प्राचीन काल में आर्यावर्त की पुण्यधरा पर आध्यात्मिक सिद्धान्तों के साथ-साथ वैज्ञानिक तथ्यों को स्थापित करने की परम्परा रही है। इस परम्परा के संवर्द्धन एवं परिपोषण में अनगिनत ऋषियों, विचारकों, संतों, महात्माओं, मनीषियों एवं वैज्ञानिकों का सराहनीय तथा उत्साहवर्धक योगदान रहा है। सभ्यता और संस्कृति का विकास साथ-साथ होता है। सभ्यता भौतिक संसार को सम्पन्नता प्रदान करती है तो संस्कृति मानवीय चेतना को प्रबुद्ध करती है। सभ्यता का चक्र विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सहारे आगे बढ़ता है जबकि संस्कृति का चक्र साहित्य और अभिव्यक्ति के सहारे। परन्तु दोनों का चक्र गणितीय अनुशासन से ही गतिशील होते है। अतः गणित-बोध के बिना सभ्यता और संस्कृति का विकास सम्भव नहीं है।
यह पुस्तक भारतीय गणितीय ज्ञान परंपरा का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करती है। इसमें आर्यभट्ट सहित प्राचीन गणितज्ञों के योगदान अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति, शुल्व सूत्र, भक्षाली गणित और त्रिकोणमिति जैसे विषयों पर गहन विश्लेषण है। पुस्तक शून्य की खोज, संख्या पद्धतियों, गणित के आध्यात्मिक एवं दार्शनिक पहलूओं के साथ-साथ आइंस्टीन के सापेक्षवाद और भारतीय सगुण-निर्गुण ब्रह्म की अवधारणा पर एक चिन्तन भी प्रस्तुत करती है। यह प्राचीन गणित के सिद्धांतों को आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक से जोड़कर उनकी प्रासंगिकता को रेखांकित करती हैं। यह शोधकर्ता, विद्यार्थी और गणित के इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए अत्यंत उपयोगी संसाधन है।
डॉ० मनोरंजन कुमार सिंह मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के गणित विभाग के पूर्व प्रमुख एवं प्रोफेसर हैं। उन्हें फजी बीजगणित और उसके अनुप्रयोगों में विशेषता प्राप्त है और उनके पास 40 वर्षों से अधिक का शिक्षण व शोध अनुभव है। उन्होनें 23 पुस्तकें, 140 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए हैं तथा 18 पीएचडी शोधार्थियों का मागदर्शन किया है। उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। यूजीसी विद्वान पोर्टल पर उनका मूल्यांकन 9.7/10 है।
डॉ० गजेन्द्र प्रताप सिंह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), नई दिल्ली के संगणकीय तथा समेकित विज्ञान संस्थान में सहायक प्रोफेसर हैं। उनका शोध ग्राफ थ्योरी, पेट्री नेट थ्योरी, डेटा साइंस और भारतीय प्राचीन गणित पर केंद्रित है। उन्होंने बूलियन और बाइनरी पेट्री नेट्स का सिद्धान्त प्रस्तावित किया है तथा 60 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। डॉ० सिंह को यंग साइंटिस्ट अवार्ड, एस.सी.आर.एस. फेलो सहित कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए है। वे शिक्षण, शोध और प्रशासनिक कार्यों में सक्रिय योगदान दे रहे हैं।
डॉ० जितेन्द्र कुमार तिवारी संस्कृत और भारतीय संस्कृति के क्षेत्र में 29 वर्षों से सक्रिय एक प्रतिष्ठित विद्वान हैं। वे एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, मुंबई में संस्कृत विभागाध्यक्ष और भारतीय ज्ञान केन्द्र के मानद निदेशक हैं। उन्होंने वेद, दर्शन और वैदिक गणित पर व्यापक शोध किया है तथा कई पुस्तकों व शोध पत्रों का प्रकाशन किया है। उन्हें वैदिक वाङ्मय संवर्धन और विश्व संस्कृत पुरस्कार सहित अनेक सम्मान प्राप्त हुए हैं।
प्राचीन काल से आर्यावर्त्त की पुण्यधरा पर आध्यात्मिक सिद्धान्तों के साथ-साथ वैज्ञानिक तथ्यों को स्थापित करने की परम्परा रहा है। इस परम्परा के संवर्द्धन एवं परिपोषण में अनगिन ऋषियों, विचारकों, संतों, महात्माओं, मनीषियों एवं वैज्ञानिकों का योगदान सराहनीय तथा उत्साहवर्द्धक रहा है। सभ्यता और संस्कृति का विकास साथ-साथ होता है, यह हमारी मान्यता है। सभ्यता भौतिक संसार को सम्पन्नता प्रदान करती है, तो संस्कृति मानवीय चेतना को प्रबुद्ध करती है। इस प्रकार सभ्यता और संस्कृति मानव को संतुलन बनायें रखने हेतु प्रेरित और विवश भी करती है। सभ्यता का चक्र विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सहारे आगे बढ़ता है, जबकि संस्कृति का चक्र साहित्य और अभिव्यक्ति के सहारे। परन्तु हमारा मानना है कि दोनों का चक्र गणितीय अनुशासन से ही गतिशील होते हैं। कई विद्वानों का मत है कि गणित-बोध के बिना सभ्यता और संस्कृति का विकास सम्भव नहीं है। अतः गणित-बोध किसी भी प्रगतिशील मनुष्य और समाज दोनों के लिए आवश्यक है। प्रकृति का मूलाधार गणित है, यही मानव जीवन को अनुशासित करता है। प्रकृति भी अनुशासन की मर्यादा का अनुगमन करती है। सच तो यह है कि गणित सभ्यता और संस्कृति दोनों को आश्रय प्रदान करता है। साथ ही उसे सँवारता भी है। अतः निःसंदेह कह सकते हैं कि गणित ही सभ्यता और संस्कृति की संचालिका है। कई गणितीय संकल्पों ने मानव सभ्यता के विकास की कहानी गढ़ने में सहायता की है। मानव कल्याण हेतु धर्म और विज्ञान दोनों आवश्यक है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। भारतीय संस्कृति का प्राण है इन दोनों का समन्वय। यही कारण है कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में आध्यात्मिक सिद्धान्तों के साथ-साथ वैज्ञानिक तथ्य भी बीज रूप में पाये जाते हैं। यह सर्वथा सत्य है कि प्राचीन काल में यहाँ विज्ञान का विकास स्वतंत्र रूप में न होकर धर्म के सहायक के रूप में ही हुआ है। ज्योतिर्विज्ञान एवं गणित की नींव भी भारत में आध्यात्मिक कार्यों के सम्पादन के लिए ही पड़ी। भारत को यज्ञ भूमि भी कहा जाता है। यज्ञ भारतीय संस्कृति के आदि प्रतीक है। जन्म से अन्त्येष्ठि तक के सोलह संस्कार अग्निहोत्र से ही सम्पन्न होते हैं। यज्ञ की वेदी निर्माण, मुहर्त की गणना, आहुतियों का गणित सब इसी शास्त्र से सम्पन्न होते हैं। सभी वैदिक और लौकिक अनुष्ठान गणित पर आधारित हैं।
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