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बिरहा दर्शन (इतिहास, संस्कृति और परंपरा): Biraha Darshan (Itihas, Sanskriti Aur Parampara)

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Specifications
Publisher: Manak Publications Pvt Ltd., Delhi
Author MANNU YADAV 'KRISHNA'
Language: Hindi
Pages: 346
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 Inch
Weight 480 gm
Edition: 2014
ISBN: 9789378313745
HBY970
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Book Description

भूमिका

 

मन व आत्मा के विस्तारों में मुखरित लोक-संस्कृति के दीपक अपने आभामण्डल से लोकजीवन को अर्थवान बना देते हैं और फिर, लोकजीवन उत्सववाद का रूप धारण कर जाति, वर्ग, धर्म, लिंग व क्षेत्र के भेद को विलोपित कर देता है। आग्रह-दुराग्रह का प्रश्न नहीं, पूर्व का स्मरण नहीं, उत्तरोत्तर परिपक्व होती प्रसन्नता लोकजीवन की अनंत कथाएँ व लोकसंगीत मनुष्य के आंतरिक ऊर्जा के ही प्रकटीकरण हैं। इसमें लोक-संगीत की बिरहा शैली का सौंदर्य अतुलनीय व अद्भुत है। बिरहा लोक-साहित्य के उस निर्मल दर्पण के समान है जिसमें मानव समाज का व्यापक तथा सम्यक स्वरूप पूर्णतया प्रतिबिम्बित होता है। बिरहा जैसा दिव्य तथा अकृत्रिम रूप लोक-साहित्य में उपलब्ध होता है, उसका दर्शन अन्यत्र कहाँ? बिरहा की निर्मल निर्झरिणी में अवगाहन कर केवल शरीर ही पवित्र नहीं होता, प्रत्युत आत्मा भी स्वच्छ और पावन बन जाती है। बिरहा की पृष्ठभूमि में जिस समाज का चित्रण होता है वह सात्विक, सदाचारी एवं धर्मभीरू है। जिस नीति की प्रतिष्ठा की गई है वह कल्याण मार्ग की ओर ले जाती है, वह मंगल पथ की प्रदर्शिका है; जिस धर्म का वर्णन किया गया है वह संसार में शान्ति तथा प्रेम का आदेश देता है; जिस संगठन का उल्लेख हुआ है वह पीड़ित तथा दलित मानवता के शोषण के ऊपर अवलम्बित नहीं है; जिस राजनीति का दिग्दर्शन कराया जाता वह दलीय संघर्ष और विषाक्त वातावरण से कोसों दूर है। धर्म, समाज और नीति का यही मनोरम चित्रण बिरहा की महत्ता में चार चाँद लगा देते हैं। बिरहा कालजयी है और इसे अमर साहित्य की कोटि में रखा जा सकता है। बिरहा धरती के गीत हैं। ये जीवन के गीत, विजय के गीत, मंगल के गीत आशा के गीत और शोक के गीत हैं। जनता के द्वारा रचे गये जनता के जीवन से सम्बन्ध रखने वाले ये गीत जनता की ही सम्पत्ति हैं। इसी कारण ग्रिम ने लोकगीतों को जनता का, जनता के लिए रचा गया जन-काव्य कहा है। पूर्वांचल की महान धरती जन-काव्य को विस्तार देती है। यहाँ के प्रतिभाशाली जन-कवियों व गायकों की परम्परा में डॉ. मन्नू यादव अपनी मोहक गायकी से श्रोताओं पर अमिट छाप छोडते हुए दिखते हैं। डॉ. यादव अपने गायन का परचम फहराते हुए एक दर्जन से अधिक देशों की यात्रा कर चुके हैं। देश में क्षेत्रीय व राष्ट्रीय पर्वो पर व प्रसिद्ध महोत्सवों में श्री यादव की प्रतिभागिता आयोजकों लिए एक अपरिहार्य विषय है। एतद् पुस्तक के माध्यम से श्री यादव लोकगायन की श्रुति परम्परा को अपने ढंग से लिपिबद्ध करने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। डॉ. यादव द्वारा रचित 'बिरहा दर्शन' पुस्तक निश्चित रूप से समाज के लिए अत्यंत उपयोगी है। बिरहा गायन व उसके विभिन्न प्रकारों की अत्यंत रोचक प्रस्तुति वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ भविष्य की अनंत पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन का कार्य करेगी। एतद् पुस्तक के प्रकाशन के अवसर पर डॉ. यादव को शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ कि वे सदैव अपने श्रोताओं व पाठकों को अपने गायन व ज्ञान से आनंदित करते रहें।

 

 

पुस्तक परिचय

 

प्राचीन मान्यता के अनुसार मौखिक इतिहास में बिरहा गायन शैली का जन्म श्रीकृष्ण भगवान का गोपियों से विछोह के कारण उत्पन्न विरह राग की उत्पत्ति ही आज के बिरहा को इंगित करता है। गोचारण संस्कृति एवं परंपरा में इसके मौखिक साक्ष्य उपलब्ध हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार, उत्तीसगढ़, झारखंड के निकटवर्ती क्षेत्रों के लोग जहां भी प्रवसन किये हैं, बिरहा के बोल उनको बरबस याद आ जाते है, मॉरीशस, फिजी, सुरीनाम, त्रिनिदाद टूवेको में इसके बोल आज भी विद्यमान हैं। आज उत्तर भारत में विरहा ने हर जाति-धर्म के जनकाव्य का रूप धारण कर लिया है। लोकू जन मानस को रोमांचित करने वाली बिरहा गायन शैली में मनोरंजन के साथ ही सामाजिक कुरीतियों से लड़ने एवं समाज सुधार के संदेश प्रवाहित होते रहते हैं, इसमें छन्द, अलंकार, बंदिश व पिंगल शास्त्र का समावेश इसके साहित्यिक पक्ष को बल प्रदान करता है। बिरहा उत्तर, भारतीय लोक धुनों को एकत्रित कर ऐसा गुलदस्ता बनाया गया है जिससे लोक धुनों के सभी पुष्प प्रायः आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। सर क्रिपर्सन के अनुसार विश्व की सबसे बड़ी पारंपरिक लोक गायन शैली जिसके चाहने वालों की संख्या लगभग 16 करोड़ मानी जाती है। देशी तथा विदेशी विद्वानों के रुझानों से यह स्पष्ट है कि बिरहा गायन शैली में लोक छन्दों की महत्य छात्रों, शोधार्थियों, लोक संस्कृति प्रेमियों को इस पुस्तक में एकत्र विरहा के इतिहास, संस्कृति और परंपरा का दर्शन कराने वाले तथ्य अवश्य उपयोगी सिद्ध होंगे।

 

लेखक परिचय

 

जीवन-वृत्त नाम : डॉ. मन्नू यादव 'कृष्ण' पिता का नाम : श्री रम्मन यादव माला का नाम : श्रीमती गुलाब देवी जून 1972, पुरवार मीरजापुर. 25133 हरिओम मगर कालोनी, सामने पाटा वागणी, 3.9. 221005 एम.काए.ए.एम.एम.पी-एच.डी. संगीत प्रभाकर पी.जी. डिप्लोमा (गोक संगीत) उता दिग्मिन्ताह खां राष्ट्रीय पुचा पुरस्कार 2007 से भारत सरकार द्वारा अलंकृत (प्रथम स्थान), उनीमगढ़ सरकार द्वारा 'विलामा कला सम्मान 27 जून यापुर उभीसगढ़, सूर अलंकरण सम्मान पूर्वाचन प्रेस कनप द्वारा 30 मई 2009 सोनभद्र। 20 जनवरी 2012 को मॉरीशस पीयाग्यो गांव वासियों की ओर से लोक भूषण सम्मान में मौरीशस तकनीकी विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार पी. संजीव वयुजा के द्वारा सम्मानित। विगहा, पारम्परिक विराणा, खड़ी विरहा, लोरिकी, चन्दनी, कजरी। विभागीय सम्बद्धता। भारत सरकार आकाशवाणी व दूरदर्शन से वी. उच्य स्तर प्राप्त, संगीत नाटक अकादमी, भारत सरकार, नई दिल्ली, उसर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, इलाहावाद उ रखनायें फिल्म सोरिक साथ खण्ड, सातिमा प्रकाशाधीन : हिन्दी फिल्म 'मुहल्ला अस्सी' में पावं गायन विरता के निर्गुण धुन 2012 भोजपुरी फिल्म 'रखवाला' में सह अभिनेता की भूमिका 2012 आडियो कॅसेट अन्य गतिविधियां : टी. सीरीज, रामा, संगीत, कुणाल, ए.ची. आर. सुमीत, आदि कैसेट कम्पनियों से लगभग 100 कैसेट जारी संस्थापक अध्यक्ष, राष्ट्रीय बिरहा अकादमी, महाराजा ययाति शिक्षा प्रसार एवं समाज सुधार संख्या, जि. नं. 1336, काशीपुर, पुनार, मीरजापुर, लोक दर्पण हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादन। विदेश भ्रमण 1. मॉरीशस में लोक धुनों की खोज यात्रा, 2012 च गायन सम्प्रति 2. भूटान में लोक युनों पर व्याख्यान, 2014 व गायन : प्रधानाध्यापक, जिला परिषदीय विद्यालय, मीरजापुर, उ.प्र.

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