मोल केवल ये नहीं होते, जिनका जन्म कण्ठ से होता है। उन्हें कानों के द्वारा सुने जाने तक सीमित नहीं किया जा सकता। बल्कि सचाई तो यह है कि उन्हें सच्चे अर्थों में सुनाने वाले माध्यम मूक हैं फिर वे चाहे पत्थर ही वा रंग। शिल्प और मित्र ऐसे दृश्य गीत हैं जो भले मीन के अक्षरों से लिखे गए ही. लेकिन जिनके स्वर हमारे इतिहास की गलियों में गूंजते हैं। इन्हें देखना इतिहास गीत के गुजन की सुनना है।
मध्यप्रदेश के बुम्देलखण्ड अंचल के ऐतिहासिक भित्तिचित्र एक ऐसे ही इतिहास गीत की प्रस्तुति है। इस कृति के पूर्व मालवा के भित्तिचित्र शीर्षक से कृति मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग द्वारा ही प्रकाशित की गई, जिसके निवेदन में मैने मध्यप्रदेश की दृश्य विरासत को उद्घाटित किए जाने के संबंध में विस्तार से इस परियोजना तथा इसकी पृष्ठभूमि को स्पष्ट किया है।
जिस प्रकार मालवा के भित्तिचित्रों के अध्ययन के लिए प्रख्यात कलाविद् स्व. राय आनंदकृष्ण तथा ख्यात कलाइतिहासकार व विक्टोरिया एण्ड अल्बर्ट म्यूजियम, लंदन के चित्रकला विभाग के चालीस वर्षों तक प्रभारी रहे डॉ. रॉबर्ट स्केल्टन ने मुझे प्रेरित किया, उसी प्रकार बुन्देलखण्ड के भित्तिचित्रों के सर्वेक्षण के लिए तथा मालवा व पुन्देलखण्ड सहित मध्य भारत की लघुचित्र शैलियों के अध्ययन के लिए मुझे भारतीय लघुचित्र शैलियों के मर्मज्ञ विद्वान तथा भारतीय कला को अपना जीवन समर्पित करने वाले श्रद्धेय जगदीश मित्तलजी ने प्रेरित किया। भारतीय सौंदर्य शास्त्र के अद्भुत विद्वान तथा कलाइतिहासकार डॉ. हर्ष दहेजिया ने मुझे निरंतर इस कार्य के लिए प्रोत्साहित किया तथा उनके साथ मेरी अंग्रेजी में बुन्देलखण्ड की चित्रकला को लेकर एक कृति प्रकाशित हुई। इन मनीषियों के आशीर्वाद की परिणति ही यह कार्य है।
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