१. माला-नायक का परिचय
स्वर्गीय श्री स्वामी सर्वदानन्द जी महाराज, जिनका पहला घर का नाम श्री चंदुलाल था, का जन्म पंजाब के होश्यारपुर नगर के दक्षिण में कोई पांच कोस पर बसे हुए, बड़ी बसी नाम के उपनगर में सं. १९१६ में हुआ था। आपके पूर्वजों में अनेक उच्च कोटि के वैद्य और योग्य विद्वान् हो चुके थे। आपके दादा श्री सवाईराम काश्मीर के थे। परन्तु वह बाल्य-अवस्था में ही बड़ी बसी के इस कुल में ब्रा कर इसी के हो गए थे। आपकी आरम्भिक शिक्षा अपने यहां से बारह कोस पर हरियाना उपनगर के वर्नेहुलर मिडल स्कूल में हुई थी। आप में छोटी अवस्था से ही धार्मिक रुचि तथा साधुसन्तों के सत्संग में प्रोति पाई जाती थी। इसीलिए जब गृहस्थ हो जाने के कुछ समय पीछे आपकी गृहिणी प्रसूता होकर बीत गई, तब फिर आप अधिक चिर तक घर पर नहीं रहे और विरक्त अवस्था में विचरने लग गए। सं. १९५३ के लगभग आपको भारतीय नव-युग के प्रथम प्रवर्तक, श्री स्वामी दयानन्द जी के प्रसिद्ध ग्रन्थ, सत्यार्थ प्रकाश के पाठ का सुअवसर मिला । इससे आप में लोक-सेवा का तीव्र भाव जाग उठा। तभी से आपने स्थिर-मति होकर, सद्विचार और निष्काम कर्म के सुन्दर, समन्वित मार्ग को धारण किया और सं. १९९९ में निर्वाण-पद की प्राप्ति तक, अर्थात् ४६ वर्ष बराबर उसे निबाहा । आप पवित्रता व सरलता की मूर्ति, राग-द्वेष से विमुक्त, दरिद्रनारायण के उपासक और खरी-खरी अनुभव की बातें सुनाने वाले सदा-हँस परम-हंस थे। आप सदा सभी के बन कर रहे और कभी किसी दलबंदी में नहीं पड़े। आप जहां अच्छा कार्य होता देखते थे, वहीं अपनो प्रोति-निर्झरी प्रवाहित कर देते थे।
२. 'स्मारक' का इतिहास -
श्री स्वामी जी महाराज विश्वेश्वरानन्द वैदिक संस्थान के आदिम ट्रस्टियों तथा कार्यकारी सदस्यों में से थे और आपने आजीवन इसे अपने आशीर्वाद का पात्र बनाए रखा । आपका देहान्त हो जाने पर संस्थान ने यह निश्चय किया कि एक स्थिर साहित्य-विभाग के रूप में श्रापका स्मारक स्थापित किया जावे । उक्त विभाग सरल, स्थायो, सार्वजनिक साहित्य प्रकाशित करे और उसके द्वारा, आप के जीवन के ऊँचे व्यापक आदर्शों को स्मरण कराता हुआ, जनता-जनार्दन की सेवा में लगा रहे। इस पवित्र कार्य के लिए जनता ने साठ हजार रुपये से ऊपर प्रदान करते हुए अपनी श्रद्धा प्रकट की। परन्तु यह कार्य यहां तक पहुंचा ही था, कि हमारा प्रदेश पाकिस्तानी आग को लपेट में आ गया, सारी भारत-मातृक जनता के साथ ही संस्थान भी लाहौर को छोड़ने के लिए विवश हो गया । उसी गड़बड़ में इसे पांच लाख रुपये की भारी हानि भो सहनी पड़ी। तभी से यह अपने पाँव, नये सिरे से, जमाने में लगा हुआ है। पुनः-प्रतिष्ठा नव-विधान से भी कहीं कड़ी होती है । इसीलिए यह अभी तक श्रपनी स्थिति को पूरी तरह संभाल नहीं पाया । परन्तु समीपवर्ती हरिद्वार कुम्भ के महापर्व ने सिर पर श्राकर, मानो ऐसी चेतावनी दी है कि और कार्य तो भले हो कुछ देर से भी हो जावे, परन्तु यह स्मारक का चिर-सकल्पित कार्य इस शुभ अवसर पर अवश्य आरम्भ हो जाना चाहिए । इस माला का जैसे-कैसे किया गया यह प्रारम्भ उसी चेतावनी का फल है। इस प्रारम्भ में, निश्चय हो, अनेक दोष रह रहे हैं, पर इसमें हमारी वर्तमान भोड़ा का ही विशेष अपराध है। अवश्य, समय पाकर, यह कार्य हमारी हार्दिक श्रद्धा के अनुरूप हो सकेगा, ऐसा हमारा विश्वास है।
३. माला का क्षेत्र
विश्व भर का विश्व-विध विज्ञान, दर्शन, साहित्य, कला और अनुभव ही इस माला का विशालतम क्षेत्र होगा । पर, फिर भी, क्षमता की सीमा को दृष्टि में रखते हुए, हमारे प्रकाशनों की मुख्य भाषा हिन्दी रहेगी, और इनका मुख्य श्राधार भारतीय संस्कृति और साहित्य होगा । इनमें अपने पूर्वजों की दाय-रूप सामग्री की व्याख्याओं के साथ ही साथ नई रचनाओं को भी पर्याप्त प्रवेश मिलेगा । इसी प्रकार, इनमें देश. विदेश की उत्तम रचनाओं के उत्तम अनुवादों आदि का भी विशेष स्थान रहेगा।
४. परामर्श समिति
इस 'माला' के क्षेत्र को विशालता और विविधता को देखते हुए ही इसके सम्पादन कार्य में आवश्यक परामर्श की प्राप्ति द्वारा इस विश्व-हितकारी कार्य को सफल बनाने के भाव से 'परामर्श समिति' की योजना की गई है। देश के भिन्न-भिन्न भागों के प्रसिद्ध सिद्धहस्त साहित्य-सेवियों ने इस 'समिति' की 'सदस्यता' स्वीकार की है- यह बात, अवश्य, इस कार्य के गौरव का प्रमाण, और साथ ही इसके भावी विकास की अग्रिम सूचना समझनी चाहिए ।
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