| Specifications |
| Publisher: Gita Press, Gorakhpur | |
| Author Hanuman Prasad Poddar | |
| Language: Sanskrit Text with Hindi Translation | |
| Pages: 222 | |
| Cover: Paperback | |
| 8.0 inch X 5.0 inch | |
| Weight 190 gm | |
| Edition: 2013 | |
| GPA316 |
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नम्र-निवेदन
भाईजी (श्रीहनुमानप्रसादजी" पोद्दार) -के" कुछ" व्यक्तिगत" पत्रोंका" संग्रह" लोक-परलोकका" सुधार (प्रथम" भाग) -के" नामसे" कुछ" सप्ताहपूर्व" प्रकाशित" हुआ" था" ।" उसी" संग्रहका" दूसरा" भाग" भी" प्रेमी" पाठकपाठिकाओंकी" सेवामें" प्रस्तुत" है।" इस" भागमें" प्राय" उन्हीं" विषयोंका" समावेश" है" जिनकी" चर्चा" पहले" भागमें" आ" चुकी" है।" इस" प्रकार" यह" दूसरा" भाग" पहले" भागका" ही" एक" प्रकारसे" पूरक" होगा।" दोनों" भागोंको" मिलाकर" ही" पढ़ना" चाहिये" ।" पुस्तकका" आकार" बड़ा" न" हो" इसीलिये" पत्रोंको" दो" भागोंमें" विभक्त" किया" गया" है।" आशा" है" प्रेमी" पाठक" इस" भागको" भी" उसी" चावसे" पढ़ेंगे" ।" मेरा" विश्वास" है" कि" जो" लोग" इन" पत्रोंको" मननपूर्वक" पढ़ेंगे" और" उनमें" आयी" हुई" बातोंको" अपने" जीवनमें" उतारनेकी" ईमानदारीके" साथ" चेष्टा" करेंगे, उन्हें" निश्चय" ही" महान्" लाभ" होगा" और" उन्हें" लोक-परलोक" दोनोंका" सुधार" करनेमें" यथेष्ट" सहायता" मिलेगी।
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विषय-सूची |
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1 |
श्राद्धकी" आवश्यकता |
7 |
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2 |
ब्रह्मज्ञान, पराभक्ति" और" भगवान्की" लीला |
20 |
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3 |
कुछ" तात्विक" प्रश्नोत्तर |
22 |
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4 |
गीतोक्त" सांख्ययोग" एवं" कर्मयोग |
28 |
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5 |
श्रीजगन्नाथजीके" प्रसादकी" महिमा |
33 |
|
6 |
रुपयेको" महत्त्व" नहीं" देना" चाहिये |
35 |
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7 |
रुपयेका" मोह |
36 |
|
8 |
धनसे" हानि" और" धनका" सदुपयोग |
38 |
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9 |
पापका" प्रकट" होना" हितकर" है |
41 |
|
10 |
मनुष्यका" कर्तव्य |
42 |
|
11 |
मनुष्य" जीवन" की" सफलता |
43 |
|
12 |
असली" सद्गुण |
46 |
|
13 |
गम्भीरता" या" प्रसन्नता |
48 |
|
14 |
निज-दोष" देखनेवाले" भाग्यवान्" हैं |
49 |
|
15 |
कुछ" प्रश्नोत्तर |
50 |
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16 |
सेवा-धर्म" और" आनन्दका" स्वरूप |
57 |
|
17 |
शान्ति" भगवान्के" आश्रयसे" ही" मिल" सकती" है |
61 |
|
18 |
भगवान्का" ऐश्वर्य" और" भगवत्कृपा |
62 |
|
19 |
भगवान्का" स्वभाव |
66 |
|
20 |
भगवान्से" तुरन्त" उत्तर" मिलेगा |
68 |
|
21 |
भगवान्की" असीम" कृपा |
71 |
|
22 |
भगवान्की" कृपाशक्ति |
72 |
|
23 |
दुःखमें" भी" भगवान्की" दया |
76 |
|
24 |
प्रभुकी" इच्छा" कल्याणमयी" होती" है |
78 |
|
25 |
सर्वोत्तम" चाह |
78 |
|
26 |
भोग-तृष्णामें" दुःख |
82 |
|
27 |
वैराग्यका" भ्रम |
86 |
|
28 |
कोई" किसीका" नहीं" है |
90 |
|
29 |
सेवा-साधन |
92 |
|
30 |
भावुकताका" प्रयोग" भगवान्में" कीजिये |
98 |
|
31 |
पापोंके" नाशका" उपाय |
99 |
|
32 |
विपत्तिनाशका" उपाय |
103 |
|
33 |
दोषनाशके" उपाय |
103 |
|
34 |
दु:खनाशके" साधन |
107 |
|
35 |
पतित" होकर" पतितपावनको" पुकारो |
116 |
|
36 |
साधकोंसे |
117 |
|
37 |
संसारमें" रहते" हुए" ही" भगवत्प्राप्तिका" साधन" कैसे" हो? |
119 |
|
38 |
काम-क्रोधादि" शत्रुओंका" सदुपयोग |
123 |
|
39 |
साधक" संन्यासीके" कर्तव्य |
129 |
|
40 |
श्रीभगवान्के" श्रृंगारका" ध्यान |
132 |
|
41 |
भगवत्साक्षात्कारके" उपाय |
134 |
|
42 |
भगवान्की" दयालुतापर" विश्वास |
137 |
|
43 |
भगवान्के" विधानमें" आनन्द |
138 |
|
44 |
सर्वत्र" सबमें" भगवान्को" देखो |
139 |
|
45 |
नाम-जपकी" महत्ता |
140 |
|
46 |
वास्तविक" भजनका" स्वरूप |
142 |
|
47 |
"प्रेम से होनेवाला" भजन |
143 |
|
48 |
भजन-साधन" और" साध्य |
145 |
|
49 |
"शरीर का मोह छोड्कर" भजन" करना" चाहिये |
146 |
|
50 |
वैराग्य" और" भजन" कैसे" हो? |
148 |
|
51 |
भक्तिका" स्वरूप |
152 |
|
52 |
पराभक्ति" साधन" नहीं" है |
154 |
|
53 |
उलटी" राह |
155 |
|
54 |
'अर्थ' और" 'अनर्थ' |
157 |
|
55 |
रति, प्रेम" और" रागके" तीन-तीन" प्रकार |
160 |
|
56 |
विरह- सुख |
163 |
|
57 |
भगवत्प्रेमकी" प्राप्तिके" साधन |
165 |
|
58 |
श्रीकृष्ण-वरित्रकी" उज्ज्वलता |
166 |
|
59 |
गोपीभावकी" साधना |
175 |
|
60 |
गोपीभावकी" उपासना |
192 |
|
61 |
कुछ" महत्वपूर्ण" प्रश्नोत्तर |
193 |
|
62 |
बर्ताव" सुधारनेके" उपाय |
206 |
|
63 |
समाजका" पाप |
209 |
|
64 |
प्रेमके" नामपर |
212 |
|
65 |
प्रेमके" नामपर" पाप |
214 |
|
66 |
देश" पतनकी" ओर" जा" रहा" है |
218 |









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