मध्यप्रदेश का सतना जिला सांस्कृतिक रूप से काफी समृद्ध है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र दण्डकारण्य का भाग था। इससे पूर्व मानव के सांस्कृतिक इतिहास में आदि मानव की गतिविधियों का केन्द्र रहा है। यही कारण है, कि पुरातत्वीय सर्वेक्षणों में पाषाण कालीन संस्कृक्ति एवं शैलचित्रों के समूह प्रकाश में आये है।
रामायण काल में इस वन्य क्षेत्र में कई कृषियों का निवास था। अयोध्या के राजकुमार श्री राम अपने वनवास काल में कई स्थलों में रूके एवं कृषियों से भेंट की थी। चित्रकूट, सरभंग आश्रम तथा भारद्वाज व मारकण्डेय आश्रम इसी क्षेत्र में स्थित होने की जनश्रुति है। महाभारत काल में यह भूभाग कारूस जनपद का भाग था, जो कालान्तर में चेदि साम्राज्य में समाहित हो गया था।
पुराणों में चेदि शासकों का विवरण मिलता है। चेदि नरेश कसु ने अपने दोनों पुत्रों उपरिचर और ऐर के मध्य राज्य का विभाजन किया था, पूर्वी भाग उपरिचर को तथा पश्चिमी भाग ऐर को मिला। ऐर द्वारा बसाया गया नगर ऐरीकेणा आधुनिक एरण जिला सागर कहा गया। पूर्वी चेदि की राजधानी को केन नदी के तट पर बसे होने के संबंध में विद्वानों ने अपने मत दिये हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि चेदि की राजधानी सूक्तिमति इसी क्षेत्र में स्थित रही होगी।
मगध के शासकों की साम्राज्य भी मगध का अंग बना। मौर्य काल में सम्राट अशोक के अधीन रहे होने के प्रमाण इस क्षेत्र में प्राप्त वाले अभिलेख एवं स्तूप है। शुंगकाल में भरहुत महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। व्यापारिक मार्ग पर स्थित होने के कारण स्तूपों का निर्माण हुआ, जिसके अवशेष आज भारतीय संग्रहालय कोलकाता एवं प्रयाग संग्रहालय में संग्रहीत है।
पौराणिक विवरण के अनुसार विदिशा के नाग शासक के दौहित्र विन्ध्य शक्ति पुरिका नगर एवं कांचनका के शासक थे। वाकाटक मूलतः इसी क्षेत्र के निवासी थे, ऐसा विचार कई विद्वानों था, किन्तु संचालनालय पुरातत्व द्वारा वर्ष 2017-18 में सतना जिले की मैहर तहसील के मनौरा नामक स्थल के उत्खनन् में वाकाटक वंश की राजधानी पुरिका/मानपुर के पुष्ट प्रमाण प्रकाश में आये हैं। समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में उल्लेखित रूद्रदेव इसी स्थल का शासक था। वाकाटकों की एक शाखा 6वीं शताब्दी तक इसी क्षेत्र में शासन करती रही। इसके बाद राष्ट्रकूटरों की एक शाखा कलचुरियों के पूर्व इस क्षेत्र पर शासन कर रही थी।
पूर्व ऐतिहासिक व ऐतिहासिक काल में नाग वंश के नाम पर नागावध कहलाया, जो आज नागौद कहा जाता है। इसी प्रकार गुप्तों के सामन्त के रूप में शासन करने वाले उच्चकल्प वंश की राजधानी आधुनिक उचेहरा थी। इस भू-भाग को महाकांतार के रूप में भी उल्लेखित किया गया है, प्रयाग प्रशस्ति में व्याघ्रराज को यहाँ का शासक बताया गया है।
8वीं शताब्दी में यद्यपि कलचुरि यहाँ के शासक बन गये थे, किन्तु वे गुर्जर प्रतीहार शासकों के अधीन रहे। सतना जिले में शुंगकाल से कलचुरि काल तक निर्माण कार्य हुए, जो इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण धरोहर हैं। कालांतर में बघेल शासकों के अधीन दीर्घकाल तक निर्माण कार्य हुए।
संचालनालय पुरातत्त्व द्वारा प्रकाशित जिलो के पुरातत्त्व पर केन्द्रित अन्य पुस्तकों के समान ही यह पुस्तक भी पुरातत्त्व व इतिहास के जिज्ञासुओं, शोधार्थियों, विद्यार्थियों एवं इतिहासकारों के लिये निश्चय ही उपयोगी हो ऐसी मुझे आशा है।
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