यदि किसी देश का ब्राह्मण अर्थात् विद्वान शिक्षक धन लोलुप या पद लोलुप है, यदि देश का राजा अर्थात् शासक पक्षपाती है. भ्रष्ट है या स्वयं व्यापारी है. यदि देश का व्यापारी काला बाजारी है. यदि देश की नारी पतिता है, तो उस देश पतन निश्चित है।
आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व भी भारत इन्हीं कारणों के कारण पतन के गर्त में गिरा था। उस समय उदय हुआ था चाणक्य का, जिसने सैकड़ों टुकड़ों में विभक्त भारत को एक पिता की तरह संगठित किया।
चाणक्य, कौटल्य, कौटिल्य, विष्णुगुप्त, वात्स्यायन, खण्डदंत इत्यादि कितने ही नामों से प्रातः स्मरण किये जाने वाले उस राष्ट्रपिता को शत्-शत् प्रणाम, जिसने हमें चाणक्य नीति, कौटिल्य सूत्र, अर्थशास्त्र जैसे अमूल्य ग्रंथों के साथ अखण्ड भारत दिया।
नत्वेवार्यस्य दासभावः अर्थात् आर्य जाति को कभी पराधीन नहीं किया जा सकता, का उद्घोष करनेवाले विष्णुगुप्त को भला कौन नहीं जानता? चणक वंश में जन्म लेने के कारण उन्हें चाणक्य कहा गया। साथ ही साथ उनके वंश में कुटल वृत्ति होने के कारण उन्हें कौटल्य भी कहा गया। जो ब्राह्मण वर्ष भर के लिए अनाज भर कर संचित रखते हैं, उन्हें कुटल अथवा कुम्भीधान्य (अवधि में कोठिल) कहा जाता है। कुटल वृत्ति त्याग व तपस्या का प्रतीक है और आच्छादन अर्थात संस्कारों का कवच भी होने से इनकार नहीं किया जा सकता। कौटल्य को कौटिल्य उन लोगों ने लिखना शुरू किया, जिन्होंने चाणक्य व उनके अर्थशास्त्र की दुन्दुभी बजाई थी। उसी नाम को दुर्भाग्यवश परवर्तीकाल के ग्रंथ निर्माता अपनाते चले गये। चाणक्य प्राचीन वैदिक धर्म का अनुयायी था, इसलिए उन्होंने कुछ तत्कालीन नवीन मत-मतान्तरों का खण्डन किया, जिस कारण वे कुछ विशेष संप्रदाय के लोगों की आँखों की किरकिरी बन गये। ढाई गज की धोती धारण करनेवाले उस ब्राह्मण की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उसने जो भी किया, वह सब राष्ट्र कल्याण के लिए किया। अपने स्वार्थ साधन के लिए कुछ भी नहीं किया। कौटल्य की सुदक्षता के कारण ही सम्राट चन्द्रगुप्त ने अत्यल्प काल में ही सिकन्दर के उत्तराधिकारी सेल्यूकस को परास्त किया। पराजित सेल्यूकस को काबुल, किरात, कांधार, बलूचिस्तान देने के साथ-साथ अपनी पुत्री हेलना का विवाह भी चन्द्रगुप्त केसाथ करना पड़ा। इस प्रकार चन्द्रगुप्त संपूर्ण जम्बूद्वीप अर्थात् अखण्ड भारत का एक छत्र शासक बन गया। अखण्ड भारत का निर्माण कौटल्य की ही नीति का परिणाम था और जब उसने देखा कि अखण्ड भारत चारों ओर से सुरक्षित है, वे आचार्य संन्यासी बन वन में चले गये।
कितना उच्चादर्श था हिमालय से समुद्र पर्यन्त्! सहस्र यौजन विस्तीर्ण विशाल आर्यभूमि को एक सूत्र में संगठित करनेवाले, वात्स्यायन बन भारत की शास्त्र शक्ति और चाणक्य बन शस्त्र बल का पुनरुद्धार करनेवाले उस महान आचार्य कौटल्य का।
हारे हुए देश को संगठन सूत्र में पिरोकर उन्नति की चोटी पर पहुँचानेवाले सच्चे अथों में चाणक्य भारत के प्रथम राष्ट्रपिता कहने के अधिकारी हैं। उनका महान ग्रंथ अर्थशास्त्र आज भी नोति निर्माताओं, नेतृत्वकर्ताओं और जन-सामान्य के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य करता है।
उस महान आचार्य के विषय में बहुत कुछ लिखा जा चुका है, स्वयं इस पुस्तक के लेखक ने शांति मठ के नाम से एक उपन्यास में उनका गौरवशाली परिचय 15-16 वर्ष की आयु में ही लिखकर प्रकाशित कराया था। फिर भी आज के युग में उन पर पुनः लिखा जाना और ज्यादा प्रासंगिक हो गया है।
आजकल राष्ट्र के कर्णधार या भारतीय सांसद जिस प्रकार संसद में सवाल पूछने के लिए भी घूस लेने व रुपयों या वोट के लालच में देश की अस्मिता को दाँव पर रखने का दुष्कर्म करने लगे हैं. ऐसे समय में किसी भी राष्ट्रभक्त भारतीय को चाणक्य का ध्यान आना स्वाभाविक ही है कि काश! आज भी कोई कौटल्य होता! जो अपने पुरुषार्थ से आज के पर्वतेश्वर या धनानंद अर्थात् देश के दुष्ट कर्णधारों का या तो सर्वनाश कर देता या फिर उन्हें राक्षस की तरह सही मार्ग पर चलाकर भारत का खोया हुआ गौरव पुनः स्थापित कर देता।
"
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist