हर देश-प्रदेश की अपनी एक विशिष्ट संस्कृति होती है। राजस्थान की धरती शौर्य और त्याग की भूमि है। मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते-हंसते प्राण दे देना यहां के लोगों के लिए सामान्य बात है। वीरता और त्याग के संस्कार यहां बच्चों को जन्मघूंटी में ही दिए जाते हैं। राजस्थान की माटी के कण-कण में त्याग और बलिदान की गाथा लिखी हुई है।
इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने 'एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान' में विशेषतौर से उल्लेख किया है कि राजस्थान का चप्पा-चप्पा रणस्थली है और बच्चा-बच्चा वीर है। इन्सान और पशु-पक्षियों की रक्षा के लिए अपना जीवन कुर्बान कर देते हैं। जोधपुर का खेजड़ली गांव तो इस बात का भी गवाह रहा है कि यहां के लोग जीते जी हरा वृक्ष भी नहीं काटने देते हैं। कहने का मतलब यह है कि यहां के लोगों के संस्कारों में वीरता और त्याग समा गए हैं। हमारा साहस परोपकार के काम आए और किसी के प्राण बचाने में मददगार बनें। बच्चों के साहसिक प्रयास अन्य बच्चों के लिए प्रेरणा बनें। इसी सोच के साथ भारतीय बाल कल्याण परिषद् ने साहसी बच्चों के लिए राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार शुरू किए। हर साल ऐसे वीर बालक-बालिकाओं को ये पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं, जिन्होंने साहस और सूझबूझ से प्रेरणादायी काम किया हो। दूसरों के प्राण बचाने के साथ सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष का मोर्चा खोलने वाले बच्चों को भी पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं।
'बहादुर बच्चे' पुस्तक के जरिए राजस्थान के बालक-बालिकाओं की शौर्य गाथा को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है, जिन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। पुरस्कार के लिए दिए गए विवरण के आधार पर बच्चों की साहस गाथाओं को व्यवस्थित रूप देने का प्रयास किया गया है। बच्चों के साहस को मान्यता देने के साथ हमारा यह दायित्व भी बनता है कि उनके प्रयासों को अन्य बच्चों तक पहुंचाएं, ताकि अन्य बच्चे भी प्रेरणा लें। बच्चों के प्रयास और प्रेरणा ही साहसी और विवेकशीच समाज के निर्माण में मददगार बनेंगे। यह पुस्तक राजस्थान पत्रिका प्रकाशन विभाग की देन है। उन्होंने ही इस पुस्तक की रूपरेखा तय की। उन्होंने लिखने का काम मुझे सौंपा, इसलिए मैं उन सभी का आभारी हूं। यह पुस्तक बच्चों के लिए प्रेरणा बन सके, इसी में मैं अपना श्रम सार्थक समझेंगा।
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