बुन्देलखण्ड अंचल का महत्वपूर्ण जिला दमोह प्राचीन काल से सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है। यहाँ की सोनार, कोपरा एवं व्यारमा नदियाँ आदिमानव की कर्म स्थली रहे होने के प्रमाण आज भी अपनी घाटियों में संजोये हुए हैं। यद्यपि जिले का काफी भाग अरण्य क्षेत्र है, किन्तु पौराणिक काल में यह भूभाग चेदि साम्राज्य का समृद्ध क्षेत्र था। पुराणों में उल्लेख है कि चेदि नरेश कशु द्वारा अपने दोनों पुत्रों में चेदि साम्राज्य का विभाजन कर दिया था। पश्चिमी भाग के शासक 'ऐर' ने अपनी पृथक राजधानी के लिये ऐरीकेणा नगर बसाया, जिसे आज एरण कहा जाता है। यही 'ऐरीकेणा' नगर ऐतिहासिक काल में भी इस भू-भाग का राजनैतिक केन्द्र रहा।
प्रायः प्राचीन काल में नगरों को नदियों के किनारे एवं राजमार्गों पर बसाया जाता था। मौर्य-शुंग काल में विदिशा-एरण के साथ कई अन्य नगर भी अस्तित्व में आये, जिसमें नाग शासकों के अतिरिक्त कई स्थानीय शासक भी अपने राज्य स्थापित करने में सफल हुये। यद्यपि समुद्रगुप्त के आक्रमण के समय तक एरण, विदिशा व तुमैन महत्वपूर्ण केन्द्र थे, किन्तु कई अन्य शासक यथा आटविक राज्य भी अस्तित्व में आये। इन छोटे-छोटे शासकों के ऊपर वाकाटक वंश की प्रभुसत्ता स्थापित हुई। आधुनिक दमोह जिले के भू-भाग पर खरपरिक जनजाति का शासन था, जो पूर्णतया गुप्त शासकों के अधीन हो गये थे। गुप्तोत्तर काल में कलचुरि, वर्धन, मौखरी आदि राजवंशों का शासन रहा, किन्तु गुर्जर प्रतिहार वंश ने कन्नौज को राजधानी बनाया और इस क्षेत्र को स्थायित्व प्रदान किया। जिले के कुछ भागों पर डाहल के कलचुरियों का अधिपत्य रहा। कलचुरियों के अभिलेख एवं मंदिरों के अवशेष दमोह जिले के कई स्थलों पर विद्यमान है। यहाँ के नोहटा नामक स्थल पर स्थित नोहलेश्वर मंदिर शैवमत की मत्तमयूर शाखा का महत्वपूर्ण केन्द्र था।
चन्देलों एवं कलचुरियों के संघर्ष में दमोह जिले के स्थलों के प्रभुत्व बदलते रहे, किन्तु कई महत्वपूर्ण केन्द्र विकसित भी हुये, जिसमें सिंगौरगढ़ दुर्ग सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। राष्ट्रकूट, परिहार एवं विश्वामित्र वंश ने भी अपने छोटे-छोटे राज्य स्थापित किये। 14वीं शताब्दी में दमोह जिला दिल्ली सल्तनत का अंग था, किन्तु 15वीं शताब्दी में गोंड शासकों ने दमोह परिक्षेत्र को भी अपने अधीन किया और सिंगौरगढ़ को राजधानी का गौरव प्राप्त हुआ। मुगलों द्वारा रानी दुर्गावती को पराजित करने के बाद दमोह के कुछ भाग मुगलों के अधिपत्य में आये। अपनी समृद्ध ऐतिहासिक यात्रा के दौरान जिले में कई महत्वपूर्ण विरासतों का निर्माण हुआ।
सर्वेक्षण प्रतिवेदनों के आधार पर सामग्री संकलन का कार्य डॉ. दिव्या चौपड़ा, तकनीकी सहायक द्वारा किया गया। डॉ. दिव्या ने अथक परिश्रम से पुस्तक की पाण्डुलिपि तैयार की, जिसे प्रकाशन योग्य बनाने में संचालनालय पुरातत्व के प्रकाशन अधिकारी डॉ. रमेश यादव की महत्वपूर्ण भूमिका रही। संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय द्वारा जिलेवार पुरातत्व पुस्तक प्रकाशित करायी जा रही है। पूर्व में प्रकाशित पुस्तकों के समान यह पुस्तक भी विद्यार्थियों, शोधार्थियों इतिहासकारों एवं इतिहास पुरातत्व के जिज्ञासु पाठकों के लिये निश्चय ही उपयोगी होगी, ऐसी मुझे आशा है।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist