मध्य प्रदेश के महाकौशल अंचल में स्थित जिला जबलपुर अपनी भौगोलिक स्थिति एवं ऐतिहासिक धरोहर के कारण प्राचीनकाल से ही बेहद महत्वपूर्ण रहा है। यद्यपि इस जिले की पहचान कलचुरि एवं गोंड शासकों द्वारा संरक्षित एवं विकसित स्थापत्य कला के कारण स्थापित हुई है परंतु जिले में प्रवाहित नर्मदा नदी एवं उसकी सहायक नदियों हिरन, परियट, गोर आदि नदी घाटियों से प्राप्त विविध पाषाण उपकरणों एवं जीवाश्मों की प्राप्ति ने इस क्षेत्र की प्राचीनता को पाषाण काल तक पहुँचा दिया है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में जबलपुर का भूभाग भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक रहा है। पौराणिक आख्यानों में यह जिला जबलपुर से अभिन्न त्रिपुरी की स्थापना एवं महादेव शिव द्वारा इसके पराभव से लेकर ऐतिहासिक काल के विविध राजवंशों के उत्थान एवं पतन का साक्षी रहा है। छठीं शताब्दी ईसा पूर्व के भारत के चार महाजनपदों में से एक मगध के साम्राज्य विस्तार की प्रक्रिया में चौथी शती ईसा पूर्व में जबलपुर भी मगध साम्राज्य का अंग बन गया था। तदनंतर मौर्य, शुंग, सातवाहन, कुषाण एवं गुप्त काल तक यह क्षेत्र राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बना रहा। गुप्तोत्तर काल में कलचुरि शासकों के अधीन जबलपुर यथावत् धार्मिक एवं राजनैतिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ। तत्पश्चात् गोंड शासनकाल में भी जबलपुर राजनैतिक, आर्थिक एवं धार्मिक रूप से समुन्नत बना रहा। इस दौरान इस क्षेत्र में विस्तृत पैमाने पर निर्माण कार्य हुए। इनके अवशेष मंदिर, प्रतिमा, अभिलेख, मठ, बावड़ी, गढ़ी, छत्री एवं तालाब आदि के रूप में अद्यतन विद्यमान हैं। इस काल में शासन्रत राजवंशों एवं जनसामान्य द्वारा बड़ी संख्या में मंदिरों का निर्माण करवाया गया, जिनमें उनके द्वारा आराध्यदेवों की प्रतिमाएं स्थापित की गई। साथ ही मंदिर के बाहरी भाग को विविध देवप्रतिमाओं से सुसज्जित किया गया, जो तत्कालीन समाज में प्रचलित धार्मिक परंपराओं के साक्ष्य के रूप में प्राप्त होते हैं।
गोंड साम्राज्य के विघटन के उपरांत इस क्षेत्र में मराठा एवं ब्रिटिश शासन्काल में भी मंदिर, गढ़ी, महल एवं भवनों का यथा आवश्यक निर्माण होता रहा, जो इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है। जिले के सुदूर अंचलों में बिखरी इन पुरासंपदा, स्थलों, स्मारकों को चिन्हित कर उन्हें प्रकाश में लाने के उद्देश्य से संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय द्वारा ग्राम से ग्राम सर्वेक्षण करवाया गया। जिले के सर्वेक्षण का कार्य श्रीमती अर्चना झा, डॉ. डी. के. माथुर, श्री आर. आर. शर्मा, श्री नरेश पाठक, श्री रामनाथ सिंह परमार, श्रीमती हेमन्तिका शुक्ला, श्री आशुतोष उपरीत एवं श्री घनश्याम बाथम द्वारा किया गया था। इस सर्वेक्षण में प्रागैतिहासिक पाषाण उपकरणों एवं ताम्राश्मयुगीन स्थलों से लेकर 20वीं शती तक के स्मारक, मंदिर, प्रतिमाएं, सतीस्तंभ, गढ़ी, छत्री, तालाब, बावड़ी, महल आदि प्रकाश में आये, जो जबलपुर जिले के ऐतिहासिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक गतिविधियों के साक्ष्य के रूप में जबलपुर जिले के इतिहास एवं पुरातत्व पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं। अतः जिले में किये गये सर्वेक्षण कार्य के प्रतिवेदनों के आधार पर इस पुस्तक को तैयार किया गया है।
जबलपुर जिले के ग्रामवार सर्वेक्षण के आरंभिक समय से लेकर सर्वेक्षण पूर्णावधि तक जिले के प्रशासनिक स्वरूप में कई बदलाव हुए एवं प्रशासनिक दृष्टि से कई नवीन तहसीलों का गठन हुआ, जिसके कारण सर्वेक्षणकर्ता पुराविदों द्वारा कई ग्रामों का पृथक-पृथक सर्वेक्षण भी कर लिया गया। इस पुस्तक की पाण्डुलिपि तैयार करते समय यथासंभव इन ग्रामों में चिन्हित पुरावशेषों को एकीकृत करने का अथक प्रयास किया गया है।
सर्वेक्षण प्रतिवेदनों के आधार पर पुस्तक हेतु सामग्री संकलन का कार्य डॉ. अहमद अली द्वारा किया गया। इसे प्रकाशन योग्य बनाने में संचालनालय पुरातत्व के प्रभारी अधिकारी (प्रकाशन) डॉ. रमेश यादव की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही।
संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय मध्य प्रदेश द्वारा जिलेवार पुरातत्व पुस्तकों के प्रकाशन की श्रृंखला में प्रस्तुत पुस्तक "जबलपुर जिले का पुरातत्व" एक नवीन उपलब्धि है। संचालनालय द्वारा पूर्व में प्रकाशित पुस्तकों के समान यह पुस्तक भी विद्यार्थियों, शोधार्थियों, इतिहासकारों एवं जिज्ञासु पाठकों के लिए निश्चित ही अत्यंत उपयोगी होगी, ऐसी मुझे आशा है।
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