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असम : लोकजीवन और संस्कृति- Assam: Lok Jivan Aur Sanskriti

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Specifications
Publisher: HINDI BOOK CENTER
Author Virendra Parmar
Language: Hindi
Pages: 171
Cover: HARDCOVER
9x5.5 inch
Weight 360 gm
Edition: 2024
ISBN: 9789395310857
HBO811
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Book Description
प्रस्तावना

जनसंख्या की दृष्टि से असम पूर्वोत्तर भारत का सबसे बड़ा प्रदेश है।

यह प्रदेश अनेक संस्कृतियों का संगम स्थल है। श्रीमंत शंकरदेव की इस पुण्य भूमि में अनेक संस्कृति, सभ्यता, विचारधारा और परम्पराएं घुलमिलकर दूध में पानी की तरह एकाकार एकरूप हो गई हैं। विभिन्न कालखंडों में यहाँ आर्य, द्रविड़, तिब्बती, बर्मन आदि आए और यहाँ के लोकजीवन में घुलमिलकर एक हो गए। असम में कामता, अहोम, सूतिया, कोच, भूइयां, कछारी साम्राज्यों ने शासन किया। संस्कृति, भाषा, परंपरा, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, पर्व-त्योहार, वेश भूषा आदि की दृष्टि से असम में बहुत विविधता है। यहाँ अनेक आदिवासी समूह, अनेक भाषाएँ, भिन्न-भिन्न प्रकार के रहन-सहन, खान-पान और परिधान, अपने-अपने ईश्वरीय प्रतीक, धर्म और अध्यात्म की अनेक संकल्पनाएँ मौजूद हैं। ब्रह्मपुत्र इस प्रदेश की जीवनधारा है जिसके तट पर यहाँ की संस्कृति पल्लवित-पुष्पित हुई है। बोड़ो, कार्बी, मिरी, मिशिग, तिवा, देवरी, दिमासा, बर्मन, सोनोवाल, मेच, टी ट्राइब आदि जनजातियाँ असम के लोकजीवन को समृद्ध करती हैं। यहाँ नागा, खासी, कुकी, संथाली जनजातियों की भी अच्छी खासी आबादी है। गुवाहाटी केवल असम ही नहीं बल्कि पूर्वोत्तर की सांस्कृतिक राजधानी एवं प्रवेश द्वार है। इस तथ्य के अनेक प्रमाण मिलते हैं कि पांडवों ने असम में अपना अज्ञातवास बिताया था। यहाँ मुख्य रूप से हिंदू, मुस्लिम और ईसाई धर्मावलम्बी रहते हैं। बौद्ध, सिख, जैन धर्म को माननेवाले लोग भी अल्प संख्या में हैं। असम में सर्वाधिक जनसंख्या हिंदू धर्मावलम्बियों की है। हिंदू धर्म की शैव, शाक्त और वैष्णव तीनों शाखाओं में आस्था रखनेवाले लोग असम में रहते हैं। असम के अनेक समुदाय प्रकृतिपूजक या ब्रह्मवादी हैं लेकिन अपनी पड़ोसी जातियों के प्रभाव के कारण धीरे-धीरे उन्होंने हिंदू जीवन-पद्धति को आत्मसात कर लिया है। ईसाई धर्म असम का मौलिक धर्म नहीं है, इसका प्रसार अंग्रेजों के आगमन के बाद ईसाई मिशनरियों के द्वारा किया गया। जैव विविधता, सदाबहार वन, जीव जंतुओं एवं वनस्पतियों की अनेक दुर्लभ प्रजातियों के कारण असम की एक विशिष्ट पहचान है। पर्वतमालाएं, सदाबहार वन एवं सदानीरा नदियां इसके नैसर्गिक सौन्दर्य में अभिवृद्धि करती हैं। यहाँ की शस्य श्यामला धरती सोना उगलती है। आजादी के बाद वर्षों तक यह प्रदेश उपेक्षित रहा है। वर्ष 1990 के बाद की केंद्र सरकारों ने इस क्षेत्र के विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया। इस क्षेत्र के सामाजिक - आर्थिक विकास में समन्वय स्थापित करने और केंद्र सरकार के प्रयासों को प्रोत्साहन देने के लिए वर्ष 2001 में उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास विभाग स्थापित किया गया। विकास को और अधिक गति वर्ष 2004 में मिली जब उत्तर-पूर्वी विकास मंत्रालय नाम से एक स्वतंत्र मंत्रालय का गठन किया गया। इस मंत्रालय का दायित्व पूर्वोत्तर क्षेत्र की विकास योजनाओं-परियोजनाओं का समन्वय एवं निगरानी करना है। ब्रह्मपुत्र के अतिरिक्त असम के एक बड़े भूभाग में बराक नदी प्रवाहित होती है। असम के प्रमुख शहर गुवाहाटी, सिलचर, तेजपुर, जोरहाट, डिब्रूगढ़ आदि पहले से ही वायु सेवा से जुड़े हुए हैं। बराक घाटी का प्रमुख शहर सिलचर हाल ही में रेल रेल नेटवर्क से जुड़ा है। यदि असम के अन्य शहरों को भी वायु सेवा और रेल नेटवर्क से जोड़ दिया जाए, आवागमन के साधनों का उचित विकास किया जाए और प्राथमिकता के आधार पर पर्याप्त संख्या में होटलों अतिथिगृहों का निर्माण कराया जाए तो पर्यटन इस प्रदेश की अर्थव्यवस्था का प्राण वायु साबित हो सकता है। बंगलादेशी घुसपैठ इस प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या है जिसके कारण यहाँ की जनसांख्यिकी असंतुलित होती जा रही है। वर्ष 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार असम के 11 जिलों की जनसंख्या वृद्धि देश में सर्वाधिक रही है। यदि इस रिपोर्ट को देखने के बाद भी सरकारों और राजनैतिक दलों की आँखें बंद रहें तो असम और इस देश का भगवान ही मालिक है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1981-91 की जनसंख्या वृद्धि पर एक सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें उल्लेख किया गया था कि असम के उन जिलों की आबादी में असाधारण वृद्धि हुई है जो बांग्लादेश की सीमा पर स्थित हैं जबकि इन जिलों की सीमा से लगे बंगलादेशी जिलों में निम्न जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई थी। रिपोर्ट में वर्ष 1971-81 और 1981-91 की जनगणना के आंकड़ों की तुलना करते हुए बांग्लादेश से अचानक एक करोड़ व्यक्तियों के गायब होने पर चिंता व्यक्त की गई थी। ये एक करोड़ व्यक्ति कहां गए, इन्हें धरती निगल गई या आसमान खा गया। जाहिर है ये सभी अवैध रूप से भारत में आए। एक अनुमान के अनुसार असम में कम से कम एक करोड़ बंगलादेशी घुसपैठिए हैं लेकिन एनआरसी में महज 19 लाख घुसपैठिओं को चिह्नित किया गया है। इस 19 लाख में भी कई लाख ऐसे हैं जो विशुद्ध भारतीय हैं लेकिन उन अभागों के पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कोई कागजी प्रमाणपत्र नहीं है, अतः वे घुसपैठिए करार दे दिए गए। जो असली घुसपैठिए थे उन्होंने अपनी नागरिकता की पुष्टि के लिए सभी प्रमाणपत्र व दस्तावेज जुटा लिए लेकिन जो भारत के वास्तविक निवासी थे उन्हें घुसपैठिया घोषित कर दिया गया। अतः एनआरसी के नाम पर इतना शीर्षासन करने से कोई लाभ नहीं है।

प्रस्तुत पुस्तक का प्रमुख उद्देश्य असम के लोकजीवन, समाज, लोक उत्सव, लोकसाहित्य, संस्कृति, समृद्ध परम्पराओं पर संक्षिप्त प्रकाश और इस प्रदेश की समृद्ध विरासत से हिंदी समाज को परिचित कराना है। आशा है, यह पुस्तक असम के बारे में पाठकों की जिज्ञासाओं का समाधान करने में सक्षम साबित होगी।

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