संविधान के द्वारा राजभाषा के रूप में मान्य हो जाने के कारण आधुनिक काल में हिन्दी का हिन्दीतर प्रदेशों में विशेष प्रचार-प्रसार हुआ है। हिन्दी-प्रचार की दृष्टि से भी गुजरात अग्रगण्य है। प्रतिवर्ष पाँच से छह लाख छात्र स्वैच्छिक संस्थाओं के द्वारा ली जानेवाली हिन्दी परीक्षाओं में बैठते हैं। गुजरात के स्कूल-कॉलेजों में हिन्दी में पठन-पाठन का समुचित प्रबंध है। गुजरात में आठ विश्वविद्यालय हैं और आठों में एम.ए., पीएच.डी. तक हिन्दी का पठन-पाठन हो रहा है। इन विश्वविद्यालयों में लगभग तीन सौ शोधार्थियों को हिन्दी में पीएच.डी. की उपाधि मिल चुकी है और दो सौ से अधिक शोधार्थी शोध में प्रवृत्त हैं। इन शोधार्थियों में से अधिकांश शोध करने के साथ-साथ मौलिक साहित्य एवं अनुवाद के द्वारा हिन्दी साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं।
इस प्रसंग में यह भी उल्लेखनीय है कि गुजरात राज्य ने अपने स्थापना काल से ही गुजराती के साथ हिन्दी को भी राज्यभाषी के रूप में स्वीकार किया है। भारत भर में गुजरात ही एक ऐसा हिन्दीतर प्रदेश है, जिसने निज भाषा के साथ हिन्दी को भी राज्यभाषा के रूप में मान्य किया है।
हिन्दी साहित्य अकादमी ने अपने स्थापना काल से लेकर आज तक हिन्दी में श्रेष्ठ साहित्य की रचना के लिए साहित्यकारों को प्रोत्साहित किया है। प्रकाशनों की इसी श्रृंखला में हम प्रो. मालती दुबे की कृति 'चिन्तन के स्वर' प्रकाशित कर रहे हैं। निबंध लेखन की प्रक्रिया पर विचार करते हुए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास में लिखा है "यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी।" आज के लेखक अपनी भाषा शक्ति के विकास हेतु अधिकतर निबंध ही चुना करते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में निबंध के स्वरूप, वर्ण्य विषय, शैली एवं भाषा के निकष पर भाषाविद् श्रीमती मालती दुबे के निबंध पूरी तरह योग्य ठहरते हैं । निबंध की दिशा में शोधप्रज्ञ विदुषी द्वारा किया गया चौदह निबंधों का यह संग्रह एक स्तुत्य प्रयास है। इस हेतु मैं डॉ. दुबे को बधाई देता हूँ। हिन्दी भाषा-साहित्य के छात्र-छात्राओं के लिए यह संग्रह उपयोगी सिद्ध होगा। प्रस्तुत ग्रंथ के प्रकाशन से हिन्दी साहित्य अकादमी, गांधीनगर गौरव का अनुभव कर रही है।
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