मानव के अतिरिक्त और सभी प्राणी बेखबरी में अर्थात् सहज भाव से क्रिया किया करते हैं। मानव ही एक मात्र आत्मज्ञान विशिष्ट सत्ता है। आत्मज्ञान इस का सब से बड़ा जीवन-गुण है और इस लिए समस्त विश्व में वह एक ही उत्तरदायित्वपूर्ण प्राणी है। वह जीवन को समझने की बुद्धि रखता हुआ अपने आप को तथा अपनी परिस्थिति को बदलने के निमित्त स्वतन्त्र इच्छा रखता है। वह किसी भी प्रकृत नियम से बन्धा नहीं है। यदि मानव अपने दायित्व को न सम्भालता हुआ अज्ञात अवस्था में अदृष्टवाद की चादर तान कर सोया रहे तो वह केवल अपने रूप से मानवता को घोका ही देता है और गुणों की दृष्टि से मानव कहलाने का कोई अधिकार नहीं रखता ।
बुद्धि द्वारा ही मानव विद्या सम्पन्न हो पाता है। और बिद्या ही मानव जीवन का आलोक तथा शक्ति है और उसे स्वतन्त्र इच्छा की इस लिए आवश्यकता है कि वह इस शक्ति द्वारा साधुता तथा सुन्दरता के लिए जिया करे। किन्तु यदि विद्या केवल हमें शक्ति प्रदान करती हुई इस शक्ति को प्रेम में बदल नहीं पाती, तब विद्या भी वस्तुतः कोई आलोक न रखती हुई ऊपरी चमक-दमक वाली ही होती है। प्रेम-विहीन शक्ति भी एक भयानक वस्तु है। केवल शक्ति तो हमारी मानवता के स्थान में हमारी पाशविकता की द्योतक होती है किन्तु वह शक्ति प्रेम का वसीला बनकर हमें मानवता से भी ऊपर उठा देती है। मानव जगत् अभी तक इसलिए दुःखरूप हो रहा है कि उसने गम्भीर जीवनज्ञान तथा यथार्थ जीवनकला की ओर यथेष्ट ध्यान नहीं दिया। अभी तक वह इस भ्रम में फंसा रहा है कि उसके जीवन आलोक का स्रोत उसके आत्मा से बाहर है तथा उसका भाग्य विधाता कोई और है।
इस ग्रंथ का उद्देश्य मानव को जीवनज्ञान तथा जीवन-कला की ओर जगाकर उसे वह मौलिक ज्ञान देना है जो जीवन के सन्तुलन तथा पूर्णता के लिए परमावश्यक है। मानव सत्ता की एक बड़ी विशेषता यह है कि वह सत्ता के सभी निचले वा ऊपर के स्तरों का मिलन स्थान है और उसे अपने जीवन की समग्रता तथा प्रसन्नता के लिए इन सभी स्तरों के नियमों का पालन करना होगा। इस का जीवन वहुमुखी हैं और उसे समकालीन भौतिक, पाशविक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक जीवन जीना होगा, अन्यथा वह जीवन की पूर्णता से बंचित ही रहेगा ।
हम ने जीवन के इन सभी स्तरों के मौलिक नियमों के वर्णन का यत्न किया है ताकि मानव इनके पालन द्वारा अपने को भलाई के सौन्दर्य से सजा सके। विद्या द्वारा उपार्जित शक्ति को प्रतियोगिता तथा प्रभुत्व के निमित्त वर्तना केवल पाशविकता ही है और इस उन्नतिशील शक्ति को भलाई तथा सौन्दर्य का साधन बनाना विशुद्ध मानवता है।
इस विश्वास के साथ कि यह ग्रन्थ कलात्मक जीवन का आलोक प्रदान करने में कृतकार्य होकर अधिकतर जागृति लाने का हेतु होगा, इसे तत्त्व-अन्वेषी आत्माओं की भेंट किया जाता है।
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