व्यष्टि एवं समष्टि के साथ-साथ प्रत्येक स्थान का भी अपना इतिहास होता है। नीलमत पुराल जैसे स्थल-पुराणों से मिन्न-भिन्न स्थलों के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। पुराविद जहाँ सर्वेक्षण एवं उलखनन के माध्यम से किसी पुरास्थल विशेष के सांस्कृतिक अनुक्रम एवं क्रमिक विकास का निर्मरण करता है, नहीं इतिहासकार प्रतिवेदित पुरावस्तुओं की ऐतिहासिक व्याख्या कर उसके विकास के इतिहास का समग्र चित्र प्रस्तुत करता है और भाषाशास्त्री नामाभिधान के आधार पर नाम-परिवर्तन के माध्यम से उसके अभिज्ञान का प्रयास करता है। प्रस्तुत ग्रन्थ पक्काकोट का पुरातात्विक अध्ययन मध्य गंगा मैदान के बलिया जिले के, छोटी सरयू-गंगा-मंगई सगम से लगभग 5 किलो मीटर पूरण, उत्तर-पश्चिम में बूढ़ी नदी (लकड़ा नाला), जो 2 किलो मीटर पूरब जाकर छोटी सरयू में मिल जाती है तथा दक्षिण में छोटी सरयू से एक किलो मीटर उत्तर, जो कभी टीले से सटे बहती रही, से आवृत्त 'पक्काकोट' तथा उसके पार्श्ववती पुरास्थलों के 2010-2011 से 2015-16 की अवधि के पुरातास्थिक सर्वेक्षण, पक्काकोट के उत्खनन और सर्वेक्षित उत्खनित पुरावस्तुओं की ऐतिहासिक व्याख्या तथा नामरूप के भाषाशास्त्री विवेचन तीनों पर आधारित है।
तीन दिशाओं से नदियों से आवृत पाश्वेवर्ती सतह से लगभग 12 मीटर ऊँचे और चार बुर्जियों से मुक्त दुर्गीकृत पक्काकोट की अवस्थिति से आकृष्ट हो इस पुरास्थल के सांस्कृतिक अनुक्रम, परिखा-प्राकार के स्थापत्य वैशिष्टय के स्वरूप निर्धारण तथा प्रवेश द्वार के अभिज्ञान को लक्ष्य कर जुलाई 2010 में यहाँ के पुरातात्त्विक उत्खनन की योजना बनी। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग, नई दिल्ली से उत्खनन की अनुमति प्राप्त कर और प्रतिवर्ष नवीनीकरण के साथ 2010-2011 से 2015-2016 तक कुल पीच उत्खनन सत्रों में 4×1 किलो मीटर परिक्षेत्र के 4 से अधिक टीलों पर सम्पन्न उत्खनन से निम्नलिखित 6 सांस्कृतिक अनुक्रम प्रकाश में आये-
1. नवाश्म काल (ई०पू० लगभग 5000 से इं०५० लगभग 2000 तक)
2. ताम्राश्म काल (ई०पू० लगभग 2000 से ई०पू० लगभग 900 तक)
3. उत्तरी कृष्णपरिमार्जित मृदभाण्ड काल (ई०पू० लगभग 900 से ई०पू० लगभग 200 तक)
4 शुग-कुषाण काल (ई०पू० लगभग 200 से लगभग 300 ई० सन् तक)
5. गुप्त-गुप्तोत्तर काल (लगभग 300 ई० सन से लगभग 700 ई० सन् तक)
6. पूर्वमाय-मध्यकाल (लगभग 700 ई० सन् से लगभग 1500 ई० सन् तक)
इन है लास्कृतिक अनुक्रमों से प्राप्त पुरावस्तुओं के प्रकाश में इस स्थल का ई०पू० लगभग 5000 से 1500 ई० सन तक का न केवल सांस्कृतिक सातत्य उभरकर सामने आता है, वरन सुरहा ताल के सम्पन्न सर्वेक्षण से प्राप्त पुरावस्तुओं के प्रकाश में मध्याश्मयुग में ही यहाँ मानव के प्रथम पदार्पण का भान होता है
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