1982 में आयुर्वेद तथा अॅलोपॅथी का अभ्यास पूर्ण होने के बाद मैंने वैद्यकीय व्यवसाय का आरंभ किया।
सतत नये ज्ञानप्राप्ति की उमंग, किसी भी विषय का गाढ़ा अध्ययन करने का शौक तथा उसके लिए अत्यावश्यक परिश्रम करने की तैयारी, इन के कारण उस कालावधि में नवनवीन विषयों का ज्ञान होता गया। आयुर्वेद में संशोधन करने की इच्छा से हुमॅटॉलॉजी की ओर आकर्षित हुआ और उसी में आक्ट डूब गया।
'संधिवात' यह एक सर्वव्यापक समस्या! इससे पीड़ित हजारों रुग्ण आज तक सहृदयता से देखे। वास्तव में हमारे शरीर का यंत्र 'चलानेवाले' जोडों की व्याधियों के विषय में पराकाष्ठा के अज्ञान का विदारक अनुभव आता था। मन में यह वास्तव हमेशा खटकता था कि बहुतांश रुग्ण मेरे पास आने से पहले अनुचित मार्ग का अवलंब कर चुके होते थे। संधिवात जैसी बीमारी के लिए लोगों में जागृति निर्माण करना और रुग्णों को प्रशिक्षित करना अत्यावश्यक होता है। छाती में दर्द हो तो हृदयरोगतज्ज्ञ के पास जाना चाहिए, यह लोग समझते हैं, उसी प्रकार वे यह भी समझ पायें कि अगर जोड़ों में सूजन आई तो संधिवाततज्ज्ञ के पास जाना आवश्यक है।
आजकल वैद्यकशास्त्र में उत्तम संशोधन होते हैं। उनके माध्यम से प्राप्त निष्कर्ष का आधार लेकर उपचार करना आधुनिक युग की विशेषता है। व्यापारी दृष्टिकोण रख कर विज्ञापनों में छापी गई, बुद्धिभेद करने वाली जानकारी के कारण सामान्य लोग भटक जाते हैं। उनके जोड़ बेढंगे हो जाते हैं, समय और संपत्ति बरबाद होती रहती है और जीवन बिताना दिन-ब-दिन कठिन होता जाता है। इंटरनेट जैसे माध्यमों द्वारा प्रचंड जानकारी सामने आ जाती है परंतु उसमें से क्या उचित और क्या अनुचित यह कोई समझ नहीं पाता। वैज्ञानिक जानकारी सरल, आसान भाषा में सामान्य लोगों तक पहुँचाने के लिए मैने एक संकेतस्थल शुरु किया (www.arthritis-india.com)। यदि रुग्णों का प्रशिक्षण मातृभाषा में हो, तभी वह वास्तव में उपयोगी होता है। यही बात ध्यान में रखकर मैंने सब जानकारी मराठी में लिखना प्रारम्भ किया। विविध नियतकालिकों में प्रकाशित हुए मेरे लेख भी इस संकेतस्थल पर दिखाई देने लगे। एक साल में ही दुनिया के कोने-कोने से हर रोज हजार-बारहसौ की संख्या में यह संकेतस्थल देखा जाने लगा। इसी से इस जानकारी की उपयुक्तता सिद्ध होती है।
आगे चलकर 'क्या फाउंडेशन' इस धर्मादाय संस्था की स्थापना की। KYA अर्थात Know Your Arthritis का संक्षिप्त रुप। 'यह संधिवात वास्तव में क्या है?' इस प्रश्न का वैज्ञानिक उत्तर लोगों को समझाने का एक प्रयासः 'क्या फाउंडेशन' के माध्यम से सार्वजनिक कार्यक्रमों के साथ-साथ व्यायाम, दवाईयाँ और आहार-विहार, रुग्णों के अनुभव ऐसे विविध पुस्तकों का प्रकाशन किया। इसी मालिका के अंतर्गत 'संधिवाताचे दुखणे' नामक एक ग्रन्थ भी प्रकाशित किया। नियतकालिकों के लिए लेखों में संपादक द्वारा निर्धारित शब्दमर्या राजहंस' प्रकाशन के डॉ. सदानंद बोरसेजी ने इस विषय का महत्व मान्य किया और उसके लगभग दो वर्षों के बाद इस पुस्तक को मूर्त स्वरुप प्राप्त हुआ । मूलभूत वैज्ञानिक जानकारी में ज्यादातर परिवर्तन नहीं होता, इसलिए पूर्व प्रकाशित कुछ लेखों का समावेश इस पुस्तक में किया गया।
पुस्तक के पहले विभाग में जोड़, संधिवात, उसकी वेदना का सामान्य स्वरुप, उपचार और रुग्णों का सहयोग इन विषयों का समावेश है। दूसरे विभाग में ग्यारह बीमारियों के बारे में लेख हैं। जोड़ों के व्यायाम तथा योगासन परिशिष्ट में समाविष्ट हैं। 'संधिवात' यह लक्षण लगभग सौ प्रकार की बीमारियों में होता है। सिस्टेमिक लुपस, स्क्लेरोडर्मा जैसे आमवात के कठिन विषयों के बारे में इस आवृति में नहीं लिखा गया। फिर भी मेरा विश्वास है कि यह पुस्तक अत्यंत उपयुक्त है। मैंने जब पेडियाट्रिक न्हुमॅटॉलॉजी का अध्ययन शुरू किया तब मैंने कॅनडा के प्रा. रॉस पेटी से पूछा, "मैं कौनसी पुस्तक पढूँ?" तब उन्होंने कहा, "Read a good book on patient education."। वैद्यकीय व्यावसायिकों के लिए भी यह पुस्तक निश्चित रुप से उपयुक्त है। मराठी पुस्तक के स्वरूप और भाषा को लेकर डॉ. सदानंद बोरसेजी के साथ अनेक बार चर्चा हुई। इसके परिणामस्वरूप मेरी लेखन शैली में परिवर्तन होता गया। श्रीमती अनुराधा कुलकर्णी ने भी इसके लिए पर्याप्त समय दिया। डॉ. उषा दूरकर ने बड़े शौक से हस्तलिखित लिखें और मुद्रितों की जाँच की। मेरे बंधु श्री. अविनाश वाघ ने मुद्रितों की जाँच कर अनेक उपयुक्त सूचनाएँ की। 'क्या फाउंडेशन' की पुस्तक के लिए श्रीमती वसुधा कुलकर्णी ने अनेक चित्रों का रेखांकन किया, उन्ही का इस्तेमाल इस पुस्तक में किया गया ।
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