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बैतूल: मध्यप्रदेश में स्वाधीनता संग्राम- Baitool: Freedom Struggle in Madhya Pradesh

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Specifications
Publisher: Swaraj Sansthan Sanchalanalay, Sanskriti Vibhag, Madhya Pradesh
Author Santosh Singh Rajput
Language: Hindi
Pages: 153
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 300 gm
Edition: 2024
ISBN: 9789393950604
HBP779
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Book Description

भूमिका

बैतूल जिले में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध लड़ी गई आज़ादी की लड़ाई पूरे जोश के साथ लड़ी गई थी। इसमें यहाँ के जनजातीय समुदाय की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन अमर बलिदानियों, क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया था।

अत्यधिक कठिन और कष्टदायी परिस्थितियों में गुज़र-बसर करने वाला यहाँ का जनजातीय समुदाय ब्रिटिश शासन के अत्याचारों से इतना तंग आ गया था, कि अब उसके सामने एक ही विकल्प था 'कि किसी भी तरह से अंग्रेजी शासन को भारत से उखाड़ फेंका जाए' उन्होंने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिये जो संघर्ष किया था, उसमें सरदार गंजनसिंह कोरकू, विष्णुसिंह गोंड, ठाकुर मोहकमसिंह उइके, बिहारीलाल पटेल, दीपचंद गोठी या आनंदराव लोखंडे के नाम आते हैं। इन सभी के नेतृत्व में जिले की जनता ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जिस अदम्य साहस और कौशल का परिचय दिया, वह बैतूल के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है।

बैतूल जिले में इस संघर्ष के सूत्रधार श्री रामदीन पटेल तथा शिवदीन पटेल बने। इसी के साथ जब तात्या टोपे ग्वालियर में झाँसी की रानी के वीरगति होने के बाद दक्षिण भारत में अंग्रेजों से संघर्ष जारी रखने के लिये छिंदवाड़ा के रास्ते बोरदेही, खेड़ली बाज़ार और 07 नवंबर, 1858 को मुलताई में आये, तो यहाँ के लोगों ने उनका खुलकर सहयोग किया इससे स्वतंत्रता के प्रति उनकी लालसा पुनः बलवती होती हुई दिखाई दी इसी के साथ सामाजिक उत्थान के लिये महात्मा गाँधी का आगमन 29 नवंबर, 1933 को मुलताई में हुआ तो यहाँ की दस हज़ार जनता ने एकत्रित होकर गाँधीजी का स्वागत किया और अपने मन में आजादी के आंदोलन के प्रति समर्पित भाव को व्यक्त किया।

बैतूल जिले में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शाखा सन् 1920 में स्थापित की गई थी। बैतूल में संचालित होने वाले आंदोलनों में असहयोग आंदोलन सन् 1920 से लेकर सन् 1930-32 का सविनय अवज्ञा आंदोलन, व्यक्तिगत सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आंदोलन आदि को इस जिले में कारगर रूप से चलाया गया था। भारत के अग्रगण्य राष्ट्रीय नेता बैतूल के स्वतंत्रता सेनानियों के प्रारंभिक शिक्षक बने थे इनमें महात्मा गाँधी, पंडित जवाहरलाल नेहरु, सुभाषचंद्र बोस आदि ने समय-समय पर बैतूल में संचालित हो रहे आंदोलनों का मार्गदर्शन किया। इनके मार्गदर्शन और प्रभाव से ही बैतूल में असंख्य लोग अपनी अंग्रेजी सरकारी नौकरियाँ छोड़कर राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े थे, चाहे वे मेहनत मज़दूरी करने वाले कारीगर हों, कृषक, बढ़ई, लोहार, ढीमर तथा नाई हों, ये सभी लोग अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन में उतर आये थे। बैतूल जिले में कांग्रेस के अतिरिक्त सुभाषचंद्र बोस के फॉरवर्ड ब्लॉक का भी व्यापक प्रभाव रहा। कई अवसरों पर दोनों में टकराव की स्थिति बनी, परंतु दोनों का लक्ष्य एक ही था, जिसकी वजह से इन दोनों के बीच आपसी सामंजस्य बना रहा।

इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं के रूप में अकाल, दुर्भिक्ष, प्लेग, हैजा, आदि बार-बार यहाँ के सीधे-साधे जनजातियों की मौत का कारण बनते रहे। जिससे ज़िले की जनता अधिकतर त्रस्त रही, क्योंकि अंग्रेजी शासन का रवैया इन विषम परिस्थितियों में उनके प्रति निष्क्रिय बना रहा। इस कारण यहाँ की जनता में ब्रिटिश शासन के खिलाफ दिन-पर-दिन आक्रोश बढ़ता गया।

भारत में जहाँ एक तरफ पूरे देश में आज़ादी के लिए सन् 1920 से अलग-अलग आंदोलन चल रहे थे, वहीं मध्यभारत के इस बैतूल जिले में चलाया गया 'जंगल सत्याग्रह' एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम था, जिसमें सबसे पहले बंजारीढाल के कोवा गोंड शहीद हुए थे। यह उल्लेखनीय है कि बैतूल जिले के जनजातियों ने सीधे तौर पर देश की आज़ादी में भाग लिया था। अनेक स्थानों और जनजातीय अंचलों में निहत्थे, निर्दोष लोगों और आंदोलनकारियों पर ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गोलियाँ बरसायी गई थीं, जिसमें असंख्य देशभक्तों ने घटना स्थल पर ही अपना बलिदान दे दिया था।

प्रस्तुत शोधकार्य में हर संभव यह प्रयास किया गया है, कि कोई भी घटना या किसी भी स्वतंत्रता सेनानी का नाम इस पुस्तक के लेखन में छूटने न पाये। सभी उपलब्ध स्त्रोतों, अनेक विद्वानों के ग्रंथों एवं उस समय के लिखित सरकारी दस्तावेज़ों से प्राप्त जानकारी के आधार पर, इस कृति को संवारने का प्रयास किया है। इस वृहद प्रयास में विविध संदर्भ ग्रंथों, बैतूल जिले के विभिन्न अंचलों में बसे शहीद क्रांतिकारियों के परिवारों उनके वंशजों, वहाँ के ग्रामवासियों के साक्षात्कारों से उन क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों की वास्तविक कहानियों और प्रामाणिक गाथाओं को समाहित करने का प्रयास किया गया है।

मैं ऋणी हूँ अपने देवलोकवासी पूज्य पिता हरिसिंह जी राजपूत का जिन्होंने मुझे हमेशा देश और सामाजिक हितों की रक्षा के कार्य संपन्न करने की शिक्षा दी और अपनी छत्र-छाया में मुझे इस काबिल योग्य बनाया कि आज मैं यह लेखन कार्य कर रहा हूँ। इसमें मेरी माताजी श्रीमती राधा राजपूत का आशीर्वाद सदैव मेरे साथ रहा है। मैं आभारी हूँ, अपनी धर्म पत्नी-मेरे सुख-दुख की साथी श्रीमती निधि राजपूत, पुत्र ओम राजपूत का, जिन्होंने इस कार्य में, मुझे अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया। मैं आभार व्यक्त करता हूँ, मेरे सहयोगी मित्र संजय बामने, मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद के उपाध्यक्ष विभाष उपाध्याय का जिन्होंने मुझे शोध कार्य के दौरान अपना सहयोग व मार्गदर्शन प्रदान किया।

मैं अपने मार्गदर्शक जय नारायण शर्मा नरसिंहपुर, डॉ. सुरेश मालवीय भोपाल, मोहन नागर भारत भारती बैतूल, बुधपाल सिंह ठाकुर का आभारी हूँ जिनकी प्रेरणा से मैं इस कार्य में आगे बढ़ सका। इसमें मुझे डी.डी. देशमुख पांढुर्ना का पूर्ण सहयोग मिला। इसी तरह मैं धन्यवाद करना चाहूँगा कमलेश सिंह जी एवं पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय, भोपाल के पुरातात्विद डॉ. वसीम खान का जिन्होंने सदैव मुझे अपना सहयोग प्रदान किया। देवास जिले से संबंधित छायाचित्रों के लिए पुष्पेन्द्र जी एवं अंकित जैन जी का भी मैं आभार व्यक्त करता हूँ। मैं आभार व्यक्त करता हूँ, मेरे उन सभी विभागीय साथियों का जिन्होंने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया और आगे बढ़ने के लिये प्रेरित किया। अंततः स्वराज संस्थान संचालनालय, भोपाल का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने यह महत्वपूर्ण दायित्व मुझे प्रदान किया।

यह कृति समर्पित है बैतूल जिले के उन सभी क्रांतिकारियों को जिन्होंने जंगलों में रहकर आज़ादी की लड़ाई में प्राणों की आहूतियाँ दीं।

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