प्रस्तावना
हरि सीताराम दीक्षित या काका साहिब दीक्षित, जैसा कि बाबा उन्हें कहकर बुलाते थे, को अपनी डायरी लिखने की बहुत अच्छी आदत थी। जैसे जैसे बाबा की लीलाएँ उनके सामने खुलती रहीं, वे उन्हें विधिवत, अच्छे तरीके से लिखने लगे। उन्हें भक्तों से जो पत्र, जो लेख मिलते थे उन्हें वे अच्छी तरह संभाल कर रखते। सबसे ज़रूरी, उन्होंने बाबा के शब्द और वचन लिखे। यही वचन बाबा के स्वभाव पर गहरा प्रकाश डालते हैं, जैसे कि बाबा का नकली गुस्सा, जो कि वास्तव में हमारे लिए गुप्त वरदान ही है, और बाबा की शिक्षा (सीख)।
दुर्भाग्यवश उन्होंने गणेश श्री कृष्णा खापर्डे की तरह तिथि कहीं भी नहीं लिखी। फिर भी यह डायरी एक रत्न है जिसका कोई मोल नहीं। उनकी डायरी में लिखी लीलाएँ १९२० के शुरुवात में साईं लीला पत्रिका में प्रकाशित की गई थीं। नीचे उद्यत ज़्यादातर लीलाएँ उन्हीं की डायरी में से हैं।
मैं काका साहिब की आभारी हूँ कि उनकी "दीक्षित डायरी" की देन की वजह से बाबा के कई भक्तों का जीवन ज्ञान से परिपूर्ण हुआ।
खास तौर से दृष्टाँतों में बाबा एक विषय से लेकर दूसरे विषय तक झूलते (आते जाते) हैं। इनका अंग्रेजी में अनुवाद कर पाना तकरीबन नामुमकिन है। क्योंकि यह पुस्तक बाबा की वाणी के बारे में है, इसलिए इसका शब्दः शब्द अनुवाद किया गया है। इसीलिए उनके 'शब्दों' को अंग्रेजी में अनुवाद कर पाना असंभव है। कोई भी अनुवाद मूल का सही अर्थ नहीं निकाल सकता, इसीलिए शायद श्रोताओं को लगे कि भाषा का बहाव स्वाभाविक रूप से नहीं हो रहा है।
बाबा रोज़ की भाषा में मराठी या हिन्दी बोला करते थे इसीलिए उसे अंग्रेज़ी में लिखना और भी कठिन है। वे अरे, रे और काएको जैसे शब्दों का प्रयोग कर यह पुस्तक बाबा की लीलाओं, कुछ दृष्टाँतों, उनके श्री मुख से निकले वचनों और उनकी बोध पद्धिति के विभिन्न रंगों, आकारों से परिपूर्ण दूरबीन है। बाबा का शिक्षा प्रदान करने का ढंग निराला था कभी दक्षिणा, कभी दृष्टाँतों द्वारा और कभी सीधे सरल तरीके से।
यह पुस्तक बाबा की है परन्तु इसकी त्रुटियाँ मेरी हैं।
पुस्तक परिचय
बाया की वाणी', भक्तों को, स्वयं बावा से मिले अनुभवों का समावेश है। हमें अपने गुरु-परमात्मा की कृपा से परम पिता परमात्मा की 'मूक वाणी' सुनाई देती है, हमारे उनके साथ रोज़ मद्रराह के संपर्क से ही हम इस 'पावन वाणी' का अनुभव कर अनुसरण कर सकते हैं। 'बावा की बाणी' का हम तक पहुँचना और हमारा उसे आसानी से समझ कर संजो पाना पूर्णतः 'बाबा की कृपा' पर ही अवलंबित है। अतः हम बाबा से यही प्रार्थना करते हैं कि उनकी कृपा हम पर सदा सर्वदा बरसती रहे, उनकी 'दिव्य वाणी' हमारे अंतस्थ को पावन पुनीत बनाती हुई, हमें जीवन के सच्चे ध्येय, परमात्मा मिलन, मोक्ष की और बहाली रहे।
बेला शर्मा वह नाम है जो महज़ अपने गुरु परमात्मा 'साई बाबा का ही अतिबिंव है। उनका सम्पूर्ण जीवन, जन्म से लेकर पुनर्जन्म तक और उसके बाद भी, पूर्ण रूप से 'बाबा की कृपा' पर ही निर्भर है और इसी कृपा से बढ़ता -पनपता है। निःस्वार्थी - पावन माँ बाप के घर में जन्मीं, बाबा के ही संतीय प्रवृत्ति बाले अक्स से ब्याही गई और बाबा के ही प्रेम से परिपूर्ण बच्चों की देखरेख में बढ़ती हुईं, वह केवल बाधा के प्रेम को ही देखती, महसूस करती तथा संजोने का प्रयास करती है। यह प्रेम उन्हें बाबा के अन्य रूपों दुवारा मिलता है, अनगिनत तरीकों से, अनुभवों से। उनका बाबा के प्रति प्रेम, भक्ति, समर्पण कई जन्मों का है, जिसे वर्षों के दायरों में नहीं बाँधा जा सकता और उनकी साई से वही प्रार्थना है कि बाबा सदा-सर्ववा, जन्म जन्मान्तर उनका हाथ थामें रहें और उन्हें अपने ही कार्यों का निमित बना पृथ्वी पर भेजें।
बाबा की ही कृपा से उनके लेख साई लीला पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। वह विनी चितलुरी द्वारा लिखित 'बाबा का ऋणानुबंध' पुस्तक का भी अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद कर रही हैं। कार्य सब बाबा के ही हैं और करन करावनहार भी बाबा ही हैं, हम तो बाबा के ही आदेशों को कर्मों के माध्यम से अपने अंतस्थ बसाने का प्रयास कर रहे हैं। आपका ही सर्वस्व दिया हुआ, बावा हम आपको ही अर्पण कर रहे है।
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