भारतीय साहित्य में जब दलित साहित्य प्रस्थापित हो चुका है तब ऐसी स्थिति में दलित साहित्य में शोधकार्य करना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है। आज 'दलित साहित्य' की भारतीय साहित्य में एक अलग पहचान है। जिसमें दलित कहानी एक सरल और महत्वपूर्ण विधा के रूप में हमें आकर्षित करती आ रही है। दलित कहानी में एक ओर समाज की पीड़ा, दर्द और उनकी कुछ न कर पाने की बेबसी का चित्रण मिलता है तो दूसरी ओर दलित समुदाय में जागृति पैदा करके उनमें स्वाभिमान भरना और अपने ऊपर होने वाले अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा भी मिलती है। दलित कहानी में केवल दलितों के दर्द, आह, पीड़ा और कसक की ही अभिव्यक्ति नहीं की जाती बल्कि उनके शमन के उपाय भी बताए गए हैं। विषय के चयन में कहानी विधा जो मेरी पसंदगी का और रस की विधा होने के कारण मैंने दलित कहानी का चुनाव किया जिसमें दोनों भाषा का तुलनात्मक अध्ययन करके दोनों भाषा के प्रति अपनी निष्ठा एवं विश्व बंधुत्व की भावना को उजागर करते हुए विशिष्ट दृष्टिकोण को देखते हुए एवं जिन लोगों से मैंने मानवअधिकार के बारे में सुना है, जिस परिवेश में मेरा सामाजिक दायित्व रहा है। स्वतंत्रता के बाद भी जातिवाद के जहर ने सामाजिक संवादिता को बहुत नुकशान पहुँचाया है। ऐसी स्थिति में "हिन्दी-गुजराती दलित कहानियों का तुलनात्मक अध्ययन" की इच्छा को मैं रोक नहीं पायी और अपने शोधकार्य के विषय का चुनाव किया है।
कॉलेज काल में ही मैंने निर्णय लिया था कि मुझे पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त करनी है। एम.ए. में उत्तीर्ण होने के बाद आर्शीवाद हेतु डॉ० कल्याण वैष्णव के पास गई तो उनका प्रथम प्रश्न था, आगे क्या करना है? मैंने भी अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहा मुझे पी-एच.डी. करना है। तभी से ही मेरे शोधकार्य का प्रारंभ हो गया। डॉ० कल्याण वैष्णव से हुई चर्चा में मैंने दलित साहित्य के प्रति रुचि दिखाई और उनके निर्देश पर अपना शोधकार्य करने का निश्चय किया। जिसमें डॉ० कल्याण वैष्णव ने ऊर्जा-दीप्ति प्रदान करके मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया इसलिए नत-मस्तक हो कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ।
विषय चयन करने के बाद मुझे उसी विषय पर अपना शोधकार्य करने के निर्णय पर संघर्ष भी करना पड़ा पर गुजरात कॉलेज के मेरे स्टाफमित्र प्रो० हरीभाई उमरेठीया और उनके भाई प्रो० जयंतभाई उमरेठीया की मदद से मुझे डॉ० ओमप्रकाश यादव से मिलने के बाद हुई चर्चा और विषय चुनाव में उनकी सहमति और स्वीकृति से मैं अभीभूत हो गई। मुझे आश्चर्यानंद होने लगा कि मेरी इच्छा पूर्ण हुई और मैं धन्य हो गई।
डॉ० ओमप्रकाश यादव ने मेरी इस यात्रा में मुझे हमेशा धीरता से गुरु की गरिमा का अनुभव कराते हुए मुझे शोधकार्य में सम्बन्धित आवश्यक निर्देश दिए। मैं ऐसे निर्देशक को पाकर अपने आपको भाग्यशाली होने का अनुभव करती हूँ। मेरे शोधकार्य को जो पूर्णता मिलने जा रही है उसका श्रेय दिशा निर्देशक डॉ० ओमप्रकाश यादव को ही है। यह शोधकार्य उनकी सद्भावना का ही प्रतीक है जिन्होंने समय-समय पर सम्यक् मार्गदर्शन एवं आवश्यक संशोधन करते हुए मेरे उत्साह को प्रोत्साहित किया। उनके प्रति मैं अपना श्रद्धाभाव समर्पित करती हूँ।
इस शोधकार्य में मेरे निर्देशक डॉ० ओमप्रकाश यादव, डॉ० कल्याण वैष्णव, मेरे पिता रमेशचंद्र घुघरावाला और मेरे बड़े भाई प्रो० रूपेश घुघरावाला के बिना यह कार्य करना असंभव होता। किसी न किसी संबंध भाव से जुड़े हुए मेरे आत्मीयजनों ने मेरी हर हालत में सहायता करके हमेशा मेरा हौंसला बढ़ाया उन सबके प्रति में हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ। इस शोधकार्य में केन्द्रीय ग्रंथालय-गांधीनगर, गुजरात विद्यापीठ ग्रंथालय-अहमदाबाद, डॉ० अम्बेडकर भवन ग्रंथालय-गांधीनगर, श्री एम. सी. शाह कॉमर्स कालेज, अहमदाबाद, सहजानंद कॉलेज, अहमदाबाद से शोध सामग्री जुटाने में जो सहायता मिली है उनके प्रति आभार व्यक्त करती हूँ। परोक्ष अपरोक्ष रूप से जिन्होंने मेरी सहायता की है। उनका में तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ।
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