आज साहित्य के क्षेत्र में महिला लेखन के संदर्भ में बहुत चर्चा हो रही है वर्तमान महिला कथाकारों के माध्यम से ही इस आधुनिक उपन्यास साहित्य को परखने की सहज जिज्ञासा मन में पैदा हुई। नारी होने के नाते मैं पहले से ही किसी लेखिका पर शोध कार्य करना चाहती थी। इसी संदर्भ में सोचने विचारने के दौरान मुझे महिला कथाकारों को समझने का मौका मिला। जिसके परिणामस्वरूप यह लघुशोध प्रबंध प्रस्तुत हुआ ।
डॉ. प्रभा खेतान जी के उपन्यास एवं उनकी समीक्षाओं को पढ़कर उसमें रेखांकित नारियों की साहसी मनोवृत्ति से प्रभावित होने के कारण इस विषय पर अध्ययन की इच्छा हुई। उनके कुल छः उपन्यास हैं। वे हैं- 'आओ पेपे घर चलें', 'तालाबंदी', 'छिन्नमस्ता', 'अपने अपने चेहरे', 'पीली आँधी' तथा 'स्त्री पक्ष'। उनका 'छिन्नमस्ता' उपन्यास पहले से ही बहुचर्चित एवं विवादास्पद है। जिसका और अधिक गहराई से अध्ययन करने हेतु एवं विषय चयन समिति द्वारा पारित किये जाने पर मैं इस शोधकार्य की ओर अग्रसर हुई। वस्तुतः एक साहित्यकार के रूप में डॉ. प्रभा खेतान जी की संवेदनशीलता, जो उनके उपन्यासों में व्यक्त है, वही किसी न किसी मात्रा में उपन्यास में मिलती है। इस दृष्टि से उपन्यास साहित्य में अभिव्यक्त संवेदनशीलता को जानना आवश्यक प्रतीत हुआ और उसका प्रतिफलन है प्रस्तुत लघुशोध-प्रबंध। प्रस्तुत विषय को अध्ययन की सुविधा के लिए कुल छः अध्यायों में विभाजित किया गया है।
प्रथम अध्याय डॉ. प्रभा खेतान का व्यक्तित्व एवं कृतित्व में डॉ. प्रभा खेतान का जन्म, जन्म स्थान, माता-पिता, पारिवारिक जीवन बचपन, शिक्षा-दीक्षा, लेखन आरंभ, प्रेरणास्थान एवं प्रभाव, कार्य और उन्हें प्राप्त पुरस्कारों का समावेश है। इस अध्याय के दूसरे खंड के अंतर्गत उनकी कृतियों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है जिसमें उपन्यास, उपन्यासिका, काव्यसंग्रह, चिंतन, संपादन आदि का समावेश है।
द्वितीय अध्याय 'प्रतिनिधि महिला उपन्यासकारों का हिंदी साहित्य को योगदान' में प्रतिनिधि महिला उपन्यासकारों में उषा देवी मित्रा, कृष्णा सोबती, शिवानी, उषा प्रियवदा, मन्नू भंडारी आदि कुल २१ महिला उपन्यासकारों एवं उनके प्रतिनिधि उपन्यासों का संक्षेप रूप में परिचय प्रस्तुत किया है। जिन्होंने नारी के व्यक्तित्व को खुली अभिव्यक्ति दी है तथा जिनका हिंदी उपन्यास साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण स्थान है। तृतीय अध्याय 'डॉ. प्रभा खेतान एवं उनके उपन्यासों का संक्षिप्त परिचय' के अंर्तगत उपन्यासकार के रूप में साहित्य में प्रभा खेतान का योगदान तथा उनके अन्य उपन्यासों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है।
चतुर्थ अध्याय 'छिन्नमस्ता : कथ्यगत अध्ययन' के अंतर्गत कथ्य, कथ्य व्युत्पत्ति,
अर्थ, स्वरूप, कथ्य का महत्व तथा काव्य में निहित गुण एवं कथ्य पक्ष के सैद्धांतिक बिंदुओं का समावेश कर 'छिन्नमस्ता' उपन्यास का कथ्यगत अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।
पंचम अध्याय 'छिन्नमस्ता शिल्प एवं शैलीगत अध्ययन' के अंतर्गत शिल्प, व्युत्पत्ति, अर्थ, स्वरूप, परिभाषा एवं उपन्यास में शिल्प का महत्व तथा शिल्प के तत्वों का समावेश किया गया है। 'छिन्नमस्ता' में प्रयुक्त शिल्प के अंतर्गत भाषा, विंव, प्रतीक, मुहावरे एवं कहावतों के माध्यम से 'छिन्नमस्ता' की शिल्प संबंधी अन्य विशेषताओं को भी प्रस्तुत किया है।
इसी अध्याय के अंतर्गत शैली, शैली की व्युत्पत्ति, अर्थ, स्वरूप, परिभाषा तथा उसके महत्व को दिया है। साथ ही 'छिन्नमस्ता' में प्रयुक्त शैली के अंर्तगत आत्मकथानक शैली, पूर्वदीप्ति शैली, संवाद शैली तथा काव्यात्मक शैली को सोदाहरण प्रस्तुत किया है।
अन्त में 'उपसंहार' के द्वारा समस्त अध्यायों का निष्कर्ष एवं मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है।
कहा जाता है कि आशा जीवन का मूलाधार है एवं आगे बढ़ने की शक्ति का माध्यम है। अतः मेरे जीवन को इस मुकाम तक पहुँचाने में मेरी सृजन साधना में सहायक बने तमाम कृतिकारों, साहित्यकारों और विद्वानों के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ जिनकी सृजनात्मक और वैचारिक उपलब्धियों की सहायता से ही में अपने शोधकार्य को अंजाम तक पहुँचा पाई।
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