि अनुपलब्धता क्षेत्रीय इतिहास के सांस्कृतिक पक्ष से संबंधित विभिन्न आयामों के अन्तर्गत इस विषय विशेष को लेकर लेखन कार्य किये जाने की ओर लेखक को उत्प्रेरित करने वाला कारक आधार रहा है। लेखन कार्य हेतु विषय चयन की प्रारम्भिक अवस्था से लेकर प्रस्तुत पुस्तक के लिये सामग्री सकलन उसका विश्लेषण एवं इसकी संरचना के समापन पर्यन्त लेखक के मनोबल तथा कार्य की दिशा सुनिश्चित करने में इस उत्प्रेरक आधार से उद्बुद्ध जीजीविषा चिन्तन-मनन-लेखन में प्रमुख संबल रही है। किसी भी प्रकार के सैद्धातिक या वैचारिक पूर्वाग्रहों से स्वयं को विमुक्त रखते हुए तथ्य मूलक इतिहास लेखन संबंधी प्रतिबद्धता प्रस्तुत ग्रंथ का लक्ष्य रहा है।
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