लेखक परिचय
राजेन्द्र मिश्र ने साहित्य की विविध विधाओं में रचना की है। उनकी अनेक सृजनात्मक और आलोचनात्मक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। यह उनकी 119वीं प्रकाशित पुस्तक है। उनकी रचनावली भी बारह खंडों में प्रकाशित हो चुकी है। रचनाकार ने आजकालीन साहित्य की अवधारणा दी है। वे साहित्य के उत्तर आधुनिक युग के रचनाकार हैं। उन्होंने 'आधुनिक भारतीय साहित्य' पुस्तक का संपादन भी किया है, जिसमें 14 प्रमुख भारतीय भाषाओं पर विशेषज्ञों के आलेख शामिल हैं। राजेन्द्र मिश्र ने दक्षिण भारत के अधिकांश विश्वविद्यालयों में भारत सरकार की योजना के अंतर्गत हिंदी भाषा और साहित्य पर व्याख्यान भी दिये हैं। टेलीविजन के अरनेट चर्यक्रम में उनके अनेक व्याख्यान प्रसारित हुए हैं। भाषा का सवाल' पर उनकी यह पुस्तक अनेक सवालों के बीच अत्यंत प्रासंगिक है।
पुस्तक परिचय
भारत की स्वतंत्रता के पहले देश में एक संपर्क भाषा का राताल अब राजनीति के नाटक में कहीं गुम हो गया है। हिंदी ही इस देश की अंतरप्रांतीय भाषा है, जो अधिकांश लोगों के प्रयोग में आती है। जो हिंदीभाषी नहीं हैं, वे भी हिंदी बोलते हैं या कम से कम समझ लेते हैं। तीन भाषा फार्मूला अगर सही अर्थ में लागू होता तो उत्तर और दक्षिण के बीच एक सेतु बन जाता पर यह नहीं हो पाया। पहले हिंदी या अंगरेजी की जगह अब कई भाषाओं का प्रयोग होने लगा है। इसमें कोई समस्या नहीं है, अगर संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया जाए। अंगरेजी की जगह हिंदी को राजभाषा का वास्तविक स्थान मिले जो संविधान के अनुसार भी आवश्यक है। जितने भी विकसित देश हैं, वहां एक भाषा का ही प्रयोग होता है। अगर कहीं अनेक भाषाएं भी हैं तब भी वहां एक भाषा को अपना लिया गया है। पर लगता है भारत में यह होना बहुत कठिन है। यहां के लोग अंगरेजी को अपना सकते हैं पर हिंदी को नहीं। वे रोमन में अपनी भाषाओं को लिखने का विरोध नहीं करते पर नागरी लिपि का विरोध करते हैं। इन्हीं सब सवालों के बीच मैंने अपनी इस 119वीं प्रकाशित पुस्तक में हिंदी भाषा से जुड़े संप्रेषण के अनेक आयामों पर विचार किया है। भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी निदेशालय की योजना के अनुसार दक्षिण भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों में गया हूं। मैंने पाया हिंदी का विरोध राजनैतिक है जनता के स्तर पर नहीं। वहां की जनता हिंदी समझती ही नहीं बोलती भी है। दक्षिण की अपनी कोई संपर्क भाषा नहीं है। वे अंतरप्रांतीय स्तर पर अगर अंगरेजी नहीं जानते तो फिर हिंदी का ही इस्तेमाल करते हैं। इस पुस्तक में हिंदी भाषा के विविध रूपों और नागरी लिपि की विभिन्न समस्याओं पर आलेख हैं। मीडिया के संदर्भ में भी कई आलेख हैं जिन्हें भारतीय भाषाओं के सर्वेक्षण में भी जगह मिली है भाषा के व्यापक क्षेत्रों को इन आलेखों में शामिल करने के कारण यह पुस्तक आम पाठक के साथ ही उच्च शिक्षा संस्थानों के अध्येताओं, अनुसंधानकर्ताओं और रचनाकारों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है। मुझे उम्मीद है कंप्यूटर और इंटरनेट के इस युग में हिंदी ही नहीं सभी भारतीय भाषाओं के लिए एक संपर्क लिपि अपनाने से उनके क्षेत्र का विस्तार होगा। हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार करने पर भारत का विश्व परिदृश्य बढ़ेगा।
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