1757 ई. में प्लासी के युद्ध में विजय के साथ ही अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीतियाँ बढ़ती ही गई। परिणामस्वरूप अंग्रेज प्रशासन के बढ़ते हुए अन्याय व अत्याचारों के विरुद्ध 1857 ई. में क्रांति का ज्वार उठा। इससे सतपुड़ा पहाड़ के अंचल में स्थित बड़वानी क्षेत्र भी अछूता न रहा।
इस स्वतंत्रता संग्राम में इस अंचल में क्रांति का झण्डा अधिकाशतः जनजातीय समुदाय के लोगों ने उठाया, चाहे वह भीमा नायक हों, खाज्या नायक हों या कोई और। ये वे लोग थे जो पूर्णतः निःस्वार्थ भाव से इस आन्दोलन से जुड़े हुए थे। इन देशभक्त नायकों द्वारा अंग्रेजी शासन का न केवल विरोध करना अपितु उन्हें चुनौती देना निश्चय ही साहसपूर्ण कार्य था। जबकि सभ्य कहलाने वाले अंग्रेज व उससे भी बढ़कर रियासत के समृद्ध व वैभव संपन्न राजा भी इन देशभक्तों को सदैव 'चोर, 'डाकू' या 'लुटेरा' कहकर उन्हें अपमानित करते थे। वास्तव में ये जनजातीय नायक इस क्षेत्र के लिये वह कार्य कर रहे थे जिसका प्रथम उत्तरदायित्व रियासत के राजा का था।
1857 ई. की क्रांति के दौरान क्रांतिकारियों ने स्वाधीनता के जो बीज बो दिये थे, उसका फल स्वाधीनता आंदोलन सेनानियों के प्रयासों से भारत की स्वतंत्रता के रूप में सामने आया। स्वाधीनता संग्राम के इन क्रांतिकारी नायकों व सेनानियों का योगदान स्मरणीय है।
बड़वानी में हुए स्वाधीनता संग्राम के लेखन के इस महत्वपूर्ण कार्य में सहज वात्सल्य, ममतामय प्रबोध एवं सतत मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए मैं अपने श्रद्धेय गुरु सुप्रसिद्ध विद्वान इतिहासकार प्रो. (डॉ.) बी.जी. शर्मा की चिरऋणी हूँ। इस कार्य हेतु अपरिमित सहयोग व प्रेरणा प्रदान करने हेतु मैं श्रद्धेय डॉ. एस.एन. यादव, पूर्व कुलपति अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा तथा डॉ. सुरेश मिश्र, इतिहासकार, भोपाल के प्रति कृतज्ञता प्रकट करती हूँ।
इस शोधकार्य हेतु शोध सामग्री के संकलन व चयन में सहयोग के लिए मैं, डॉ. एम.एल. वर्मा 'निकुंज' का धन्यवाद करती हूँ। प्रो. (डॉ.) श्रीमती कांता अलावा, प्रो. (डॉ.) श्रीमती मंजुला जोशी व प्रो. श्रीमती अभिलाषा साठे को भी उनके द्वारा किए गए सहयोग के लिए मैं साधुवाद देती हूँ। इस कार्य की पूर्णता हेतु मेरी योग्यतम शिष्या प्रो. (डॉ.) मंगला ठाकुर व मेरे विभाग के सदस्य प्रो. मधुसुदन चौबे तथा टंकण कार्य में सहयोगी श्री पंकज जैन का भी धन्यवाद।
मैं, अपने परिजनों व मेरी मित्र श्रीमती पद्मजा रसाळ तथा उन समस्त वरिष्ठजनों का आभार व्यक्त करती हूँ जिन्होंने अपना सहयोग देकर उक्त कार्य के लिये मेरा मार्ग प्रशस्त किया। मैं स्वराज संस्थान संचालनालय, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश की भी विशेष आभारी हूँ तथा इस पुस्तक में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग के लिए सभी का धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist