लेखक परिचय
डॉ. ज्योति रानी का जन्म 21 फरवरी सन् 1981 को बी.आई.टी. मेसरा, राँची में श्रीमती शोभा रानी ठाकुर एवं श्री श्रीनारायण ठाकुर के सुसम्पन्न परिवार में हुआ। आपने एम.ए. एम. एड़, मास्टर्स इन लाईब्रेरी साईंस की उपाधि बेमिसाल अंकों के साथ प्राप्त की। आपने मगध विश्वविद्यालय, बोधगया से पीएच.डी. की उपाधि राजनीति विज्ञान-अंतर्राष्ट्रीय संबंध में सन् 2018 में प्राप्त की। आप एक सफल शोधकर्ती के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं समकालीन वैश्विक राजनीतिक मुद्दों की ज्ञाता भी हैं। अंतर्राष्ट्रीय अखबारों, मासिक अखबारों, दैनिक अखबारों एवं सोशल मीडिया आदि पर राजनीतिक विज्ञान विषय एवं महिला सशक्तिकरण, आध्यात्म आदि पर लेख भी प्रकाशित हुए। आप योग संस्था राँची, योगा कल्चर सोसायटी (कोलकाता) में आजीवन सदस्यता प्राप्त समाज सेविका के रूप में PETCI, NGO में विगत 10 वर्षों से सेवारत, रिसोर्स पर्सन-सुरेन्द्र नाथ सेन्टेनरी विद्यालय राँची में बाल शोषण, आत्मरक्षा एवं महिला सशक्तिकरण के लिए जागरूकता कार्यक्रम में सम्मिलित हैं। वर्तमान में आप केन्द्रीय विद्यालय, रामगढ़ में संविदा आधारित राजनीति विज्ञान विषय में पी.जी.टी. के पद पर कार्यरत हैं।
पुस्तक परिचय
प्रस्तुत पुस्तक की रचना झारखण्ड, बिहार जैसे सीमित साधन वाले राज्यों एवं विभिन्न राष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए की गई है। यह पुस्तक हिन्दी माध्यम के छात्रों, शोधार्थियों एवं सिविल सेवा की तैयारी हेतु उपयोगी सिद्ध होगी। राजनीति विज्ञान विषय के अन्तर्गत इसमें भारत के साथ-साथ अन्य राष्ट्रों के घरेलू एवं वैदेशिक मामलों की जानकारी मिलती है। प्रस्तुत पुस्तक में कुल सात तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को समझना एक दिलचस्प विषय है। अध्याय सम्मिलित हैं। प्रथ प्रथम अध्याय में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की सर्वप्रमुख पंक्ति- "अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शक्ति की राजनीति है"- इस पर आधारित है। राजनीति शक्ति के लिए संघर्ष है। शक्ति प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप में राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति का मौलिक उपकरण बनी रहती है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद युरोपियन प्रभाव का अन्त हुआ और विश्व कई ध्रुवीय शक्तियों में परिवर्तित हो गया। द्वितीय अध्याय में दूसरे विश्वयुद्ध के प्रमुख परिणामों में भयंकर आर्थिक एवं जान-माल की क्षति, राष्ट्रवाद का उदय उदय शांति संधियों का क्रम एवं प्रजातंत्र व समाजवाद को बढ़ावा, शीतयुद्ध का प्रारंभआदि का उल्लेख है। तृतीय अध्याय के अन्तर्गत संयुक्त राष्ट्र संघ की अंतर्राष्ट्रीय विषयों में भूमिका का उल्लेख किया गया है। इस अध्याय में परमाणु परीक्षणों को निषेध किया जाना आदि शामिल है। है। चतुर्थ अध्याय में अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और पंच महाशक्तियों के उभरते प्रभाव को दर्शाया गया है। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस एवं चीन- पंच महाशक्तियों का विश्व के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक मंच पर प्रभाव छोड़ना आदि का उल्लेख है। पंचम अध्याय में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय / क्षेत्रीय संगठनों का विश्व राजनीति में योगदान को दिखाया गया है। षष्टम अध्याय के अन्तर्गत तृतीय विश्व को गुट निरपेक्ष आंदोलन (भारतीय योगदान के संदर्भ में) को उल्लेखनीय रूप में बताया गया है। भारत का गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अग्रणी राष्ट्रों के नेतृत्वकर्ता राष्ट्र के रूप में जो योगदान है उसको बतलाने की कोशिश रही है। अंतिम अध्याय के रूप में उपसंहार पाठ है जिसमें द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में यूरोप का निःशक्त होना, विश्व का द्वि-ध्रुवीय (रूस एवं अमेरिका) के रूप में उभरना, शीतयुद्ध की समाप्ति, निर्गुट आंदोलन में भारत की शांतिदूत की भूमिका इत्यादि सम्मिलित हैं। आशा करती हूँ कि यह पुस्तक पाठकों के द्वारा सराही जाएगी। पाठकों से आशा करती हूँ कि आपकी सफलता में यह पुस्तक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी, तथा पुस्तक में किसी त्रुटि के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ। पुस्तक को समय से प्रकाशित करने के लिए मैं माया पब्लिशिंग हाऊस का आभार प्रकट करती हूँ।
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