यह पुस्तिका उन लोगों के लिए तैयार की गई है, जो अपनी व्यक्ति-गत त्रुटियों और दोषों को दूर करके सत्पुरुष बनना चाहते हैं, जो आप सुखो रहना और दूसरों को सुखी देखना चाहते हैं। ऐसे लोगों को चरित्र-निर्माण में इस पुस्तिका से बड़ो सहायता मिल सकती है।
कहानी-उपन्यास और नाटक-कविता से मनोरञ्जन तो हो सकता है, परन्तु अपने को ऊँचा उठाने में उतनी सहायता नहीं मिलती, जितनी कि इस प्रकार की पुस्तकों से मिलती है। हां, इतना अवश्य है कि ऐसी पुस्तक को ध्यानपूर्वक बार-बार अध्ययन करने का प्रयोजन होता है।
मनुष्य को अपने दोष आप कम दिखाई देते हैं परन्तु निष्कपट भाव से की गईं "आत्म-परीक्षा” से मनुष्य को अपने दोषों एवं त्रुटियों का बहुत कुछ ज्ञान हो जाता है। तब वह उन्हें दूर करने का यत्न भी कर सकता है। इस दृष्टि से यह पुस्तिका जिज्ञासु जनों के लिए बड़ी उपयोगी सिद्ध हो सकती है। मेरी इस बात पर विश्वास करने के पूर्व वे इस के दो एक प्रकरण पढ़ कर देखें। मुझे निश्चय है, वे इसे सागर को गागर में बंद किया पायेंगे ।
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